जेपी नड्डा अब तक के सबसे खराब भाजपा अध्यक्ष हैं

आप इस तथ्य से अहमत हो सकते हैं परंतु सत्य यही है। नड्डा ने जब से भाजपा अध्यक्ष का कार्यभार संभाला है भाजपा का ग्राफ रसातल में जाता दिखाई दे रहा है।

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा

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जब आपको कोई भवन का निर्माण कार्य सौंपा जाता है, तो आप क्या करेंगे? उस भवन को जांचेंगे, परखेंगे, यदि वह पूर्व में ही निर्मित हो, तो उसे अधिक सुदृढ़ और समृद्ध बनाएंगे या उसे अधिक धसकाने और नष्ट करने में अपना समय व्यतीत करेंगे? परंतु कुछ व्यक्ति इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए दिखाई देते हैं, जिनमें अग्रणी है भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा जी।

अब आप सोच रहे हैं, ये कैसी बातें कर रहे हैं हम? तनिक कार्यकाल उठाकर देखिए इनका, आपको भी पता चलेगा कि जेपी नड्डा कौन है और क्या करते हैं। जिनसे अपना स्वयं का राज्य नहीं संभल रहा, उनकी कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह तो उठाए ही जाएंगे, ऐसे हैं जेपी नड्डा। इनके कार्यकाल को संतोषजनक कहना ही इस शब्द का अपमान समान है।

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भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की कार्यशैली पर उठ रहे सवाल

परंतु भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ऐसा भी क्या किया, जिसके पीछे वे आलोचना का पात्र बनने के योग्य हो चुके हैं?
बहुत ही सरल है, आपको बनी बनाई सत्ता मिल रही हो तो आपका बहुत सरल सा कार्य है- उस सत्ता को पल्लवित पोषित होने देना और यदि कोई बहुमूल्य योगदान नहीं दे सकते, तो कम से कम लंका तो मत लगाइए।
परंतु जेपी नड्डा ने वो सब किया जिसके पीछे उनका स्वागत तालियों से तो बिल्कुल न हो। वो कैसे?

असल में जेपी नड्डा ने जब से भाजपा अध्यक्ष का कार्यभार संभाला है, भाजपा का ग्राफ रसातल में जाता दिखाई दे रहा है। इनका कार्यकाल तो वैसे 2023 में समाप्त होने वाला है परंतु सूत्रों के अनुसार इनके 2024 के चुनावों तक टिकने के प्लान है और ये पार्टी के लिए बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं।

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हिमाचल में हारीं भाजपा

परंतु प्रश्न तो अब भी वही है – ऐसा क्यों? क्या कमी रह गई जेपी नड्डा के नेतृत्व में? उदाहरण के लिए आज भाजपा के अनेक इकाई ऐसे हैं जो केवल नाममात्र के रह गए। अंदरूनी कलह के कारण कोई कहीं हार रहा है, तो कोई कहीं। अगर भाजपा गुजरात में या उत्तर प्रदेश या फिर उत्तराखंड में विजयी हुई हैं तो वह केवल सशक्त नेतृत्व के कारण और यहां नड्डा का कोई प्रभाव नहीं है।

प्रभाव की बात चली ही हैं तो तनिक दिल्ली और बिहार की ओर भी निकल पड़ते हैं। दोनों ही जगह नेतृत्व का दूर दूर तक कोई अस्तित्व नहीं है। अगर है भी तो आपसी कलह की भेंट चढ़ जाते हैं, जिसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण हमें हिमाचल प्रदेश में देखने को मिला। यहां पार्टी कांग्रेस द्वारा दी गई टक्कर या किसी प्रभावशाली नेतृत्व के कारण उतना नहीं पराजित हुई, जितना अंदरूनी कलह और जेपी नड्डा द्वारा इन कलह को सुलझा पाने में मिली असफलता के कारण।

कई चुनावों में मिली हार

आश्चर्य की बात तो यह है कि हिमाचल वो स्थान है, जहां से स्वयं जगत प्रकाश नड्डा आते हैं। ऐसे में अपने ही गृह राज्य की लंका लगाना किस राजनीति का हिस्सा है, तनिक कोई हमें भी बताए। इसके अतिरिक्त वर्तमान दिल्ली के एमसीडी चुनावों के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा। ये तो कुछ भी नहीं है, पंजाब और पश्चिम बंगाल में जिस तरह से अवसर होते हुए भी भाजपा को दुरदुरा के भगाया गया था, उसका अब तक कोई तोड़ नहीं मिला है। क्या ऐसे जिताएंगे राज्य को?

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जब राजनाथ सिंह को भाजपा की कमान सौंपी गई थी, तो उन्होंने एक मरणासन्न पार्टी में प्राण फूंकते हुए उसे शिखर तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया। तद्पश्चात अमित शाह ने इस पार्टी को वो शिखर दिया, जिस पर पहुंचना आज भी कई भाजपाइयों के लिए स्वप्न मात्र ही होगा। परंतु इन सारे किये कराए पर जिस प्रकार से जेपी नड्डा पानी फेर रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि यदि इन्हें समय रहते नहीं रोका गया, तो भाजपा के अवनति में अधिक समय नहीं लगेगा।

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