Dharavi redevelopment project Adani: पतली-पतली गलियां, टीन की चादरों वाली छत, भीड़ में रहने वाले लोग, ये परिदृश्य आपको मुंबई के धारावी में देखने को मिलता है। विदेशी लोग इसे ‘स्लम’ के नाम से भी पुकारते हैं। कोई भी विदेशी जब भारत घूमने आता है तो उसके मन में हमारे देश की कई मशहूर जगहों के नाम आते है जैसे- आगरा का ताजमहल, दिल्ली का चांदनी चौक, लखनऊ का इमामबाड़ा और धारावी का स्लम।
स्लम? अब आप सोच रहे होंगे कि भला मैंने इस सूची में स्लम को घूमने की जगहों में क्यों रखा? अरे इस स्लम को मैंने नहीं बल्कि पश्चिमी देशों ने रखा है। पश्चिमी देशों के लोगों ने ‘स्लम’ को भारत की पहचान बनाकर छोड़ा है। भारत, जो अपने आप में ही संस्कृति और विविधता से भरा हुआ देश है, उसे विदेशी अभी भी स्लम के तौर पर इंगित करते आए हैं।
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अडानी बदलेंगे धारावी की तस्वीर
लेकिन अब विदेशियों के इन सपनों पर पानी फिरने वाला है क्योंकि अब सबसे बड़े स्लम एरिया यानी धारावी की कायाकल्प होने वाला है। इस बड़ी जिम्मेदारी के कार्य को अडानी इंफ्रा को सौंपा गया है। जी हां, भारतीय अरबपति अब धारावी की तस्वीर को पूरी तरह से बदलने जा रहे हैं। यहां पर अडानी इंफ्रा ने 5,069 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। Dharavi redevelopment project के लिये Adani सबसे बड़ी बोलीदाता के रूप में उभरा, जिसके बाद यह कार्य इनको सौंपा गया हैं।
Dharavi Redevelopment Project का प्लान वैसे तो वर्ष 2004 से चल रहा था, लेकिन अब जाकर Adani को इसके टेंडर को मंजूरी मिली है, जिससे अब भारत को स्लम टूरिज्म की बेड़ियों से छुटकारा मिल जाएगा। यह बोली 20 हजार करोड़ रुपये की परियोजना के लिए लगाई गई है। यह क्षेत्र 2.5 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके अंतर्गत 6.5 लाख झुग्गीवासियों को एक बार फिर से बसाने के लिए कुल समय सीमा सात वर्ष की है। इसके डेवलपर को पुनर्वास, नवीनीकरण, सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के सभी घटकों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।
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भारत में स्लम टूरिज्म
ज्ञात हो कि एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती मुंबई की धारावी वर्ष 2019 में भारत आने वाले यात्रियों के लिए पसंदीदा पर्यटक अनुभव का केंद्र बन गयी थी, जिसने ‘ताजमहल’ को भी पीछे छोड़ दिया था। अब आप समझ सकते हैं कि विदेशियों के दिमाग में भारत की क्या स्थिति है और वो आज भी भारत को लेकर क्या सोचते हैं।
भारत की राजधानी के बीचों-बीच 553 एकड़ की झुग्गी बस्ती में दस लाख से अधिक लोग रहते हैं लेकिन अगर इसमें स्थानीय लोगों की तलाश की जाए, उनकी संख्या नगण्य होगी। यहां पर कहा जा सकता है कि ऐसी बस्तियों में 99 फीसदी लोग बाहर के ही होते हैं या तो वे अन्य राज्यों से आजीविका की तलाश में उस शहर में पहुंचते हैं और कम खर्च के कारण वैसी जगहों पर बस जाते हैं या लोगों की इस भीड़ में वे घुसपैठिए शामिल होते हैं, जो अन्य देशों से चोरी-छिपे भारत में घुसकर यहां अपना डेरा जमा लेते हैं।
कई ऐसी ‘एजेंडाधारी’ फिल्में भी आई है जिसमें भारत को केवल एक स्लम के रूप में दिखाया गया है। उदाहरण के लिए साल 2008 में आई स्लमडॉग मिलियनेयर को ही ले लीजिये। इस फिल्म की पूरी पृष्ठभूमि में आपको मुंबई के झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोग दिखते हैं। फिल्म में भारत को एक बहुत ही गरीब, पिछड़े देश के रूप में दिखाया गया था। इसके बावजूद फिल्म को ऑस्कर में पुरस्कार मिले। ऐसे ही रणवीर सिंह की गली बॉय को भी ऑस्कर में भेजा गया था।
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आज के समय में भारत, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। देश की इकोनॉमी सबसे बेहतर स्थिति में है, हम कई देशों को पीछे छोड़ रहे हैं लेकिन पश्चिमी देशों का चश्मा अभी भी पुराना ही है। पश्चिमी देशों द्वारा भारत को आज भी उसी तराजू में तोला जाता है, जहां गरीबी का बोल-बाला है। पश्चिमी लोग आज भी भारत में गरीबी ही देखने आते हैं, उन्हें यहां की चमक, यहां का विकास, यहां का विस्तृत इतिहास देखने में कोई भी उत्सुकता नहीं होती, जो काफी निंदनीय है। लेकिन अब जब मुंबई के सबसे बड़ी मलिम बस्ती की रंगत में बदलाव होगा तो आने वाले समय में भारत में स्लम पर्यटन का नामो निशान ही मिट जाएगा।
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