“मंगल भवन, अमंगल हारी,
द्रवहु सो दशरथ, अजिर बिहारी….
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम!”
Rajshri Films: सच बताइए, आपने भी इस अद्भुत चौपाई को कभी न कभी सुना या गुनगुनाया होगा न? परंतु बहुत कम लोग होंगे, जिनके जीवन में ये विचार आया होगा कि चलो इसे जन-जन तक पहुंचाया जाए ताकि लोगों तक इसकी अद्वितीय महिमा पहुंच सके। जिस फिल्म उद्योग का प्रथम उद्देश्य पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा देना हो, उस सोच के बीच क्या कोई ऐसा भी परिवार होगा जो देश की संस्कृति को बढ़ावा दे और परिवारों को जोड़ने, संस्कारों को बढ़ावा देने पर विचार करे? ऐसा एक परिवार है जिसने सिद्ध किया कि यदि ठान लिया, तो ये सब भी संभव है।
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Rajshri Films: राजश्री पिक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड
1947, ये वो वर्ष था जब भारत को राजनैतिक रूप से स्वतंत्रता मिली। इसी वर्ष स्थापना हुई राजश्री पिक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड (Rajshri Films) की, जिसकी नींव रखी एक मारवाड़ी जैन, ताराचंद बड़जात्या ने। इनका जन्म 10 मई 1914 को राजस्थान में कुचमन नगरपालिका में हुआ, जो तत्कालीन जोधपुर स्टेट के नागौर जिले के निकट था।
उन्होंने कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पूर्ण करके केवल 19 वर्ष की आयु में 1933 में मोतीमहल थियेटर में अवैतनिक तौर पर प्रशिक्षु के रूप में काम करने लगे। परंतु अथक परिश्रम और लगन से उन्होंने शीघ्र ही अपने और अपने मालिक के लिए सफलता अर्जित की। उनकी आर्थिक मदद से ही 14 साल बाद 15 अगस्त 1947 में उन्होंने राजश्री पिक्चर्स प्रा॰ लिमिटेड की स्थापना की और कम लागत, देशी कलेवर, नये कलाकारों और सार्थक मूल्यों के सहारे फिल्में बनाने लगे।
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Rajshri Films: सम्पूर्ण भारत को जोड़ने का लक्ष्य
परंतु इनके विचार यहीं तक सीमित नहीं थे। इनके दो परम उद्देश्य थे – अपनी संस्कृति का जितना हो सके, उतना प्रचार करना और अपने सिनेमा के माध्यम से सम्पूर्ण भारत को जोड़ना। आज जिस बहुभाषीय सिनेमा से हम इतने प्रभावित होते हैं, उसकी नींव इन्होंने ही रखी, जब इन्होंने अन्य निर्माताओं एवं वितरकों के ठीक विपरीत जाकर दक्षिण भारत के अनेक सिनेमा स्टूडियोज़ से संपर्क साधा और उनकी फिल्मों को भारत के कोने-कोने में प्रसारित कराने का प्रस्ताव रखा।
ताराचंद बड़जात्या के माध्यम से दक्षिण भारतीय फिल्म जगत से हिंदी समाज ज्यादा जुड़ पाया। उन्हें विश्वास था कि दक्षिण भारतीय भाषाओं की सफल फिल्मों को हिन्दी क्षेत्र के दर्शक जरूर पसंद करेंगे। शुरू में जेमिनी, ए वी एम, प्रसाद जैसे बड़े निर्माताओं को यह भरोसा नहीं था लेकिन जब ताराचन्द बरजात्या ने उन्हें भरोसा दिलाया और वितरण में मदद का वादा किया तब उन्होंने उक्त प्रस्ताव को हाथों हाथ स्वीकार किया। इस क्रम में हिंदी में चन्द्रलेखा, मिलन, संसार, जीने की राह, ससुराल, राजा और रंक और खिलौना जैसी सफल फिल्में बनीं।
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स्वतंत्र प्रोडक्शन की शुरुआत
अब 1962 में ताराचंद ने अपना स्वतंत्र प्रोडक्शन शुरू किया, जो केवल डिस्ट्रीब्यूटरशिप पर निर्भर नहीं था। यहीं से राजश्री पिक्चर्स राजश्री प्रोडक्शन बना (Rajshri Films), जिसके बाद एक के बाद एक सफल फिल्मों का सिलसिला शुरू हुआ। आरती (1962) में बहुत अधिक सफलता नहीं मिली, परंतु आलोचकों से उन्हें खूब प्रशंसा मिली। इसके बाद शुरू हुआ सफर- दोस्ती, जीवन-मृत्यु, उपहार, पिया का घर, सौदागर, गीत गाता चल, तपस्या, चितचोर, दुल्हन वही जो पिया मन भाए, अंखियों के झरोखे से, तराना, सावन को आने दो, नदिया के पार, सारांश से होता हुआ मैंने प्यार किया तक चलता रहा।
परंतु उनके देहांत के बाद भी ताराचंद की विचारधारा पूर्णत्या क्षीण नहीं हुई। अपनी फिल्मों में वे मानवतावादी भारतीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील दिखे। उन्हें लगता था कि देश की भाषा, देसी संगीत और देसी भाव-बोध अगर सार्थक रूप में लोगों के सामने लाया जाए तो लोगों की सराहना मिलेगी। बिल्कुल ऐसा ही हुआ, और इनके कारण कई अद्वितीय कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर इसी मंच से मिला। जैसे- उन्होंने जिन लोगों को पहला बड़ा ब्रेक दिया उनमें ये नाम शामिल हैं- राखी, जया भादुडी, सारिका, रंजीता, रामेश्वरी, सचिन, अनुपम खेर, अरुण गोविल, माधुरी दीक्षित, सत्येन बोस, बासु चटर्जी, सुधेन्दु राय, लेख टंडन, हीरेन नाग, रवींद्र जैन, बप्पी लाहिड़ी, आप बस बोलते जाइए, ये सभी कलाकार ने अपना प्रारंभ राजश्री के माध्यम से ही किया।
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“हम आपके हैं कौन”
कहने को सलमान खान और माधुरी दीक्षित इस प्रोडक्शन (Rajshri Films) के ऋणी हो सकते हैं, क्योंकि भारत के इतिहास की सबसे सफलतम फिल्मों में से एक, “हम आपके हैं कौन” इसी कंपनी की देन है और अभी हमने हिरेन नाग और सूरज बड़जात्या की रचनाओं पर चर्चा भी प्रारंभ नहीं की है।
हाल ही में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म प्रदर्शित हुई थी, ‘ऊंचाई’। जहां एक ओर बॉलीवुड के धुर विरोधी हर फिल्म का विनाश करने को उद्यत थे, ये उन चंद फिल्मों में शामिल थी, जो न केवल दर्शकों को भाई, अपितु अपना मूल बजट बचाने में भी सफल रही। जहां एक ओर बॉलीवुड के कुछ दंभी लोग इस देश की मूल संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने पर उद्यत हैं, तो वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इस देश की सांस्कृतिक विरासत को हरसंभव रूप में सहेजने को तैयार हैं। राजश्री प्रोडक्शंस उन्हीं में से एक है जो कीचड़ के बीच कमल की भांति खिला हुआ है।
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