इस संसार में भांति-भांति के लोग होते हैं। कुछ योग्यता के बल पर चमकते हैं, कुछ अवसर के बल पर और कुछ बस भाग्य के सहारे चमक लेते हैं। कुछ तो ऐसे भी होते हैं जिनके लिए न बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया होता है। ये किसी के लिए न थमते हैं, न किसी की सुनते हैं, बस अपनी धुन में चलते हैं, क्योंकि पैसा बोलता है और रोहित शेट्टी से बढ़िया तो इस बात को कोई नहीं समझा सकता।
सब पैसों का मामला है
हाल ही में अभी सर्कस नामक फिल्म का ट्रेलर आया जिस पर लोगों ने खूब रिएक्शन दिए और तुरंत रिएक्शंस की बाढ़ सी आ गई।
ओफ्फो, फिर एक रीमेक!
रणवीर सिंह, फिर नहीं!
बॉलीवुड ओरिजिनल कब होगा?
कॉमेडी कहां है?
लॉजिक, वो क्या होता है?
अच्छा जी, हमें तो जैसे कुछ पता ही नहीं था, परंतु क्या रोहित शेट्टी यही सोचकर यह फिल्म बनाए थे? शेरलॉक में एक बहुत ही प्रसिद्ध संवाद है, “सेन्टीमेन्ट इज अ केमिकल डिफेक्ट फाउंड इन द लूज़िंग साइड”, अर्थात भावुकता केवल पराजित लोगों को ही शोभा देती है। ऐसा क्यों? असल में रोहित शेट्टी भली भांति जानते हैं कि जनता क्या चाहती है क्योंकि यदि वे केवल क्रिटिक्स या तर्क पर ध्यान देते तो लक्ष्मी जी इन पर इतनी कृपा नहीं बरसाती।
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पहली सफलता गोलमाल
वो कैसे? इनके सबसे पहली सफलता गोलमाल से ही देख लीजिए। इन्होंने ऐसे लोगों का साथ लिया जो इनके स्क्रिप्ट के साथ न्याय कर सकें। कलाकार ऐसे चुने थे इन्होंने जो इस फिल्म को अलग ही स्तर पर ले जाएं और लेखक, लेखक ठहरे नीरज वोरा जो केवल चलते फिरते मीम नहीं थे, उनके कलम से भी ऐसे दमदार स्क्रिप्ट्स निकले कि आज भी उन्हें देखकर आप पेट पकड़ पकड़कर हंसेंगे। गोलमाल के लगभग हर संवाद का एक न एक मीम तो आसानी बन जाएगा। अब ऐसे में बॉलीवुड के आकाओं को लगा जैसे रोहित के बच्चे का कुछ करना पड़ेगा।
परंतु हो कुछ नहीं पाया, क्योंकि धनबल भी कोई वस्तु है भैया जिसके आगे सब फेल है, स्टारडम भी। यदि स्टार पावर कुछ होती तो शाहरुख खान कभी रोहित शेट्टी के मुंह भी नहीं लगते, उनके साथ दो-दो फिल्म बनाना तो दूर की बात। परंतु वो क्या है न कि जब बुरा समय आता है तो साम, दाम, दंड, भेद सब अपनाना पड़ता है। आपको क्या लगता है, चेन्नई एक्सप्रेस और दिलवाले शाहरुख खान को उनके स्टारडम से मिली? नहीं, रोहित शेट्टी के धनोपार्जन की विशेष कला से शाहरुख खान तक आकर्षित हो गए, वो अलग बात है कि दिलवाले को मुंह की खानी पड़ी।
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रोहित शेट्टी के विचारों पर बात
अब आप कहेंगे कि रोहित शेट्टी तो हिन्दू विरोधी हैं, उन्होंने कई हिन्दू विरोधी प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा दिया है। सत्य के अनेक रूप होते हैं, अंतर इस बात से पड़ता है कि आपने कौन सा पक्ष किसके मुख से सुना है। अब यही रोहित शेट्टी किसी को हिन्दू विरोधी लगता होगा, पर कोई ये नहीं देखेगा कि सूर्यवंशी और मूल गोलमाल में इन्होंने नकारात्मक किरदारों का नाम ही अलग दिया था।
इसी प्रवृत्ति पर रोहित शेट्टी ने स्वयं आक्रामक होते हुए पिछले वर्ष बात उठाई थी। सूर्यवंशी की सफलता के पश्चात जब इस फिल्म में मुस्लिमों के कथित ‘नकारात्मक चित्रण’ को लेकर द क्विंट की पत्रकार अबीरा धार ने रोहित शेट्टी को घेरने का प्रयास किया, तो रोहित शेट्टी ने उन्हीं के तर्क का प्रयोग करते हुए कहा, “सिंघम में जयकांत शिकरे तो मराठी था, एक हिन्दू. उसके सीक्वेल में एक हिन्दू बाबा विलेन था. सिम्बा में भी दुर्वा रानाडे महाराष्ट्र का ब्राह्मण था. ये तीनों नकारात्मक शक्तियां हिन्दू थी, तब आपको कोई समस्या नहीं हुई, तो अब क्यों?”–
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ऐसे में रोहित शेट्टी का फंडा क्लियर है – मेरे को धन कमाने का, बाकी सब भाड़ में जाने का। अगर इसी दिमाग के साथ वे रचनात्मकता को भी पुनः बढ़ावा देना प्रारंभ कर दें, जैसे गोलमाल के प्रथम संस्करण में किया था, तो विश्वास मानिए, इन्हें अगले कई दशकों तक कोई नहीं हाथ लगा पाएगा।
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