आम जनमानस के हीरो थे मिथुन चक्रवर्ती लेकिन बॉलीवुड ने उनके साथ न्याय नहीं किया

मिथुन चक्रवर्ती ने अपनी फिल्मों के जरिए ऐसा कहर ढ़ाया था कि डर के मारे या यूं कहें कि साजिश के तहत 2 वर्षों तक जानबूझकर फिल्मफेयर का आयोजन तक नहीं किया गया था.

Mithun Chakraborty biography Hindi

Source- TFI

Mithun Chakraborty biography Hindi: “जब तक सच जूते पहनता है, झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर आ चुका होता है!” यह संवाद द कश्मीर फाइल्स में जितना कचोटता है, उतना ही एक अभिनेता के वास्तविक जीवन को स्मरण कराता है कि क्यों हमारा फिल्म उद्योग समान नहीं है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती परंतु कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें बॉलीवुड में वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो योग्य थे। परंतु वो कहते हैं, जनता का समर्थन ही सबसे बड़ा पुरस्कार है और इस दृष्टि से गौरांग चक्रवर्ती यानी अपने मिथुन दा को भारतीय फिल्म उद्योग में शायद रजनीकांत या कमल हसन ही तनिक टक्कर दे सकते थे। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty biography Hindi) बॉलीवुड के एलीट वर्ग से ठुकराए जाने के बाद भी बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय सितारों में से एक बने रहे यानी जनता के स्टार बने रहे।

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Mithun Chakraborty biography Hindi – पहली फिल्म से ही मचाया था धमाल

1980 के दशक के अंत में देश राजनीतिक उथल पुथल से जूझ रहा था और बॉलीवुड भी। पुराने सितारों की चमक फीकी पड़ चुकी थी और अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र, शशि कपूर, फिरोज़ खान जैसे सितारों ने एक अलग प्लेटफ़ॉर्म स्थापित कर लिया था। इसी बीच क्षेत्रीय सिनेमा का उद्भव भी ज़ोरों पर था, जिसमें अग्रणी थे तेलुगु सुपरस्टार एनटी रामा राव। परंतु इसी बीच एक ऐसे व्यक्ति का आगमन हुआ, जिसे वैभव और समृद्धि से तनिक भी लगाव नहीं था। कभी नक्सलबाड़ी की खाक छानकर आया यह व्यक्ति सिनेमा में क्रांति लाने आया था।

1976 में अपनी पहली ही फिल्म मृगया से मिथुन चक्रवर्ती ने धमाका कर दिया। उन्होंने इस फिल्म में एक जनजातीय का किरदार निभाया, जिसमें उन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। उनकी पहली ही फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो वही मिथुन दा को स्वयं सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उनकी कथा खत्म नहीं हुई थी। उनके लिए अभी यश और समृद्धि बाकी थी और वो दी बब्बर सुभाष ने। 1982 में आई डिस्को डांसर, जिसमें वो प्रमुख भूमिका में थे और साथ में राजेश खन्ना भी थे परंतु पूरे फिल्म में केवल और केवल मिथुन चक्रवर्ती ही छाए रहे और यहीं से प्रारंभ हुआ मिथुन दा के सुपरस्टारडम का सफर।

जानबूझकर नहीं किया गया फिल्मफेयर का आयोजन

जरा सोचिए, जो अभिनेता राजेश खन्ना को ही अपने अभिनय से साफ कर दे, वो अन्य अभिनेताओं का क्या हाल करेगा? इसलिए बॉलीवुड के एलीट क्लब ने मिथुन को प्रारंभ से दुत्कारे रखा, मानो वो भारतीय सिनेमा का हिस्सा हैं ही नहीं। मिथुन 1986 और 1987 में अपने करियर के शिखर पर थे पर उन दोनों वर्षों में फिल्मफेयर पुरस्कारों को जानबूझकर आवंटित नहीं किया गया, अन्यथा आधे से अधिक पुरस्कार तो यही महोदय उठा ले जाते। कभी जो सुशांत सिंह राजपूत, कार्तिक आर्यन, यहां तक कि अजय देवगन और विकी कौशल के साथ होता था, उस समय उससे भी बुरा भेदभाव मिथुन चक्रवर्ती के साथ हुआ था।

परंतु उन्हें तनिक भी अंतर नहीं पड़ा क्योंकि उनके पास सर्वोच्च शक्ति थी – जनशक्ति। इसी के बल पर उन्होंने अगले कई वर्षों तक भारतीय सिनेमा पर राज किया। उनका कद तो ऐसा था कि मणि रत्नम उन्हें अपनी बहुचर्चित फिल्म इरुवर में प्रमुख भूमिका में लेना चाहते थे परंतु उन्होंने अपने बाल कटवाने से मना कर दिया। कहते हैं कि यही रोल बाद में मोहनलाल को मिला तो सोचिए अगर मिथुन दा इसे स्वयं करते तो कितना प्रभाव पड़ता।

ज्ञात हो कि मिथुन दा केवल प्रतिभा के ही नहीं, व्यापारिक क्षमता के भी धनी थे। रोहित शेट्टी, अभिषेक अग्रवाल जैसे लोग तो अभी बालक हैं! एक समय मिथुन ने ऊटी में एक विशाल रिसॉर्ट खरीद लिया, जिसका नाम रखा Mithun’s Dream Factory, जहां से वो अपनी फिल्मों को आवश्यकता से कहीं कम दाम पर शूट करते और दोगुना, तिगुना लाभ कमाकर देते। फिल्म की क्वालिटी कैसी भी हो, उनके स्टारडम पर तनिक भी अंतर नहीं पड़ा और जनमानस में उनकी लोकप्रियता विद्यमान रही। भले ही उन्हें ज्यादा अवार्ड न दिए गए लेकिन आज भी घर-घर में उनकी फिल्में देखने को मिल ही जाती हैं।

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