छोटे नेता पार्टी को तोड़ दें उससे पहले पीएम मोदी और अमित शाह को मोर्चा संभालना होगा

हिमाचल चुनाव में गुटबाजी भाजपा की हार के प्रमुख कारणों में से एक बनी। मौजूदा वक्त में केवल हिमाचल ही नहीं और भी कई राज्यों में भाजपा इस समस्या का सामना कर रही है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो ये पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है।

गुटबाजी भाजपा

Source- TFI

राजनीति बड़ी ही विचित्र चीज है। यहां कौन कब किसका सगा बन जाए और किसको दगा दे दे कहा नहीं जा सकता। अक्सर ही देखने को मिलता है कि कई बार पार्टियों के अंदर गुटबाजी शुरू हो जाती है, जो कई बार उनके लिए परेशानी का कारण भी बन जाती हैं। कई बार ऐसा देखने मिला है जब अंदरुनी कलह की वजह से कई राज्यों में सरकारें तक गिर गई। अब यही गुटबाजी भाजपा के लिए भी एक बार फिर से समस्या खड़ी करती नजर आ रही है।

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हिमाचल में हाथ से गई सत्ता

हाल ही में दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों के नतीजे आए। जिसमें गुजरात चुनाव में तो भाजपा ने रिकॉर्डतोड़ जीत हासिल की लेकिन हिमाचल प्रदेश में पार्टी को निराशा हाथ लगी। जिसके बाद भाजपा  हार के कारणों की समीक्षा करने में लगी है। हिमाचल चुनावों में भाजपा के हार के प्रमुख कारणों में मुख्य वजह पार्टी की आपसी गुटबाजी बताई जा रही है। गुटबाजी के परिणाम कितने भयानक होते हैं ये कांग्रेस के हालातों को देखकर पता चलता है। किस तरह आपसी गुटबाजी की वजह से कांग्रेस को पंजाब की सत्ता से हाथ धोना पड़ा। वहीं अगर अब बीजेपी ने हिमाचल की हार से सबक नहीं लिया तो पार्टी के लिए आपसी गुटबाजी के परिणाम बेहद घातक साबित हो सकते हैं। क्योंकि ऐसा नहीं है बीजेपी में आपसी गुटबाजी केवल हिमाचल में ही है बल्कि कई ओर भी राज्य हैं जहां भाजपा के अंदर आतंरिक कलह हावी दिखाई दे रही है। चलिए जानते हैं कैसे?

देखिए अगले साल यानी 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, जिसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम शामिल है। इनमें कई राज्य ऐसे हैं जिनमें भाजपा के अंदर आंतरिक कलह की खबरें सामने आती रहती हैं। 2023 में कई राज्यों में चुनाव के बाद वर्ष 2024 में देश में लोकसभा के चुनाव भी होने है। ऐसे में इस आंतरिक कलह को खत्म करना पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिए। चलिए क्रमनुसार उन राज्यों की बात करते हैं जहां जहां पार्टी में आंतरिक कलह हावी है।

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मध्य प्रदेश में अंदरूनी कलह

सबसे पहले बात करते हैं मध्य प्रदेश की।  2023 में मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। पिछले चुनावों की बात करें तो वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश में वैसे तो जीत कांग्रेस को मिली थीं, परंतु ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस सरकार गिर गई थीं और दोबारा सत्ता में भाजपा की वापसी हुई थी। इस दौरान शिवराज सिंह चौहान को एक बार फिर से राज्य का सीएम बनाया गया। लेकिन इसके बाद भाजपा के अंदर ही गुटबाजी की खबरें आने लगी। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गुट के बीच टकराव की खबरें सुनने को मिली है।

यहां एक नहीं बल्कि चार गुटों में आपस में प्रतिद्वंदिता बताई जाती है क्योंकि शिवराज सिंह को मध्य प्रदेश का सीएम बनने के बाद नरोत्तम मिश्रा का कद भी बढ़ गया। इससे शिवराज सिंह चौहान को अपनी कुर्सी को लेकर डर सताने लगा है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस छोड़कर सिंधिया जब से भाजपा में शामिल हुए हैं तब से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया समर्थकों को बीच अंदरूनी कलह की खबरें सामने आती रहती हैं। क्योंकि सिंधिया का ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अच्छा वर्चस्व है, जबकि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का भी इसी क्षेत्र में प्रभाव है और वो ग्वालियर में बीजेपी की बड़े नेता हैं। इसके चलते ऐसा माना जाता है कि दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। अक्टूबर के महीने जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ग्वालियर दौरे पर आए थे तो उस दौरान सिंधिया समर्थकों की ओर एक पोस्टर जारी किया गया था जिससे नरेंद्र सिंह तोमर का फोटो  गायब था।

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राजस्थान में गुटबाजी

मध्य प्रदेश के बाद आते हैं राजस्थान पर। राजस्थान में भी अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होंगे। ये चुनाव बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण है क्योंकि बीजेपी 2018 के चुनाव में राजस्थान की सत्ता गंवाने के बाद राजस्थान फतह करने की पूरी तैयारियां कर रही है। वहीं दूसरी ओर चंद राज्यों में सिमटकर रह गई कांग्रेस को सत्ता जाने का डर सता रहा है। मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी भाजपा खेमों में बंटी हुई नजर आती है जहां पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, प्रदेश इकाई के अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल के गुट हावी हैं। यहां सतीश पूनिया और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बीचे मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर टकराव की स्थिति देखने को मिलती है। एक बार जब सतीश पूनिया से सीएम के चेहरे को लेकर जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि कमल का निशान ही भाजपा का मुख्यमंत्री होगा। ऐसा नहीं है यहां सिर्फ भाजपा के अंदर ही गुटबाजी है, बल्कि कांग्रेस भी इसी समस्या का सामना कर रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की तकरार की खबरों से भला कौन परिचित नहीं है।

कर्नाटक में येदियुरप्पा और बोम्मई गुट आमने-सामने

अब बात करते हैं कर्नाटक की। कर्नाटक में भी गुटबाजी की बीमारी अपने चरम पर नजर आती है। यहां पूर्व सीएम येदियुरप्पा और वर्तमान मुख्यमंत्री बीएस बोम्मई गुट के बीच आपसी कलह की खबरें सामने आती रहती हैं। क्योंकि जब से येदियुरप्पा को हटाकर भाजपा ने बीएस बोम्मई को राज्य की कमान सौंपी है, तब से ही दोनों गुट आमने सामने हैं। जोकि पार्टी हाईकमान के लिए चिंतन का विषय है। कर्नाटक विधानसभा चुनावों में ये पार्टी के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है, जिसमें अब केवल कुछ ही महीनों का समय बाकी रह गया है। इसी तरह ही दिल्ली में भी एमसीडी में आपसी गुटबाजी भाजपा के लिए घातक बताई गई।

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इससे 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी आंतरिक कलह ने भाजपा को परेशान किया था। उस समय ये दावा किया गया था कि अरुण जेटली, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज और भाजपा के सह-संस्थापक और संरक्षक लाल कृष्ण आडवाणी सहित कई वरिष्ठ नेताओं की शीर्ष पद को लेकर महत्वाकांक्षाएं थी। जिसके बाद  भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे वरिष्ठ नेताओं को उनकी प्रतिष्ठा के उन्हें योग्य मंत्रालयों में शामिल किया और उनका ये निर्णय पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

इसी तरह जिन नेताओं ने भाजपा को बनाया उन्हें पार्टी को मार्गदर्शन प्रदान करने की भूमिका सौंपी गई। उदाहरण के लिए, पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया गया था। इसके अलावा नितिन गडकरी के असंतोष की खबरें सामने आई थी। जिसके बाद तत्कालीन सीएम देवेंद्र फडणवीस ने गडकरी से मार्गदर्शन लेने के बाद सभी अटकलों को समाप्त कर दिया था। तब सभी दिग्गज नेता इस बात से भलि भांति परिचित हो चुके थे अब मोदी युग शुरुआत हो चुकी है और अब पार्टी में गुटबाजी नहीं चल पाएगी।

लेकिन अब राज्य स्तर पर जो गुटबाजी पार्टी पर हावी हो रही है। इसे ध्यान में रखकर कि इससे पहले गुटबाजी की ये जड़ें ओर फैले गृह अमित शाह और पीएम मोदी को अपने पुराने अनुभव का उपयोग करते हुए, इस समस्या का समाधान निकालना होगा, क्योंकि जेपी नड्डा तो पार्टी की गुटबाजी को रोक पाने में पूरी तरह विफल साबित होते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसे में इससे पहले कि गुटबाजी पार्टी को तोड़ दें, उससे पहले पीएम मोदी और अमित शाह को मैदान पर उतरकर मोर्चा संभालना होगा।

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