Cringe Consumers भी हैं टी सीरीज के खराब कंटेंट के दोषी

जब डिमांड ही नहीं होगी तो क्यों टी सीरीज़ या कोई अन्य म्यूज़िक कंपनी हवा में तलवार भांजते हुए निकल पड़ेगी हमारे बचपन की यादों को धूमिल करने, जरा सोचिए?

टी सीरीज़

Source- TFI

नमस्कार,

क्रिंज कंटेंट से परेशान हैं?

अपने क्लासिक सॉन्ग के मर्डर से चिंतित हैं?

इसके लिए टी सीरीज़ जैसे कंपनियों को दोषी मानते हैं?

यदि हां, तो आप निरे मूर्ख हैं! हो सकता है कि आपको ये शब्द सुनकर काफी बुरा लगे परंतु ताली एक हाथ से नहीं बजती। सब कुछ पैसे से नहीं चलता, डिमांड नाम की भी वस्तु है। जब डिमांड ही नहीं होगी तो क्यों टी सीरीज़ या कोई अन्य म्यूज़िक कंपनी हवा में तलवार भांजते हुए निकल पड़ेगी हमारे बचपन की यादों को धूमिल करने? इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे भारत में संगीत के ह्रास के लिए जितना व्यवसायीकरण दोषी है, उतना ही क्रिन्ज कंज़्यूमर की बढ़ती हुई डिमांड भी है।

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संगीत का गिरता स्तर

अगर आप बिग बॉस देखते हैं तो क्या आप कोई अच्छा शो देखते हैं? नहीं न, आपको पता है कि लोग एक घर में बंद होते हैं, उनकी सार्वजनिक कुटाई का सार्वजनिक प्रदर्शन होता है और इसी छीछालेदर से कई लोगों को ‘सेलमोन भोई वार्षिक रोजगार योजना’ के तहत रोजगार भी मिलता है!

हमारे वर्तमान संगीत का भी कुछ ऐसा ही हाल है। अगर दक्षिण भारतीय परिप्रेक्ष्य को त्याग दें तो अधिकतम संगीत या तो कर्कश हैं या फिर मौलिकता से उनका छत्तीस का आंकड़ा है। उदाहरण के लिए एक पंजाबी लोकगीत ‘जेडा नशा’, जो यूट्यूब पर एक स्वतंत्र बैंड द्वारा पब्लिश हुआ, वाइल्ड स्टोन द्वारा चर्चा में आया, टी सीरीज़ द्वारा अधिकृत किया गया और इसमें कुछ भी नया नहीं है, सिवाय नेहा कक्कड़ की उल्टी कराने वाली घटिया आवाज के।

अब नेहा कक्कड़ का नाम सुनते ही कई संगीत प्रेमी हाथ में अपने बम, कट्टा, लठ, यहां तक कि तलवार निकाल लेंगे। स्वाभाविक है, संगीत का जिस निर्ममता और निर्लज्जता से इन्होंने गला दबाया है, उसका कोई हिसाब नहीं। परंतु ये अधिकार नेहा कक्कड़ को किसने दिया? टी सीरीज़ ने? तनिष्क बागची ने? नहीं, ये अधिकार मिला उन्हें हमसे यानी ग्राहकों से।

ताली एक हाथ से नहीं बजती

देखिए, अर्थशास्त्र का एक बेसिक रूल होता है, अगर मांग अधिक है और आपूर्ति यानी सप्लाई कम, तो दाम भी कम होंगे और वहीं इसका ठीक विपरीत भी होता है। यही बात कहीं न कहीं गुणवत्ता पर भी लागू होती है। अब अगर ग्राहक आपसे मांग करेगा कि हमें अच्छा उत्पाद नहीं चाहिए, हमें सस्ता और घटिया उत्पाद ही चलेगा तो दुकानदार भी क्या ही करेगा? बंधुवर, ताली एक हाथ से नहीं बजती।

इसके अतिरिक्त इंस्टाग्राम पर आप अगर कंटेंट देखें तो आप क्या ऑब्जर्व करेंगे? ऐसे ऐसे रील्स आते हैं, जिसे देखकर आप सोचेंगे कि क्यों हूं मैं इस धरती पर? हम मज़ाक नहीं कर रहे हैं। इस प्लेटफॉर्म पर कभी कोई चैलेंज तो कभी कोई चैलेंज चलता है और ये कभी कभी तो नेक्स्ट लेवल पर चला जाता है, तो हमें नहीं समझ आता कि ये किस लेवल का चैलेंज है?

ऐसे में केवल व्यवसायीकरण को दोष देना उचित नहीं होगा। आज कितने लोग ऐसे होंगे जो ‘मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी’ सुनेंगे? कितने लोग ऐसे होंगे जो ‘जेडा नशा’ का मूल संस्करण सुने होंगे? परंतु चाहे अपशब्द सुनाने के लिए, चाहे मीम के लिए, आप आ तो वहीं रहे हो न जहां नहीं आना चाहिए। तो सच में दोषी कौन है, म्यूज़िक कंपनी या आप?

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