सऊदी को कर दिया लेकिन अमेरिका ने भारत को नहीं किया ब्लैक लिस्ट, वजह जयशंकर हैं

अमेरिका ने धार्मिक आजादी के उल्लंघन को लेकर कुछ देशों को ब्लैक लिस्ट किया है। भारत विरोधियों के तमाम षड्यंत्रों के बाद भी इस सूची में भारत को शामिल नहीं किया गया। इसके बाद अमेरिकी सरकार के अंदर झगड़ा शुरू हो गया है। इस लेख में समझिए, कैसे भारत की कूटनीतिक जीत हुई है?

Jaishankar's dressing down of Anthony Blinken has an immediate effect

SOURCE TFI

Religious freedom list: भूमिका नहीं बनाऊंगा, सीधे पॉइंट पर बात करूंगा… अमेरिका के अंदर आज भारत की वज़ह से झगड़ा हो रहा है। जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने उन देशों को ब्लैकलिस्ट में शामिल किया है, जिन देशों में धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में है। संयोग की बात यह है कि इस सूची में भारत को शामिल नहीं किया गया है। इसके बाद अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने अमेरिकी विदेश मंत्री के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है और अब विदेश मंत्रालय और धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के बीच ठन गई है, जबकि नई दिल्ली में बैठकर जयशंकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे भारत की कूटनीति ने अमेरिकी सरकार के अंदर झगड़ा करवा दिया है।

2014 से पहले के भारत को याद कीजिए, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिकी सरकार के आगे नतमस्तक रहते थे। सरकार बदली, स्थितियां बदलीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बदली।

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भारत की बदलती छवि

प्रत्येक वर्ष अमेरिका का यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रीलिजियस फ्रीडम उन देशों का नाम अमेरिकी सरकार को सौंपता है जिन देशों में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है या फिर धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा होता है। अमेरिका के इस आयोग का भारत को लेकर पक्षपाती नज़रिया किसी से छिपा नहीं है। प्रत्येक वर्ष यह आयोग भारत को लेकर बेहद ही नकारात्मक रिपोर्ट जारी करता है। वो अपनी रिपोर्ट में बताता है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में है।

इस वर्ष जून में भी आयोग ने ऐसी ही एक रिपोर्ट जारी की थी। यह रिपोर्ट अमेरिका के विदेश मंत्रालय के सौंपी जाती है। इसी आधार पर अमेरिका का विदेश मंत्रालय उन देशों को ब्लैक लिस्ट में शामिल करता है जहां धार्मिक स्वतंत्रता (religious freedom) पर खतरा है। पिछले तीन वर्षों की भांति इस बार भी इस आयोग ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय को जो सूची सौंपी उसमें भारत का नाम शामिल था लेकिन पिछले तीन वर्षों की भांति इस बार भी अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने अंतिम सूची जारी करते वक्त उसमें भारत का नाम शामिल नहीं किया। भारत का नाम शामिल न होने से अमेरिकी आयोग भड़क गया है। अब वो अमेरिकी विदेश मंत्रालय के विरुद्ध तमाम-उल-जलूल बयानबाजी कर रहा है, लेकिन उसकी ऐसी बयानबाजी से क्या ही होता है।

आइए, पहले आपको बता देते हैं कि चिंताजनक देशों की सूची में इस बार अमेरिका ने किसे-किसे रखा है? इसके बाद आपको बताएंगे कि भारत को (religious freedom) इस सूची में शामिल करने की हिम्मत अमेरिका क्यों नहीं कर पाया?

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तो भारत को क्यों नहीं इस सूची में रखा?

इस बार की सूची में जो देश शामिल हैं उनके नाम हैं- सऊदी अरब, क्यूबा, निकारागुआ, चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, म्यांमार। अब आप सोच रहे होंगे कि अमेरिकी आयोग ने जब भारत का नाम दिया था तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने सूची में भारत को क्यों नहीं रखा? इसके पीछे की वज़ह हैं एस. जयशंकर। जी हां, जब अमेरिकी आयोग ने अपनी तरफ से सूची जारी की थी उस वक्त भारत का इसमें नाम था। उसी वक्त भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई थी। भारत ने कहा था, “दुख की बात है, USCIRF अपनी रिपोर्टों में बार-बार तथ्यों को गलत तरीक़े से पेश करना जारी रखे हुए है। हम अपील करेंगे कि पहले से बनाई गई जानकारियों और पक्षपातपूर्ण नज़रिये के आधार पर किए जाने वाले मूल्याकंन से बचा जाना चाहिए।”

भारत ने कड़ा विरोध तो किया ही था, इसके साथ ही हम पहले भी देख चुके हैं कि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के सामने ही भारत की बात मजबूती के साथ रखी थी और कई मुद्दों पर अमेरिका के दोहरेपन को उजागर किया था। इसके बाद ब्लिंकन जानते थे कि अगर भारत को ब्लैक लिस्ट की सूची में शामिल किया तो कूटनीतिक तौर पर यह सही नहीं होगा। इसके साथ ही अमेरिका जानता है कि ऐसी पक्षपाती रिपोर्ट के आधार पर अगर भारत को ब्लैक लिस्ट में शामिल किया तो यह अमेरिका की बड़ी कूटनीतिक हार होगी क्योंकि भारत अब किसी भी मुद्दे को यूं ही नहीं जाने नहीं देता, जबकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के ऊपर भारत को इसी सूची में शामिल करने के लिए तमाम दवाब डाला जा रहा था।

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समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, ‘भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद’ और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आज़ादी से जुड़े अमेरिकी आयोग की ओर से अमेरिकी विदेश मंत्रालय पर इस एलान से पहले इस सूची में भारत का नाम रखे जाने को लेकर भारी दबाव अभियान चलाया गया था। इसके बाद भी अमेरिका ने इस सूची में भारत का नाम शामिल नहीं किया। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरते भारत की ताकत को दिखाता है, साथ ही अमेरिकी आयोग की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।

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