राजा भोज जो अब तक के सबसे महान भारतीय राजाओं में से एक थे

राजा भोज भारत के एक ऐसे राजा हुए जो न केवल एक शक्तिशाली शासक थे बल्कि एक विद्वान व्यक्ति भी थे जिन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की।

राजा भोज

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भारत एक ऐसा देश है जहां 200 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, यहां 3000 से अधिक जातियां साथ रहती हैं और अलग-अलग रंग-रूप के लोग रहते हैं। जितनी अधिक भारत में विविधता है उतना ही इसका समृद्ध इतिहास भी है। यहां गुप्त, मराठा, चोल इत्यादि कई शक्तिशाली साम्राज्य हुए जिन्होंने न केवल भारत को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया बल्कि दुनिया के अन्य भागों से आए आक्रांताओं से युद्ध भी किए। इसी कड़ी में आज हम एक ऐसे राजा की बात करने जा रहे हैं जो न केवल एक शक्तिशाली शासक थे बल्कि एक विद्वान व्यक्ति भी थे जिन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की।

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भोज साम्राज्य

दरअसल, हम बात कर रहे हैं मालवा और आज के मध्य प्रदेश क्षेत्र के भोज साम्राज्य के बारे में। भोज साम्राज्य में वैसे तो कई राजा हुए परन्तु आज हम राजा भोज के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और जानेंगे कि इनके समय में भोज सम्राज्य का किस प्रकार से विकास हुआ था।

भोज परमार वंश के एक राजा थे और इनका शासनकाल 1010-1055 ईस्वी तक रहा। मध्य प्रदेश में मालवा क्षेत्र के आसपास इनका राज्य केंद्रित हुआ करता था और धारा-नगर (आधुनिक धार) इनकी राजधानी हुआ करती थी। राजा भोज को उनके कार्यों के कारण ‘नवसाहसाक’ नये विक्रमादित्य के रूप में भी देखा जाता था। इन्होंने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए लगभग अपने सभी पड़ोसियों के साथ विभिन्न स्तरों पर युद्ध लड़े और उसमें सफलता भी प्राप्त की।  बताया जाता है कि जब इनका राज्य अपने चरम पर था, तो उस समय इनके राज्य की सीमाएं उत्तर में चित्तौड़ से लेकर दक्षिण में ऊपरी कोंकण तक और पश्चिम में साबरमती नदी से लेकर पूर्व में विदिशा तक फैला हुई थीं।

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कला, साहित्य और निर्माण कार्य

शासन-प्रशासन के अलावा राजा भोज को कला, साहित्य और विज्ञान के संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने अपने शासनकाल में संस्कृत अध्ययन केंद्र के रूप में भोज शाला की स्थापना भी करवाई थी। इसके अलावा स्वयं भी एक उच्च कोटि के विद्वान थे। बताया जाता है कि मध्य प्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल इन्हीं के नाम पर बसाई गई थी, जिसका पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था।

मध्य प्रदेश में आज जो सांस्कृतिक धरोहर हैं उसमें राजा भोज का बहुत बड़ा योगदान है। विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर से लेकर उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला तक सभी इनके द्वारा ही बनवाए गए हैं। भोपाल में आज जो बड़े-बड़े तालाब देखने के लिए मिलते हैं वो इनके द्वारा ही बनवाए गए थे। इनके बारे में बताया जाता है कि इन्होंने मालवा के क्षेत्र में कृषि को समृद्ध बनाने के लिए नहरों का विकास और विस्तार भी करवाया था। इसके अलावा इन्होंने धार, उज्जैन और विदिशा जैसे शहरों को एक नया स्वरूप भी दिया था। बताया जाता है कि मध्य प्रदेश की नदियों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए भी इन्होंने बहुत काम किया था। जिसका लाभ मालवा के किसानों को होता था।

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ग्रंथ रचना करने वाले राजा भोज

राजा भोज विद्वानों को संरक्षण तो देते ही थे, इसके साथ ही वो स्वयं भी एक उच्च कोटि के विद्वान थे। इन्होंने लगभग 84 ग्रंथों की रचना की जिसमें धर्म, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, वास्तुशिल्प, विज्ञान, कला आदि विषयों पर लिखा। समरांगण सूत्रधार, सरस्वती कंठाभरण, सिद्धांत संग्रह, प्राकृत व्याकरण इत्यादि जैसे ग्रथों की रचना भी की है। हालांकि आज के समय में इन ग्रंथों को लेकर विद्वानों में आपस में मतभेद हैं। भोज प्रबंधनम् नाम से इनकी एक आत्मकथा भी है जिसमें इनके जीवन के बारे में विस्तार से लिखा गया है।

मध्य प्रदेश का उज्जैन आज जिस महाकालेश्वर मंदिर के लिए जाना जाता है उसका विस्तार राजा भोज के द्वारा करवाया गया। राजा भोज एक ऐसे विद्वान राजा थे जिन्होंने न केवल अपने राज्य का विस्तार किया बल्कि कला, संस्कृति, साहित्य और वास्तुकला का भी बड़े स्तर पर विस्तार किया।

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