भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से मिलने वाली शिक्षाएं: चैप्टर 1- रणनीतिक वापसी

जहां एक तरफ भगवान राम का जीवन धर्म प्रधान है तो वहीं दूसरी तरफ भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कर्म प्रधान रहा है। हम अपने रोजमर्रा के जीवन में- और जीवन के बड़े निर्णयों में भगवान श्रीकृष्ण से बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस विशेष सीरीज़ के पहले लेख में जानिए, 'रणनीतिक वापसी' की शिक्षा।

Shri Krishna teachings

Source- TFI

Shri Krishna teachings: भारतीय संस्कृति में कई देवी-देवताओं का उल्लेख होता हैं और सभी का अपना एक अलग महत्व है, परन्तु श्रीकृष्ण एक ऐसे इष्ट हैं जिन्हें कृष्ण, वंशीधर, गिरधारी, श्याम जैसे अनेक नामों से जाना जाता है और लोग इनके हर स्वरूप को चाहे वो बाल हो या फिर परिपक्व सभी की पूजा करते हैं। यही नहीं भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण प्रेम, तटष्ठता और मजबूती का भी प्रतीक हैं। आज के इस लेख में हम भगवान श्रीकृष्ण द्वारा लिए गए निर्णयों से क्या सीख सकते हैं, आइए Shri Krishna teachings पर चर्चा करते हैं।

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Shri Krishna teachings 1: रणछोड़ श्रीकृष्ण

वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण के पूरे जीवन का एक-एक अंश हमें कुछ न कुछ सिखाता है लेकिन उनका मथुरा को छोड़कर द्वारका में बस जाने और वहीं अपना राज चलाने के पूरे प्रकरण से हम क्या सीखते हैं, यह समझाना आज के संदर्भ में अति महत्वपूर्ण हो जाता है। भगवान के द्वारा मथुरा छोड़कर जाने के निर्णय के कई अर्थ निकाले गए जिनमें से एक तो यही था कि श्रीकृष्ण राक्षसों का सामना नहीं कर सकते हैं इसलिए वे मथुरा छोड़कर भाग गए। लेकिन क्या यही सत्य है? उन्हें रणछोड़ तक कहा गया परन्तु पूरे प्रकरण में जो सत्य है वह हमें बताता है कि विषम परिस्थितियों में व्यक्ति को कूटिनीति के साथ काम करना चाहिए न कि अपने घमंड में चूर होकर अनर्गल निर्णय लेना चाहिए।

मथुरा से द्वारका जाने की कथा का आरंभ कंस के वध और जरासंध के द्वारा अनेक बार मथुरा पर आक्रमण से होता है। दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण ने एक मानव रूप में अवतार लिया था और मानव रूप में अवतार लेने के कुछ बंधन भी होते हैं जिन्हें निभाना पड़ता है और कृष्ण भी उन्हीं बंधनों को निभा रहे थे। इसलिए कंस का वध करने के पश्चात् जब उसका मित्र और संबंधी जरासंध मुथरा पर 16 बार आक्रमण करता है और हर बार कृष्ण से पराजित हो जाता है।

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Shri Krishna teachings 2: श्रीकृष्ण ने जब निर्णय लिया

ऐसी परिस्थितियों से पूरी मथुरा दो-चार हो रही थी, तब कृष्ण एक राजा के रूप में आत्मचिंतन करते हैं और सोचते हैं कि जब जरासंध बार-बार आक्रमण करता है तो मृत्यु मेरे सैनिकों की और प्रजा की होती है। इस कारण मथुरा राज्य विकास नहीं कर पा रहा है क्योंकि उसे बार-बार युद्धोपरांत होने वाली हानियों से निपटने में समय लगता था, इतने में दोबारा युद्ध हो जाता था।

इसे ध्यान में रखकर श्रीकृष्ण ने निर्णय लिया कि मथुरा का त्याग कर देना चाहिए और रातों-रात श्रीकृष्ण मथुरा त्याग कर द्वारका नगरी में जा बसे। परन्तु वर्ममान समय में इस निर्णय को तोड़-मरोड़ कर बताया जाता है और श्रीकृष्ण की छवि खराब करने के लिए उन्हें रणछोड़ कह दिया जाता है। जबकि उन्होंने जो निर्णय लिया उसे अगर कूटिनीति के हिसाब से देखा जाए तो वह एक सही निर्णय था, जो कोई भी राजा अपनी प्रजा और राज्य के विकास के लिए करता।

इसके अलावा द्वारका बसाने के पीछे एक और कारण था जिसे समझने के लिए द्वारका के भूगोल को समझना आवश्यक है। द्वारका के भूगोल को देखें तो हमें देखने के लिए मिलता है कि द्वारका एक ऐसे स्थान पर स्थित है जहां जल ही जल है सिर्फ एक ओर से सेना धरती के माध्यम से प्रवेश कर सकती है। इन सभी तर्कों को देखने के बाद द्वारका को बसाने का भगवान श्रीकृष्ण का निर्णय एक सही निर्णय था।

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रूस-यूक्रेन युद्ध

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा लिए गए इस निर्णय को वर्तमान समय में चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के द्वारा भी समझ सकते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध को देखें तो उसके प्रारंभ से ही हमें देखने के लिए मिल रहा था कि रूस कूटनीतिक से साथ निर्णय ले रहा है। परन्तु डोनबास शहर जीतने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि रूस पूर्ण रूप से यूक्रेन के साथ कूटनीति का खेल खेल रहा है। असल में रूस ने जब यूक्रेन पर आक्रमण किया तो पूरे विश्व को और यूक्रेन को भ्रम में डालने के लिए उसने राजधानी कीव पर आक्रमण किया।

जिसके बाद यूक्रेन की पूरी सेना कीव की सुरक्षा में तैनात कर दी गई इधर रूस ने अपनी सेना को डोनबास शहर पर आक्रमण के लिए भेज दिया और डोनबास को स्वतंत्र घोषित कर दिया। यूक्रेन में जब यह सूचना पहुंची तब तक बहुत समय बीत चुका था और डोनबास भी हाथ से जा चुका था। यह होती है कुटनीति जो हमेशा युद्ध में काम करती है।

ये है बड़ी सीख

यहां हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि रूस का उदाहरण इसलिए दिया गया है ताकि आप सरलता से समझ सकें, नहीं तो रूस की श्रीकृष्ण के साथ तुलना करने का हमारा कोई उद्देश्य नहीं है, तुलना हो भी हीं सकती है। सारगर्भित बात यह हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के निर्णय (Shri Krishna teachings) से स्पष्ट होता है कि आपत्ति-विपत्ति के समय पर घमंड से नहीं, सूझ-बूझ के साथ निर्णय लेने की आवश्यता होती है।

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