जब मुख्यधारा के अभिनेता नहीं बन पाए तो मजबूरी में कला सिनेमा तक सिमट कर रह गए नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह आज स्वयं को गर्व से कला फिल्मों का अभिनेता कहते हैं। लेकिन सत्य यह है कि उन्होंने मुख्यधारा की मसालेदार फिल्मों में भी खूब हाथ-पैर फड़फड़ाए लेकिन चले नहीं तो मजबूरी में कला सिनेमा तक सिमटकर रह गए।

Naseeruddin Shah A failed mainstream actor turned Art cinema actor

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बहुत समय पूर्व एक महान आत्मा ने कहा था कि “अगर आप अच्छे नहीं दिखते, तो आप बहुत अच्छे एक्टर हैं”। इस एक बयान ने काफी बवाल मचाया था और इस बयान के कारण उक्त अभिनेत्री को काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी। पर वो कहते हैं न कि हर वस्तु के अस्तित्व के पीछे एक कारण है, तो इस बयान का भी अपना महत्व था, क्योंकि यह जाने अनजाने कुछ लोगों पर लागू भी होता है, और न जी, यहां ओम पुरी, इरफान खान या केके मेनन जैसे अभिनेताओं की बिल्कुल चर्चा नहीं हो रही है।

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सोशल मीडिया पर निकलती है इनकी कुंठा

यहां बात हो रही है नसीरुद्दीन शाह की जो बनना चाहते थे फिल्म उद्योग के अगले दिलीप कुमार, परंतु उनके निर्णयों एवं उनके कर्मों ने न उन्हें घर का छोड़ा न घाट का, जिसकी कुंठा वे यदा कदा सोशल मीडिया पर या फिर अन्य माध्यमों से निकालते रहते हैं। नसीरुद्दीन शाह को देखकर एक कथा अनायास ही स्मरण हो आती है। एक लोमड़ी थी, जिसे वृक्ष पर लटके अंगूर बहुत भाए। उसने बहुत प्रयास किये, परंतु वह अंगूर उसके हाथ न आए। अंत में झल्लाकर वह अपनी राह निकल पड़ी और फिर जिससे भी मिलती उससे कहती कि “उस ओर न जाना, अंगूर खट्टे हैं!”

ऐसी ही कुछ है नसीरुद्दीन शाह की कथा। लोग इनकी प्रशंसा में जाने क्या-क्या किवदंती सुनाते या लिखते हैं, परंतु एक सत्य ये भी है कि नसीरुद्दीन शाह न कमर्शियल सिनेमा और न ही समानांतर सिनेमा में कोई अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित कर पाए। कभी अमरीश पुरी अपने अभिनय से भारी पड़ते, तो कभी गिरीश कर्नाड, कुलभूषण खरबन्दा जैसे लोग भारी पड़ जाते, और अभी तो हमने स्मिता पाटिल पर चर्चा भी नहीं प्रारंभ की है।

यह तो कथा है समानांतर सिनेमा की, नसीरुद्दीन बाबू कमर्शियल सिनेमा में भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाए, और सदैव उन्हें सपोर्टिंग रोल से संतोष करना पड़ा। 1980 से मुख्यधारा की सिनेमा यानी बॉलीवुड में ‘हम पांच’ से डेब्यू करने वाले नसीरुद्दीन को अपनी प्रथम कमर्शियल सक्सेस अपने बल पर मिली ‘जाने भी दो यारों’ से।

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सफलता ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई

बॉलीवुड की सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार ‘जाने भी दो यारों’ में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी ‘मासूम’। परंतु यह सफलता ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई, और नसीरुद्दीन शाह नयी प्रतिभाओं के समक्ष शीघ्र ही घुटने टेकते हुए दिखाई दिए। उदाहरण के लिए जब 1986 में ‘कर्मा’ आई, तो इसमें अभिनय सम्राट “दिलीप कुमार भी थे और उस दौर के नये नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। परंतु नसीरुद्दीन पर लगभग तीनों ही भारी पड़े, और तो और नकारात्मक किरदार के रूप में अनुपम खेर भी इनसे अधिक प्रभावी दिखाई दिए।

‘त्रिदेव’ जैसी सुपरहिट फ़िल्म देकर 90 का दशक आते-आते नसीर ने कमर्शियल फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। परंतु यहां भी इन पर जैकी श्रॉफ भारी पड़े, और सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे तब युवा अभिनेता सनी देओल भी अपने अभिनय से इन्हें पटक-पटक कर धो रहे थे। अभी तो हमने चमत्कार पर चर्चा भी नहीं की, जहां कुछ ही फिल्म करके आए शाहरुख खान ने इन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। इस बात की चुभन मियां नसीरुद्दीन को सदैव रही। इनके अनुसार, “मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं कमर्शियल फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ”।

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डर्टी पिक्चर’ जैसी फिल्में

ये चुभन केवल यहीं तक सीमित नहीं रही। 2008 में आई ‘अ वेडनेसडे’ ने भले ही नसीरुद्दीन को एक कमाल का मंच प्रदान किया, जिसे उन्होंने कुछ हद तक भुनाया भी, परंतु वे इसी तक सीमित रह गए। ‘इश्किया’, ‘राजनीति’, ‘सात खून माफ’ और ‘डर्टी पिक्चर’ जैसी फिल्मों में वे इसके अंश मात्र भी नहीं रहे, और यदि कोई इस विषय पर प्रश्न उठा दे, तो कहते हैं, इस देश में उनके जैसों के लिए माहौल नहीं है, इस देश में उनका रहना “अझेल हो चुका है”!

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