इस तरह जनजातीय भाषाओं को मुख्यधारा में लेकर आ रही है UGC

अब UGC ने जनजातीय भाषाओं को मुख्यधारा में लाते हुए पीएम मोदी के विचारों को मूर्त रूप देने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

SOURCE TFI

देश की बागडोर जब से मजबूत और निष्पक्ष हाथों ने थामा है तब से यह देश उचाईयों को छू रहा है। पिछले 8 सालों में मोदी सरकार ने भारत के हर क्षेत्र पर ध्यान दिया है और उससे जुड़े विकास कार्य किए जाएं यह सुनिश्चित किया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी हाल ही में तब देखने को मिला जब केंद्रीय शिक्षा व कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यह कहा कि उच्च शिक्षा की किताबें 12 भारतीय भाषाओं के साथ-साथ जनजातीय भाषाओं में भी मिल सकेंगी। इनका अनुवाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के द्वारा करवाया जाएगा।

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आदिवासी समुदाय को भी हो लाभ

केंद्र सरकार की आदिवासी कल्याण योजनाओं के विषय पर चर्चा करते हुए प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अंतर्गत स्थानीय भाषाओं में भी शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है जिसका लाभ आदिवासी समुदाय को भी मिल पाएगा। चूंकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) केंद्र सरकार के अंतर्गत ही आती है ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने जनजातीय भाषाओं को मुख्यधारा में लाते हुए पीएम मोदी के विचारों को मूर्त रूप देने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। इतना ही नहीं एनसीईआरटी की स्कूली शिक्षा और इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रथम वर्ष की किताबें भी जनजातीय भाषाओं में उपलब्ध कराए जाने पर तेजी से कार्य किया जा रहा है। वहीं दो जनजातीय विश्वविद्यालय भी आरम्भ किया जा चुका हैं।

देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का मानना है कि भारत में भाषाओं का एक अनमोल खजाना है जिसे सुरक्षित रखते हुए पहले भी सरकार के द्वारा कई कदम उठाए गए हैं। कुछ माह पहले ही मध्‍यप्रदेश ने मेडिकल की शिक्षा को हिंदी में करने की पहल की थी, जिससे हिंदी की भाषा-यात्रा में एक और नया अध्‍याय जुड़ गया है। पहले छात्रों को केवल अंग्रेजी भाषा में ही पढ़ाई करनी पड़ रही थी और अंग्रेजी से बाधित होकर या तो कुछ छात्र इससे वंचित रह जाते थे या वह वैसी सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे थे जैसी अंग्रेजी माध्‍यम के छात्र प्राप्त करते थे। यह कदम मेडिकल छात्रों के भविष्य को एक अलग दिशा दिखाने में सहायक हो पाएगा।

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हिन्दी थोपनेके खोखले दावे

इससे पहले भी पीएम मोदी ने अपने भाषणों में हिन्दी के साथ-साथ अन्य भाषाओं जैसे कन्नड, मराठी और तेलुगु का प्रयोग करते हुए विपक्ष के द्वारा ‘हिन्दी थोपने’ के खोखले दावों की धज्जियां उड़ाई थी। मोदी सराकर ने तमिल-हिंदी भाषा को भी एक साथ लेकर चलने की बात की थी। बीते माह ‘काशी तमिल संगमम्’ का उद्घाटन करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि, “काशी और तमिलनाडु दोनों ही शिवमय हैं, दोनों शक्तिमय हैं। एक स्वयं में काशी है, तो तमिलनाडु में दक्षिण काशी है। काशी-कांची के रूप में दोनों की सप्तपुरियों में अपनी अलग ही विशेषता है। काशी और तमिलनाडु दोनों ही संस्कृति और सभ्यता के कालातीत केंद्र माने जाते हैं। दोनों क्षेत्र संस्कृत और तमिल जैसी विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं के केंद्र हैं।”

पीएम मोदी ने कहा था कि हमारे पास दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है। तब मोदी ने तमिल भाषा की विरासत को सुरक्षित रखने की भी बात कही थी। इस दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी तमिल और संस्कृत को समान रूप से देखने की बात कही थी। केंद्र सरकार के द्वारा लायी गयी नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिसाब से देशभर की सभी क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके माध्यम से सभी छात्र-छात्राएं मातृ भाषाओं में प्राइमरी कक्षा से लेकर उच्चतम स्तर तक शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे।

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भारतीय भाषाओं को सम्मान

इस तरह की नयी शिक्षा नीति में इस बात का विशेष ध्यान दिया गया है कि भारतीय भाषाओं को न केवल और बढ़ावा दिया जाए बल्कि उन्हें बड़े पैमाने पर विकसित करने का काम भी किया जाए। पीएम मोदी जिस तरह से सभी भारतीय भाषाओं को सम्मान देने का कार्य कर रहे हैं वो काफी ज्यादा सराहनीय है। केंद्र सरकार हिंदी, तमिल भाषा के साथ-साथ और भी भाषाओं को सामान दर्जा देने के प्रयासों में जुटी हुई है।

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