हार्लिक्स, बॉर्नविटा जैसे माल्ट ड्रिंक्स क्या आपके बच्चों के लिए लाभदायक हैं?

ब्रांडिंग के जरिए विदेशी कंपनियों ने लोगों की आंखों पर पट्टी बांध रखी है और उसकी आड़ में अपने व्यापार को जोर शोर से आगे बढ़ाते जा रही है. माल्ट बेस्ड ड्रिंक्स वाली कंपनियां भी वही काम कर रही हैं.

माल्ट ड्रिंक्स

Source- Google

भारत को संवारने में जितना अंतरराष्ट्रीयकरण का योगदान रहा है, उससे कहीं अधिक योगदान इसका देश को बिगाड़ने में रहा है। मैकाले की नीति ने शिक्षा व्यवस्था और गुरुकुल की कमर तोड़ते हुए लोगों को मूर्ख बनाने का काम किया था। कुछ इसी तरह धर्म जाति में तोड़कर देश की सांस्कृतिक विरासत का भी अंत किया गया। पश्चिम को पता था कि यदि किसी भी देश को बर्बाद करना हो तो बच्चों को बर्बाद करके ही मंशा पूरी की जा सकती है। ऐसे में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हुए यह दिखाने के प्रयास किए गए कि कैसे भारत के बच्चे विदेशी बच्चों से पीछे हैं, जबकि ऐसा कुछ भी, कभी भी था ही नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में बच्चों के लालन-पालन के ऊपर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माल्ट ड्रिंक्स एक बड़ा बिजनेस सेक्टर खड़ा हो गया, जो आज भी अपनी ब्रांडिंग के दम पर बाजार में टिका हुआ है और यह बच्चों के लिए कहीं से भी सही नहीं है।

और पढ़ें: पटेलों ने अमेरिका के बर्बाद मोटेल उद्योग पर कब्जा करके कैसे उन्हें ‘पोटेल उद्योग’ बना दिया?

विज्ञापनों के सहारे वैतरणी पार कर रही हैं माल्ट ड्रिंक्स कंपनियां

भारत सीधे तौर पर गांवों से जुड़ा रहा है लेकिन पश्चिम की अंधाधुन नकल ने लोगों की सोच को सीमित कर दिया है। पहले भी लोग अपने बच्चों के खान-पान पर तो ध्यान देते थे लेकिन वे इतने ज्यादा मूर्ख नहीं थे कि किसी साइंटिफिक रिसर्च की रिपोर्ट से डरकर बच्चों की सरसों के तेल से मालिश करना बंद कर देते। इसी तरह बच्चे का जन्म होने पर उसे मां का दूध प्रथम पोषण के तौर पर प्राप्त होता था। इसके बाद वे दालों का पानी-पीने से लेकर शुरू के दो वर्ष तक तो बस तरल आहार पर निर्भर रहते थे।

वहीं, ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़े होने के कारण बच्चों को सभी तरह के फल-फूल, अनाज, दालों आदि का मिश्रित भोजन प्राप्त होता था। बच्चों के आहार में फल और सब्जियों की प्रचुर मात्रा होती थी। माता पिता का मकसद यह होता था कि कैसे भी करके अपने बच्चों को ठोस आहार दिया जाए। इसी का नतीजा था कि पुराने समय के लोगों का जीवनकाल लंबा होता था लेकिन इस स्वास्थ्य लाभ को वैश्विक बाजार अपने लिए खतरा मानता था क्योंकि उसे पता था कि वे इस तरह से भारत में अपना बिजनेस स्थापित नहीं कर पाएंगे।

ऐसे में भारत में वैश्विक कंपनियों ने अपना मार्केट स्थापित करने के लिए विज्ञापनों का सबसे ज्यादा सहारा लिया। उन्होंने यह दिखाया कि भारत में जो बच्चे अभी खा-पी रहे हैं, वह असल में उनके लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है। विज्ञापनों में उन चीजों का विरोध तक किया गया, जिन्हें पहले माता पिता बड़े प्रेम से अपने बच्चों को खिलाते थे। ऐसे में विज्ञापनों के जरिए भारत में एनर्जी ड्रिंक्स से लेकर बच्चों की हाइट बढ़ाने तक के प्रोडक्ट्स की दस्तक हुई। विज्ञापनों में माता पिता को बच्चों की सेहत का डर दिखाया गया और उसकी हथकंडे को अपना कर विदेशी कंपनियों ने माल्ट बेस्ड ड्रिंक्स को बाजार में उतार दिया।

दूध को लेकर फैलाया गया भ्रम

दूध जिसे अपने आप में संपूर्ण आहार माना जाता था, उसे लेकर कहा गया कि दूध में कुछ पोषक तत्वों की कमी है। विज्ञापनों में कहा गया कि माता पिता अपने बच्चों के दूध में एनर्जी पाउडर मिलाएं। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत में हॉर्लिक्स, बॉर्नविटा और प्रोटीन एक्स जैसे माल्ट बेस्ड ड्रिंक्स की बाढ़ सी आ गई। विज्ञापन ने ही लोगों की बुद्धि को सबसे ज्यादा फेरा। जो माता पिता पहले अपने बच्चों की मालिश सरसों के तेल से करते थे, उन्होंने विज्ञापन में दिखाए डर के कारण जॉनसन एंड जॉनसन का पाउडर इस्तेमाल करना शुरू किया। हालांकि, उससे होने वाले कैंसर की खबरों ने उसके वजूद पर ही सवाल खड़े कर दिए थे और नतीजा यह हुआ कि यह पाउडर बंद भी हो चुका है।

ठीक उसी तरह मां बाप अपने बच्चों को होश संभालने के बाद से ही दूध में हॉर्लिक्स और बॉर्नविटा आदि पाउडर मिला कर पिलाने लगे। इन पाउडर्स को दूध में मिलाने से साइडइफेक्ट्स तो सामने आए ही, साथ ही कुछ बड़े चौंकाने खुलासे भी हुए। दूध, दही और घी खाने वाले बच्चों को बटर के नाम पर मिलावट वाला मक्खन दिया जाने लगा, जो कि बच्चों के लिए घातक सिद्ध हुआ। ऐसे में बच्चों में नए तरह के रोगों का जन्म इन्हीं सबके कारण हुआ था।

इनमें से कई प्रोडक्ट्स को लेकर सामने आया कि इनमें केवल चीनी के अलावा कुछ खास नहीं है। विज्ञापनों के जरिए लोग इन प्रोडक्ट्स को बेच रहे हैं जबकि इसके अपने नुकसान भी हैं। जब इन नुकसानों का पता जब अमिताभ बच्चन को चला तो उन्होंने भी इस तरह के सामानों का विज्ञापन करने से इनकार कर दिया, जो कि एक सराहनीय बात थी। हालांकि, एक बड़ा बॉलीवुड वर्ग है जो कि पैसे के लिए इस तरह की चीजों का खुलकर प्रदर्शन करता है।

जानकारी के मुताबिक हॉर्लिक्स में चीनी की अधिक मात्रा की बात सामने आने के बाद बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने हॉर्लिक्स का प्रमोशन करने से इनकार कर दिया था। Nutrition Advocacy in Public Interest (NAPI) ने अमिताभ के इस फैसले की सराहना की थी। असल में माता-पिता को अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए इस तरह के प्रोडक्ट्स को खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है लेकिन असल में यह बच्चों के स्वास्थ्य को ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।

और पढ़ें: एनर्जी ड्रिंक्स: जब समाधान बेचने के लिए समस्या बनाई गई, केस स्टडी

माल्ट ड्रिंक्स में चीनी की मात्रा

ज्ञात हो कि NAPI ने पीडियाश्योर, कॉम्प्लान, प्रोटीन एक्स, बोर्नविटा, बूस्ट के साथ-साथ बाबा रामदेव की पतंजलि पावर वीटा और श्री ओजस वीटा जैसे कई प्रमुख ब्रांड्स को उच्च चीनी सामग्री के प्रोडक्ट्स की लिस्ट में डाला है। इन ब्रांड्स में से अधिकांश के पास छोटे बच्चों के लिए इन पेय पदार्थों के उच्च पोषण लाभों के बारे में उच्च-शक्ति वाले विज्ञापन हैं लेकिन असल बात यह है कि ये सभी पेय पदार्थ बच्चों की सेहत के लिए विनाशकारी होते हैं।

NAPI ने यह भी बताया है कि इन प्रोडक्ट्स में कितना कार्बोहाइड्रेट होता है और आखिर ये कितना ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं-

  1. पीडियाश्योर: कार्बोहाइड्रेट 62.74 ग्राम जिसमें चीनी 23.77 ग्राम होती है
  2. कॉम्प्लानः कार्बोहाइड्रेट 62 ग्राम जिसमें चीनी 24 ग्राम होती है
  3. प्रोटीन एक्स: कार्बोहाइड्रेट 55 ग्राम जिसमें चीनी 32 ग्राम होती है
  4. बॉर्नविटा: कार्बोहाइड्रेट 85.2 ग्राम जिसमें चीनी 32 ग्राम होती है
  5. पतंजलि पावर वीटा: कार्बोहाइड्रेट 87.07 ग्राम जिसमें चीनी 72.66 ग्राम है
  6. बूस्ट: कार्बोहाइड्रेट 83 ग्राम जिसमें चीनी 26.5 ग्राम होती है
  7. श्री ओजस वीटा: चीनी 41.9 ग्राम

क्या हैं माल्ट ड्रिंक्स के नुकसान?

भ्रामक विज्ञापनों पर नकेल की आवश्यकता

आपको याद होगा कि पुराने समय में लोग सत्तू का सेवन करते थे, उनके लिए गुड़ से लेकर नींबू पानी का प्रयोग किसी अन्य पेय पदार्थ से ज्यादा लाभदायक होता था। गांव में खेत की शुद्ध सब्जियां और दालें खाने के कारण बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक किसी को बहुत अधिक परेशानी भी नहीं होती थी। वहीं, अब ज्यादा न्यूट्रीशियन के नाम पर लोगों को उल्लू बनाया जा रहा है। स्पष्ट बात यह है कि विज्ञापन के जरिए बच्चों की सेहत के नाम पर उनसे खिलवाड़ कर पैसा कमाया जा रहा है, जो कि बेहद ही आपत्तिजनक स्थिति है।

दूसरी ओर माता पिता भी अपने कामों में व्यस्त रहते हैं। वे अपने बच्चों को उतना समय नहीं दे पाते हैं, जो कि उन्हें उनके माता पिता ने दिया था। इसके चलते वे इन विज्ञापनों के झांसे में आ जाते हैं। उन्हें लगता है कि वे अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच यदि इन चीजों के जरिए अपने बच्चों को पोषण दे सकते हैं तो क्यों न दें। ‘व्यस्त’ मां बाप की मजूबरी का फायदा विज्ञापन के जरिए कंपनियां उठाती हैं, जिसका नतीजा यह होता है कि बच्चों में पोषण के नाम पर प्रदूषण पहुंचता है और वे और अधिक कमजोरी और स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार होते हैं।

ऐसे में सबसे बेहतर यह है कि हम अपने बच्चों को खाने पीने के मामले में जितना ज्यादा हो सके, देसी बनाकर रखें। साथ ही सरकार के लिए भी बेहद आवश्यक है कि वह ज्यादा से ज्यादा इन भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाए वरना ये हमारी अगली पीढ़ी का बड़ी आसानी से नाश कर देंगे।

और पढ़ें: 5 रुपये के रसना ने कैसे तय किया 109 करोड़ रुपये तक का सफर? ये रही पूरी कहानी

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version