भारत को बेहतरीन गीत देने वाले मदन मोहन कोहली की वास्तविक कहानी जानते हैं आप?

'लग जा गले...' जैसे कई बेहतरीन गीत हम सुनते रहते हैं लेकिन हमें पता नहीं होता कि यह गीत मदन मोहन कोहली का है. जानिए उनकी कहानी।

मदन मोहन कोहली

Source- TFI

“दो पल रुका, ख्वाबों का कारवां, और फिर चल दिए, तुम कहां हम कहां”, ये बोल सुनकर कौन विश्वास करेगा कि एक समय ऐसा भी था, जब बॉलीवुड से ऐसा कर्णप्रिय संगीत निकलता था, जिसे अपना स्वर देकर सोनू निगम और लता मंगेशकर जैसे लोग अमृत समान बना देते थे। पर क्या आपको पता है कि जिस व्यक्ति ने इस गीत को अपने संगीत से सजाया है, वो इसके रिलीज़ से दशकों पहले स्वर्ग सिधार चुके थे? उनकी संगीत में ऐसा जादू था कि आज भी हम उनकी ओर खींचे चले जाते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के लीजेंड मदन मोहन कोहली की, जिनका संगीत संगीत कम, अमृत अधिक प्रतीत होता था।

और पढ़ें: अजय देवगन की ‘रेनकोट’ भारत की सबसे अंडररेटेड फिल्मों में से एक क्यों है?

‘गजल का शहजादा’ मिला था उपनाम

60 का दशक था और बॉलीवुड पर ओपी नय्यर, शंकर जयकिशन, बर्मन परिवार और नौशाद का वर्चस्व व्याप्त था। ऐसे में किसी अन्य संगीतज्ञ के लिए अपना स्थान बनाना, विशेषकर बॉलीवुड में बड़ा ही कठिन कार्य था। परंतु मदन मोहन कोहली भी अलग ही मिट्टी के बने थे। 25 जून 1924 को, बगदाद में मदन मोहन कोहली का जन्म हुआ। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस बलों के साथ महालेखाकार के रूप में काम कर रहे थे। मदन मोहन ने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्ष मध्य पूर्व में बिताए थे।

1932 के बाद, उनका परिवार अपने गृह शहर चकवाल लौट आया, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक जिला है। मदन मोहन कोहली ने अगले कुछ वर्षों तक लाहौर के स्थानीय स्कूल में पढ़ाई की। लाहौर में रहने के दौरान, उन्होंने बहुत कम समय के लिए करतार सिंह नामक व्यक्ति से शास्त्रीय संगीत की मूल बातें सीखी। हालांकि, संगीत में उन्हें कभी कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला परंतु यहीं से एक कुशल संगीतज्ञ की नींव पड़ी।

द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने ब्रिटिश इंडियन आर्मी जॉइन की और दो वर्ष तक बतौर सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में अपनी सेवाएं दी। तत्पश्चात अपने संगीत के स्वप्न को पूर्ण करने हेतु वो मुंबई आ गए। 1946 में वो ऑल इंडिया रेडियो से जुड़े और पहले लखनऊ, फिर दिल्ली में स्थित कार्यालयों में बतौर कार्यक्रम सहायक के रूप में कार्य किया। मदन मोहन कोहली के  निरंतर प्रयासों का परिणाम था कि 1950 में उन्हें फिल्म मिली ‘आँखें’, जिसमें उन्हें मोहम्मद रफी के साथ काम करने का अवसर मिला। अगली फिल्म ‘अदा’ में उन्हें लता मंगेशकर के साथ कार्य करने का सुअवसर मिला और इन दोनों गायकों के साथ इनका नाता कभी नहीं टूटा। लता मंगेशकर तो उन्हें ‘गजल का शहज़ादा’ भी उपनाम दे चुकी थी।

उनकी मृत्यु के 29 वर्ष बाद रिलीज हुई थी वीर ज़ारा

1960 के दशक आते आते मदन मोहन कोहली बॉलीवुड में अपना नाम बना चुके थे। परंतु 1964 उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष सिद्ध हुआ। उस वर्ष उनकी दो फिल्में प्रदर्शित हुई “हकीकत” और “वो कौन थी”, इन फिल्मों ने उन्हें अद्वितीय कम्पोज़र के रूप में सिद्ध किया । हकीकत के लगभग सभी गीत सुपरहिट गए और “कर चले फ़िदा जानो तन साथियों” आज भी कई देशवासियों की आंखें नम कर देती है और फिर “वो कौन थी” के “लग जा गले” को कैसे भूल सकते हैं? आज भी जिस गीत को सुनकर अनेक संगीत प्रेमी प्रशंसा के पुल बांधने लगे, उसे मदन मोहन कोहली ने सुर दिए थे और लता मंगेशकर ने अपने स्वर। “वो कौन थी” बड़ी मामूली अंतर से सर्वश्रेष्ठ संगीत का फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने से चूक गई थी।

और पढ़ें: नवीन निश्चल- एक सौम्य मुख वाले अभिनेता के पीछे छिपा एक ‘डरावना दैत्य’

1970 का दशक आते आते मदन मोहन कोहली एक उत्कृष्ट संगीतज्ञ बन चुके थे, जिन्होंने “दस्तक” के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और ‘हीर राँझा’, “बावर्ची”, “कोशिश” जैसे सदाबहार फिल्मों को अपने सुरों से सजा दिया। परंतु 1975 में लिवर सिरोसिस के कारण इनका असामयिक निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में फिल्म उद्योग के सबसे लोकप्रिय सितारे – राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन एवं राजेन्द्र कुमार इत्यादि सम्मिलित हुए थे।

परंतु मदन मोहन का प्रभाव उनकी मृत्यु के साथ समाप्त नहीं हुआ। उनके द्वारा रचित संगीत लोगों को मृत्यु के पश्चात भी रिझाते रहें। विश्वास नहीं होता तो ‘वीर ज़ारा’ को ही देख लीजिए। मदन मोहन कोहली की मृत्यु हुई थी 1975 में, और उसके 29 वर्ष बाद भी उनके सुरों पर पूरा देश झूम उठा। एक प्रकार से शाहरुख खान को उनका आभार मानना चाहिए क्योंकि ‘वीर ज़ारा’ के ब्लॉकबस्टर होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण स्वर्गीय मदन मोहन कोहली का अद्वितीय संगीत ही था, जिसमें लता मंगेशकर ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

https://www.youtube.com/watch?v=Lpj9UuvnqJ0

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version