“मुस्लिम तुम्हें कितना भी पीटें, तुम पलटवार मत करो” आइए, हिंदुत्व पर गांधी के ‘योगदान’ को समझें

इस दौर में जब हिंदुत्व पर चौतरफा हमले हो रहे हैं, ऐसे में हिंदुत्व पर गांधी के विचारों को आपको अवश्य जानना चाहिए। इससे आप समझेंगे कि वास्तव में गांधी कैसे सोचते थे?

गांधी अहिंसा

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गांधी अहिंसा: भारत हो या भारत के बाहर, मोहनदास करमचंद गांधी का सम्मान हमेशा ही होता रहा है। उन्हें महान कहा जाता रहा है लेकिन आवश्यक नहीं है कि गांंधीजी के सभी विचारों को महान मान लिया जाए। गांधीजी के बहुत से ऐसे विचार हैं जिनको लेकर समय-समय पर विवाद खड़े होते रहते हैं। उन्हीं में से एक है हिंदुओं को लेकर गांधीजी के विचार। आज के इस लेख में हम आपको मोहनदास करमचंद गांधी के उन विचारों से अवगत करवाएंगे जिनको लेकर कहा जाता है कि गांधीजी हिंदुओं को बलहीन बनाना चाहते थे।

महाभारत के दर्शन की उपेक्षा

ये तो सब जानते हैं कि गांधी अहिंसा के बड़े पक्षधर थे। उन्होंने जनता के बीच ‘अहिंसा परमॊ धर्मः सर्वप्राणभृतां समृतः’ की अवधारणा का खूब प्रचार- प्रसार किया यानी अहिंसा को सर्वोच्च गुण के रूप में अपनाने के लिए कहा। गांधी के हिंदुओं को लेकर विचारों की चर्चा होती रहती है। गांधी का मानना था कि हिंदू धर्म सबसे सहिष्णु और समावेशी धर्म है। वैसे तो गांधी की इस मान्यता को कहीं से भी गलत नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन उन्होंने हिंदू दर्शन के उस पूरे सच का कभी समर्थन नहीं किया जो ये कहता है कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए और घोर अन्याय के विरुद्ध हिंसा का सहारा लिया जा सकता है। कहा जा सकता है कि गांधी ने जानबूझकर महाभारत के दर्शन की उपेक्षा की, जहां भगवान कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि अहिंसा, सभी के लिए सर्वोच्च धर्म नहीं माना जाता है और विशेष रूप से घोर अन्याय के विरुद्ध।

गांधी पर आरोप ये लगते हैं कि उन्होंने ‘अपनी सुविधा के लिए हिंदू दर्शन का चुनाव किया। उन्होंने हिंदुओं के लिए ये प्रस्ताव रखा कि भले ही मुस्लिम हम सभी को मारना चाहते हैं, लेकिन हमें मौत का बहादुरी से सामना करना चाहिए। यदि उन्होंने हिन्दुओं को मारकर अपना शासन स्थापित किया तो हम अपने प्राणों की आहुति देकर एक नई दुनिया का सूत्रपात कर रहे होंगे।

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विरोध के बजाय मरने का विकल्प

अहिंसा के दूत माने जाने वाले गांधी के पास हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा को युक्तिसंगत बनाने के कई मायने थे और उनसे अन्याय के विरुद्ध विरोध के बजाये मरने का विकल्प चुनने का अनुरोध किया। यानी हिंदूओं से अपने ऊपर अत्याचारों को सहने की सलाह दी मतलब एक तरह से हिंदुओं को बलहीन बनाना चाहा। इसलिए यह कहा जा सकता है कि गांधी जो खुद एक बैरिस्टर रह चुके थे, उनको हिंदुओं के सामने अन्याय का ऐसा अस्पष्ट विचार पेश करने के लिए भोला नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, अभी गांधी के इन विचारों के पीछे की प्रेरणा को इतिहासकारों द्वारा उजागर किया जाना बाकी है।

गांधी के धर्म को लेकर पक्षपात भरे रूप पर वर्तमान पीढ़ी के विचारक सवाल खड़े करते रहते हैं। वो आरोप लगाते हैं कि हिंदुओं पर हुए अत्याचार पर वो अक्सर चुप रहते थे। अगर महात्मा गांधी के हिंदू धर्म में योगदान की बात करें तो उनका एकमात्र योगदान ‘रघुपति राघव राजा राम’ का पाठ करना हो सकता है। इसके अलावा, उनके आलोचक उन पर ‘राजा राम’ का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हैं और मानते हैं कि महात्मा गांधी ने ‘भगवान राम’ के नाम का इस्तेमाल अपने अभियानों के लिए समर्थन जुटाने के लिए राजनीतिक प्रवचन में किया था।

गांधी की राजनीतिक ताकत पर कोई भी संदेह करना ठीक नहीं होगा। क्योंकि जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति के बारे में उनकी समझ एकदम सही थी। लेकिन हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर उनके चुप रहने को कतई भी उचित नहीं माना जा सकता। हालांकि गांधी खुद के एक सनातनी हिंदू होने का दावा करते थे। उन्होंने गाय की पूजा का प्रचार किया था। गांधी ने प्रस्तावित किया था कि हिंदुओं को तपस्या, आत्म-शुद्धि और आत्मबलिदान द्वारा गाय की रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने वेदों, उपनिषदों, पुराणों, शास्त्रों, अवतार (अवतार) और पुनर्जन्म में भी शिक्षाओं की वकालत की।

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प्रसिद्ध भजन में संशोधन

अपनी आधुनिक शिक्षा के कारण उन्होंने ‘रघुपति राघव राजा राम’ के प्रसिद्ध भजन में संशोधन किया और ‘अल्लाह’ और ‘ईश्वर’ जैसे शब्दों को भजन में शामिल किया। इसे उनके उदार विचारों के रूप में देखा जा सकता है लेकिन यूनाइटेड किंगडम में उनकी उदार शिक्षा के कारण उन पर अक्सर बहुसंख्यकवादी संस्कृति के खिलाफ पक्षपात करने का आरोप लगाया जाता है।

गांधी भारत के विभिन्न हिस्सों में हिंदुओं की निर्मम हत्या पर चुप्पी साधे हुए थे और उन्होंने हिंदुओं को प्रोत्साहित किया कि वे अपने स्नेह से मुसलमानों पर विजय प्राप्त करें, लेकिन वहीं दूसरी तरफ उन्होंने मुसलमानों से समान व्यवहार करने के लिए कभी प्रोत्साहित नहीं किया।

गांधी का मानना था कि जिसने अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य  और त्याग में सिद्धि प्राप्त नहीं की है, वो शास्त्रों को सही अर्थों में नहीं समझेगा, उनका मानना था कि दर्शन शास्त्र विभिन्न हिंदूओं के विपरीत है। गांधी द्वारा किए गए ब्रह्माचर्य के अभ्यास के सबसे बड़े आलोचक सरदार वल्लभभाई पटेल थे, जो अक्सर उन्हें इस तरह की अभ्यास को छोड़ने के लिए लिखते थे।

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गांधी का हिंदू दर्शन पक्षपातपूर्ण था क्योंकि सहिष्णुता का सिद्धांत केवल हिंदू संस्कृति के लिए ही था। उन्होंने हिंदू धर्म को दूसरे धर्म पर दया करने का सिद्धांत दिया चाहे दूसरा समुदाय कितना भी अत्याचार कर रहा हो। यानी ये हिंदुओं को सीधे-सीधे विकलांग बनाने जैसा था। इसलिए समय-समय पर गांधी के इन विचारों की आलोचना होती रहती है।

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