सनातन धर्म को विश्व की सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है जिसने लोगों को एक उत्कृष्ट जीवनशैली के बारे में सबसे पहले और सर्वोत्तम मंत्र दिए थे। कुछ इसी तरह काशी को विश्व का सबसे पुराना शहर होने का दर्जा प्राप्त है। जब दुनिया में प्राथमिक स्तर पर संघर्ष हो रहा था, उस समय काशी नगरी एक सहज और गौरवशाली इतिहास को अपने अंतर्मन में समेटे हुए थी। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ जिलों में आता है लेकिन काशी कोई जिला नहीं अपने आप में एक सभ्यता है, जो कि हमें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों का स्मरण कराती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो काशी नगरी सदैव वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी शहरों में थी उसका पतन कैसे हुआ, कैसे उसके गौरवशाली इतिहास को नष्ट करने के प्रयास किए गए।
काशी के इतिहास की उल्लेख करें तो भारत के 16 महाजनपदों में से एक काशी नगरी भी थी, स्पष्ट तौर पर हम कह सकते हैं कि इन 16 में भी सबसे उच्चतम स्थान काशी का ही था। इसका उल्लेख सनातन संस्कृति के वेदों और पुराणों तक में मिलता है। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है कि ‘काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:‘। पुराणों के अनुसार, यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी, जहां श्रीहरि के आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और भगवान यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए।
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जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता थे काशी के राजा
काशी को बसानेवाले भरतवंशी राजा ‘काश’ थे, कुछ विद्वानों के मत में काशी वैदिक काल से भी पूर्व की नगरी है। भगवान शिव की उपासना का प्राचीनतम केंद्र होने के कारण ही इसे सबसे प्राचीन नगरी कहा जाता है क्योंकि सामान्य रूप से शिवोपासना को पूर्व वैदिककालीन माना जाता है। हमने आपको पहले ही बताया कि जब दुनिया मूलभूत सुविधाओं के लिए सघंर्ष कर रही थी, उस समय काशी में रहने वाले लोगों का जीवन उत्कृष्ट था। यहां का इन्फ्रास्ट्रक्चर हजारों वर्षों के भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था, जहां तीन ओर से घुमावदार आकार में मां गंगा गुजरती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व की थी। यह एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। काशी मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दांत और शिल्प कला के लिए व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा। बनारस के दशाश्वमेध घाट के समीप बने शीतला माता मंदिर का निर्माण अर्कवंशी क्षत्रियों ने करवाया था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है।
काशी की राजधानी वाराणसी थी, जो वरुणा और असी नदियों की संगम पर बसी थी। वर्तमान की वाराणसी व आसपास का क्षेत्र इसमें सम्मिलित रहा था। 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के राजा थे। इसका कोशल राज्य के साथ संघर्ष रहता था। गुत्तिल जातक के अनुसार काशी नगरी 12 योजन विस्तृत थी और भारत वर्ष की सर्वप्रधान नगरी थी।
बिंबिसार को उपहार में मिला काशी
काशी की सभ्यता का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। महाजनपद युग में यहां की सभ्यता काफी विकसित हो चुकी थी। इस युग की सभ्यता के प्रतीक कला में मूर्तिकला, तक्षण, वास्तु इत्यादि सम्मिलित हैं। इस सभ्यता के अवशेष, जो अब भी वैरांट और राजघाट के नीचे दबे पड़े है उनकी विस्तृत रुप और वैज्ञानिक ढंग से खोज नहीं हुई है। यह माना जाता है कि यदि और रिसर्च की गई तो काशी के सांस्कृतिक और राजनैतिक इतिहास पर काफी प्रकाश पड़ेगा। ऐसी खोज का महत्व काशी के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि सारी भारतीय संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि उत्तर वैदिक काल से ही कला, शिक्षा और स्वतंत्र विचार शैली के लिए धर्मनगरी काशी सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध रही है और इसका प्रभाव भारतीय इतिहास की अविच्छिन्न धारा पर बराबर पड़ता रहा है।
वाराणसी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 19 साइट हैं इनमें अघोर पीठ, अशोक स्तंभ, भारत कला भवन, भारत माता मंदिर, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ तिब्बतन स्टडीज, धनवंतरि मंदिर, दुर्गा मंदिर, जंतर मंतर, काशी विश्वनाथ मंदिर, संकट मोचन हनुमान मंदिर, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, बीएचयू कैंपस को श्री विश्वनाथ मंदिर, रामनगर किला, बनारस के घाट और तुलसी मानस मंदिर शामिल हैं।
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काशी को लेकर इतिहास यह भी बताता है कि महाभारत तथा पुराणों के अनुसार जरासंध ने काशी, कौशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, कश्मीर और गांधार राजाओं को पराजित किया। मगध भी भारत के 16 अहम महाजनपदों में से एक था और उसके राजा द्वारा काशी पर विजय प्राप्त करना एक बड़ी अहम घटना के तौर पर जानी गई। इतिहास यह भी उल्लेख करता है कि मगध के शासक जरासंध ने भारत के अनेक राजाओं को बंदी तो बनाया था लेकिन उनका कभी वध नहीं किया, वे सभी कारागार में ही बंदी रहे। महाभारत में भी सूक्ष्म तौर पर जरासंध का उल्लेख है। इनके अलावा मगध के हर्यक वंश के सम्राट बिम्बिसार को ‘श्रेणिक’ कहा जाता है।
एक कहानी यह भी है कि बिम्बिसार ने मगध के यश और सम्मान को वैवाहिक संधियों और विजयों के माध्यम से काफी बढ़ाया था। उनकी एक रानी कौशल के राजा ‘प्रसेनजित’ की बहन थी और उन्हें दहेज स्वरूप काशी नगरी का १ लाख राजस्व वाला गांव मिला था। कई कथाओं में यह भी कहा गया है कि पूरी काशी ही बिम्बिसार को एक उपहार स्वरूप दे दिया गया था।
काशी नगरी की शुद्धता को किसने नष्ट किया?
काशी नगरी में प्राचीन काल से समय-समय पर अनेक महान विभूतियों का वास होता रहा हैं। इनमें महर्षि अगस्त्य, धन्वंतरि, गौतम बुद्ध, संत कबीर, अघोराचार्य बाबा कानीराम, रानी लक्ष्मीबाई, पाणिनी, पार्श्वनाथ, पतंजलि, संत रैदास, स्वामी रामानन्दाचार्य, वल्लभाचार्य, शंकराचार्य, गोस्वामी तुलसीदास और महर्षि वेदव्यास का प्रमुख तौर पर उल्लेख है। शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है।
भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ प्रमुख हैं। कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस भी यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन बनारस के ही पास सारनाथ में दिया था।
काशी नगरी का इतिहास निश्चित रूप से गौरवशाली रहा है किन्तु एक सत्य यह भी है कि काशी के गौरवशाली इतिहास को धूमिल और नष्ट करने में मुगल शासकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। काशी नगरी के अनेक मंदिरों को तोड़ने से लेकर, नगर की शुद्धता को नष्ट करने में मुगल सबसे बड़े दोषी माने जाते हैं, जिस प्रकार अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि को नष्ट करने में और उसकी पवित्रता को भंग करने में बाबर का हाथ था, ठीक उसी प्रकार त्रिदेवों में एक भगवान शंकर के प्राचीनतम मंदिर अर्थात् काशी विश्वनाथ मंदिर समेत वहां की मूर्तियों को क्षति पहुंचाने में औरंगजेब की बड़ी भूमिका थी।
दशाश्वमेध घाट है सबसे पुराना
आज के समय की बात करें तो काशी के अधिकतर घाट अलग-अलग राजाओं ने बनाए हैं। इनमें मराठा, सिंधिया, होल्कर, भोंसले और पेशवा शामिल हैं। इन घाटों की वजह से ही बनारस की सुबह की खूबसूरती अलग स्तर पर पहुंच जाती है। काशी का सबसे पुराना घाट दशाश्वमेध घाट माना जाता है। ये काशी विश्वनाथ मंदिर के करीब है। वहीं मणिकर्णिका घाट महाश्मशान है। इसका हिंदू मान्यताओं में विशेष स्थान है। काशी नगरी को लेकर यह मान्यता तो काफी लोकप्रिय रही है कि काशी में मरने वाले लोगों को सीधे स्वर्ग लोक मिलता है।
इसीलिए यह बात प्रचलित है-
“मरणं मंगलं यत्र विभूतिश्च विभूषणम्
कौपीनं यत्र कौशेयं सा काशी केन मीयते”
वर्तमान में काशी नगरी को गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपना संसदीय क्षेत्र चुना है। प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार से लेकर काशी का सर्वांगीण विकास करना प्रधानमंत्री की प्राथमिकताओं में से एक माना जा रहा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर इस बात का एक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं कि यदि काशी को उसके मूल स्वरूप में लाकर वर्तमान की आधुनिकता से मिलाया जाएगा तो दुनिया का यह प्रचीनतम शहर पुनः भारत का गौरव कहलाएगा।
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