वो भी क्या दिन थे, जब मनोरंजन जगत में बॉलीवुड का भी अपना ही वर्चस्व था और केवल नाम के लिए नहीं, उनका काम भी जमकर बोलता था। कभी राजेश खन्ना के संवाद हमें रिझाने में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ते, तो कभी धर्मेंद्र की उपस्थिति ही अनेकों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त थी। फिर चाहे राज कुमार हों, शत्रुघ्न सिन्हा हो या फिर अमिताभ बच्चन ही क्यों न हो, हिंदी सिनेमा उद्योग का 70 और 80 के दशक में एक अलग ही प्रभाव था। परंतु ठहरिए, आपको ये सूची अधूरी-अधूरी सी नहीं लग रही? लगेगी भी कैसे नहीं, इसमें विनोद मेहरा (Vinod Mehra) के नाम का हमने उल्लेख जो नहीं किया।
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इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे विनोद मेहरा की उत्कृष्ट प्रतिभा और अद्भुत अभिनय के बाद भी उन्हें हिन्दी सिनेमा में वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो योग्य थे?
विनोद मेहरा– एक ऐसा नाम जो योग्यता में न राजेश खन्ना से कहीं कम थे और न अमिताभ बच्चन या राज कुमार से, परंतु भाग्य ऐसा था कि वे इन सभी स्टार्स के बीच कहीं दबकर रह गए। 1945 में अमृतसर में जन्में विनोद मेहरा बचपन से ही इस उद्योग की ओर आकृष्ट थे और सिनेमा को ही अपना सब कुछ मानते थे। इनकी योग्यता का प्रभाव ऐसा था कि स्वयं किशोर कुमार जैसे व्यक्ति भी इनकी ओर आकृष्ट हुए बिना रह नहीं सके। केवल 13 वर्ष की आयु में इन्होंने “रागिनी” के माध्यम से फिल्म उद्योग में पदार्पण किया।
Vinod Mehra ने 1971 में चार फिल्मों में काम किया
विनोद मेहरा (Vinod Mehra) की प्रतिभा को अनदेखा नहीं किया जा सका और शीघ्र ही उनकी चर्चा मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में अनेकों जगह होने लगी। वैसे भी जो मात्र कुछ अंकों से ऑल इंडिया टैलेंट कॉन्टेस्ट में राजेश खन्ना जैसे अभिनेता से पराजित होकर द्वितीय स्थान पर रहे, उसमें कुछ तो बात होगी। आखिरकार विनोद मेहरा को वो अवसर मिला 1971 में, जब उनकी एक नहीं चार फिल्में प्रदर्शित हुई। बतौर सीनियर एक्टर उनकी प्रथम फिल्म 1971 में ही आई “एक थी रीटा” थी। इसके बाद विनोद मेहरा को ‘ऐलान’ में रेखा के साथ, “अमर प्रेम” में स्वयं राजेश खन्ना के साथ और “लाल पत्थर” में राज कुमार, हेमा मालिनी और राखी के साथ कार्य करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
परंतु इन्हें प्रसिद्धि प्राप्त हुई निर्देशक शक्ति सामंता के सानिध्य में काम करते हुए। 1971 में ही इनकी फिल्म ‘अनुराग’ आई, जिसमें इन्हें मौसमी चटर्जी के साथ काम करने का अवसर मिला। शक्ति सामंता की अन्य फिल्मों की भांति ये फिल्म भी सुपरहिट रही और विनोद मेहरा को फिल्म उद्योग में सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा।
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परंतु इसके बाद भी विनोद मेहरा को न उनके कद के रोल दिए जाते, न ही उन्हें प्रमुख रोल में लिया जाता। ऐसा क्यों? 60 के अंत से लेकर 90 के दशक के प्रारंभ तक लोगों की रुचि केवल एक्शन, मारधाड़ और मसाला से परिपूर्ण फिल्मों में थी और विनोद मेहरा का ध्यान रोमांटिक फिल्मों में अधिक था। ऐसे में या तो लीड के लिए चुना ही नहीं जाता या फिर बहुआयामी फिल्मों में लिया जाता, जहां एक से अधिक अभिनेता सम्मिलित होते।
विवादों में रहा निजी जीवन
फिल्मी करियर की भांति इनका निजी जीवन भी काफी उतार चढ़ाव से भरा रहा। विनोद मेहरा (Vinod Mehra) अपनी 3 शादियों की वजह से काफी चर्चा में रहे। उस समय बॉलीवुड की प्रसिद्धि अभिनेत्री रेखा के साथ इनके प्रेम संबंध की चर्चा खूब हो रही थीं। बॉलीवुड अभिनेत्री के साथ इनकी मित्रता केवल मित्रता तक सीमित नहीं थी, ये अलग बात है कि इन संबंधों को कभी एक सुनहरी सुबह नहीं मिली।
वैसे तो प्रारंभ में उन्होंने अपनी मां की पसंद से मीना ब्रोका नाम की लड़की से शादी की थी। परंतु शादी के कुछ समय बाद विनोद मेहरा का दिल अपनी हीरोइन बिंदिया गोस्वामी पर आ गया। काफी विवाद के बाद विनोद मेहरा ने बिंदिया से विवाह किया, परंतु यहां भी उन्हें निराशा मिली, क्योंकि कुछ समय बाद बिंदिया गोस्वामी ने विनोद मेहरा को छोड़ चर्चित निर्देशक जेपी दत्ता से शादी कर ली।
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बिंदिया के जाने के पश्चात विनोद वियोग में काफी समय तक रहे। कुछ समय के पश्चात ये फिल्मांकन यानि निर्माण और निर्देशन की ओर मुड़ गए। फिर विनोद मेहरा को 45 वर्ष की आयु में ऐसा हृदयाघात पड़ा, जिसके कारण वे 1990 में सदा के लिए सो गए।
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