एक सिक्के के दो पहलू होते हैं लेकिन अगर आपको आपके आधे जीवन तक केवल सिक्के के एक पहलू से ही अवगत कराया जाए तो आप उसे ही सही मानने लगेंगे। कुछ ऐसा ही हमारे इतिहास और संस्कृति के साथ किया गया। इतिहास का नाम आते ही अधिकतर लोगों के मन में कुछ चुनिंदा मुगलों के नाम आ जाते हैं जैसे अकबर बीरबल, बाबर आदि। क्या अधिकतर बार ऐसा होता है कि इतिहास का नाम आते ही छत्रपति शिवाजी महाराज या महाराणा प्रताप की बात की जाए? शायद नहीं।
और पढ़ें- कभी सोचा है कि फिल्म लाइगर के फ्लॉप होने के बाद पुरी जगन्नाध ने पुलिस सुरक्षा क्यों मांगी थी?
गलत इतिहास बताया गया
कभी अपने सोचा है कि ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि लेफ्टिस्टों के द्वारा हमेशा ही हमारे इतिहास के नाम पर केवल मुगलों, बादशाहों, औरंगजेब, अकबर बीरबल, बाबर आदि को ही परोसा गया है जो की बिलकुल भी सही नहीं है। हमारे इतिहास और संस्कृति के केवल एक ही पहलू को जनता तक पहुंचाने में काफी हद तक सिमेना भी जिम्मेदार है क्योंकि सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जिससे एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित किया जा सकता है। ध्यान देना होगा कि इतिहास और संस्कृति को एक नये चश्मे से देखने और वास्तविकता को जनता तक पहुंचाने के लिए सिनेमा एक बेहतरीन रास्ता हो सकता है।
एक समय था जब सिनेमा भी केवल इसी पथ पर चलता जा रहा था। हमारे सिनेमा में पहले अधिकतर ऐसी फिल्में आती थीं जो कम्युनिज्म पर केन्द्रित होती थीं लेकिन अब धीरे-धीरे बदलाव दिखने लगा है।
अभी हाल ही में अहोम जनरल लचित बरफुकन की 400वीं जयंती के तीन दिवसीय समारोह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इतिहासकारों से भारतीय संदर्भ में इतिहास को एक बार फिर से लिखने की बात कही थी। साथ ही उन्हें इस बात का आश्वासन भी दिया था कि सरकार उनके प्रयासों का पूर्ण रूप से समर्थन करेगी। अमित शाह ने दिल्ली में असम सरकार के एक समारोह में कहा था कि “मैं इतिहास का छात्र हूं. मैंने कई बार सुना है कि हमारे इतिहास को सही तरीके से पेश नहीं किया गया और तोड़-मरोड़कर पेश किया गया. हो सकता है कि यह सही हो, लेकिन अब हमें इसे ठीक करने की जरूरत है.”
और पढ़ें- पहले द कश्मीर फाइल्स, फिर RRR और अब RSS पर फिल्म, बदल रही है भारतीय सिनेमा की स्थिति!
जनरल लचित बरफुकन आहोम साम्राज्य के ऐसे सेनापति थे, जो कि सन् 1671 में हुई सराईघाट की लडाई में अपनी नेतृत्व-क्षमता के लिए विख्यात थे। इन्होंने असम पर पुनः अधिकार जताने के लिए रामसिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुग़ल सेनाओं का प्रयास को मिट्टी में मिला दिया था. क्या ये हमारे इतिहास का अहम हिस्सा नहीं है? बिलकुल है लेकिन जब तक ये लोगों तक एक प्रभावी तरीके से पहुंचाया नहीं जाएगा तब तक लोग इसके विषय में जान ही नहीं पाएंगे।
सरकार भी आवश्यक शोध की समर्थक है
अब सरकार भी इतिहास को लेकर आवश्यक शोध की समर्थक है साथ ही वो इतिहास को सही ढंग और शानदार तरीके से पेश करने की बात कर रही है। इसी तरह से हमारे सिनेमा जगत को भी इस पर काफी विचार करने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि सिनेमा जगत इस पर कार्य नहीं कर रहा है अभी हाल ही में अभिनेता विक्की कौशल की नयी फिल्म ‘सैम बहादुर’ आने वाली है जिसमें भारत के ऐसे जांबाज वॉर हीरो को दिखाया जाएगा जिसके विषय में बहुत कम ही लोग जानते हैं। ये सबसे पहले फील्ड मार्शल, सैम मानेकशॉ की बायोपिक है। यह फिल्म 1 दिसंबर 2023 को रिलीज होगी। इस फिल्म का निर्देशन मेघना गुलजार के द्वारा किया गया है। इसके पहले भी ऐसी कई फ़िल्में आ चुकी हैं जिसमें इतिहास और संस्कृति को एक अलग तरीके से दर्शाया गया है जैसे कार्तिके २. कान्तारा और उधव सिंह आदि।
विवेक अग्निहोत्री की ब्लॉकबस्टर हिट ‘द कश्मीर फाइल्स इतिहास की सबसे बेहतरीन पेशकश में से एक है। इस फिल्म के माध्यम से 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए नृशंस हत्याओं से पर्दा क्या उठाया गया, इस कटुसत्य को देखकर वामपंथी वर्ग भड़क उठे थे। अभी हाल ही में आई बेहतरीन भारतीय कन्नडा भाषा फिल्म कान्तारा में देश की ऐसी संस्कृति के बारे में बताया गया था जो न जाने कितने वर्षों से हमारे आस-पास होते हुए भी हमारा ध्यान उस पर नहीं गया था। इस फिल्म में दैव नर्तकों और भूत कोला प्रथा को दर्शाया गया है। इन सभी फिल्मों में भारत के इतिहास और संस्कृति की किताब के कुछ ऐसे अद्भूत पन्नों को दिखाया गया है जिसके बारे में आज तक न किसी ने सोचा और न ही बात की, अगर की भी तो शायद जनता तक पहुंचाने का कार्य नहीं किया।
और पढ़ें- फिल्म ‘आराधना’ तो साइड प्रोजेक्ट थी लेकिन किशोर कुमार ने कुछ ऐसा किया कि इतिहास बन गया
शोर मचाने में माहिर
देश के इतिहास के एक दूसरे पहलू को लोगों तक पहुंचाने के लिए इसमें कुछ लेखकों जैसे- विक्रम संपत और जे साई दीपक भी बड़ा योगदान दे रहे है। अभी हाल ही में विक्रम संपत की प्रसिद्ध पुस्तक पर बनी फिल्म सावरकर भी आने वाली है।
लेफ्टिस्टों की एक बात सबसे अच्छी है कि वो शोर मचाने में बहुत माहिर है। वो बीते कई सालों से शोर मचा-मचाकर हमारे इतिहास और संस्कृति को गलत तरह से पेश करते आए हैं। उन्होंने हम सभी के मन में एक ऐसी झूठी कहानी के बीज डाल दिए थे जिसके पौधे आज बड़े हो चुके हैं लेकिन अगर इन पौधों को जड़ से उखाड़ फेका जाए तो हम देश के इतिहास और संस्कृति को सही रूप में लोगों तक पहुंचा पाएंगे और इसके लिए सिनेमा से अच्छा माध्यम कोई हो ही नहीं सकता है।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।