EWS छात्रों को दिल्ली के स्कूलों में नहीं मिल रहा एडमिशन, अपमान और तिरस्कार झेलने को मजबूर

निजी स्कूलों में योजनाबद्ध रूप से गरीब परिवारों के बच्चों को प्रवेश ही नहीं मिल पा रहा है। और तो और उन्हें अपमानित भी किया जा रहा है। दूसरी तरफ दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार है कि ऐसे मामलों को लेकर उसके कानों पर जू तक नहीं रेंगती।

EWS students in demonic clutches of AAP government

SOURCE TFI

दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों का जो स्कूल प्रबंधन है उसकी मनमानी अपने चरम पर है जिसके कारण छात्रों को बहुत अधिक परेशान होना पड़ रहा है। शिक्षा को केवल और केवल व्यापार का माध्यम बना चुके इन स्कूलों की मनमानी से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि इन परिवारों के बच्चों को प्राइवेट स्कूल में प्रवेश ही नहीं मिल पा रहा है। और तो और उन्हें अपमानित भी किया जा रहा है। दूसरी तरफ दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार है कि ऐसे मामलों को लेकर उसके कानों पर जू तक नहीं रेंग रहे हैं।

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25 प्रतिशत सीटें EWS के लिए आरक्षित हैं

वैसे तो राइट टू एजुकेशन अधिनियम के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें EWS यानी कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षित हैं लेकिन दिल्ली के निजी स्कूलों में इस अधिनियम का जमकर उल्लंघन हो रहा है और निजी स्कूलों में प्रवेश लेने जा रहे छात्रों के साथ अभद्रता की जा रही है। जिसकी जिम्मेदार दिल्ली की केजरीवाल सरकार है, जोकि निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने में असमर्थ दिखाई पड़ रही है। जहां अब इस मामले पर दिल्ली हाइकोर्ट ने उसे जोरदार फटकार लगाई है।

दरअसल, दिल्ली हाइकोर्ट में निजी स्कूलों की इस मनमानी के विरुद्ध छात्रों ने 39 याचिकाएं दायर की थीं जिसमें छात्रों की ओर से दावा किया गया था कि जब EWS वर्ग के छात्र प्रवेश लेने निजी स्कूलों में जाते हैं तो उनके साथ अभद्रता की जाती है। जिसके जबाव में दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि कमजोर वर्ग के बच्चे एडमिशन की पूरी प्रक्रिया का पालन करने के बाद भी प्रवेश के लिए दर-दर भटक रहे हैं और उन्हें अपामानित किया जा रहा है।

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गरीबी में पैदा हुए बच्च

कोर्ट ने कहा कि इन बच्चों ने और कोई अपराध नहीं किया है सिवाय इसके कि वे गरीबी में पैदा हुए हैं। कोर्ट ने आगे फटकार लगाते हुए कहा है कि शिक्षा निदेशालय को उन निजी स्कूलों की मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए जो राइट टू एजुकेशन अधिनियम का उल्लघंन कर रहे हैं। कोर्ट ने ये भी कहा है कि अब समय आ गया है कि न्यायपालिका लोगों तक पहुंचे, न कि लोग न्यायपालिका तक पहुंचने का इंतजार करें  क्योंकि कमजोर वर्ग के छात्रों को न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

ध्यान देने वाली बात है कि राइट टू ऐजूकेशन एक्ट के तहत प्राइवेट स्कूलों में कुल सीटों में से 25 प्रतिशत सीटों को आर्थिक और समाजिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए आरक्षित किया गया है। इन 25% सीटों पर दाखिलें के लिए केजरीवाल सरकार के अंडर आने वाले शिक्षा निदेशालय द्वारा आवेदन मंगवाए जाते हैं। जिसके बाद ड्रॉ के माध्यम से दाखिलें के लिए बच्चों का चयन किया जाता है। लेकिन दिल्ली के निजी स्कूलों में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है और ज्यादा से ज्यादा पूंजीपतियों से मोटी रकम वसूलकर उनके बच्चों को प्रवेश दिया जा रहा है। ज्ञात हो कि दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में एक-एक सीट की मारा मारी होती है जिसके चलते पूंजीपति अपने बच्चों का प्रवेश कराने के लिए मोटी रकम खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं ऐसे में निजी स्कूलों को भी अच्छी कमाई करने का मौका मिला जाता है।

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शिक्षा के व्यापार

अब सवाल ये उठता है कि शिक्षा के इन व्यापारियों के द्वारा कमजोर वर्ग के छात्रों के मौलिक अधिकारों के हनन के पीछे सरकार की भी कोई मिली भगत तो नहीं? क्योंकि  दिल्ली सरकार के अंडर आने वाले शिक्षा निदेशालय को पिछले कुछ वर्षो से निजी स्कूलों के द्वारा की जा रही इस तरह की मनमानी की शिकायतें मिल रही थीं। जिसमें EWS वर्ग के छात्रों के लिए निजी स्कूलों में आवंटित सीटों पर छात्रों को प्रवेश देने इनकार करने जैसी बातें की गई थी। लेकिन इसके बाद भी दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने निजी स्कूलों की इस मनमानी के विरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठाए। जिसके बाद इन छात्रों को न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।

दुनियाभर में अपने शिक्षा मॉडल का डंका पीटने वाली दिल्ली की केजरीवाल सरकार EWS छात्रों को उनका मौलिक अधिकार दिलवाने तक में समर्थ नहीं है और बातें करती है बड़ी-बड़ी। इस सरकार की विफलता और चालबाजियों का परिणाम आज यह है कि गरीब परिवार के बच्चों को परेशानियों से जूझना पड़ रहा है।

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