जब चीन टेराकोटा की खोज कर रहा था, उससे सदियों पहले भारत उसके खिलौने बना रहा था

हमने आपको पहले बताया था कि 4500 साल पहले जब पश्चिमी देश अधपके मांस पर जीवन यापन करते थे, भारतीय तब पौष्टिक लड्डू खाते थे, अब जानिए कि जब चीन टेराकोटा की खोज कर रहा था, उससे सदियों पहले भारतीय उसके खिलौने बनाते थे।

When China was discovering terracotta, Indians were already making terracotta toys

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जब मानव सभ्यता के इतिहास का अध्ययन और विश्लेषण करने की बात आती है तो हमारे सामने तथ्यों से भरा अथाह सागर प्रकट हो जाता है जिसे देखकर अधिकतर विश्लेषणकर्ता सोच में पड़ जाते हैं। परंतु इतिहास को अगर ध्यानपूर्वक पढ़ा जाए तो इससे रुचिकर कोई दूसरा विषय नहीं है। इसमें हमें अपने से पहले की पीढ़ी के बारे में न केवल जानने को मिलता है बल्कि यह भी पता चलता है कि आज से हजारों साल पहले दुनियाभर में इंसान किन वस्तुओं का उपयोग करता था और वो कौन सी सुविधाएं थीं जो प्रचीनकाल के इंसान के जीवन को महत्वपूर्ण बनाया करती थीं।

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टेराकोटा कला

इस लेख में हम प्रचीन समय की एक ऐसी कला के बारे में जानेंगे जिसके द्वारा न केवल पुराने समय के लोगों ने मूर्तियां बनाईं बल्कि मानव की प्रतिदिन उपयोग में लायी जाने वाली वस्तुओं को भी बनाया जिसकी एक व्यक्ति को आवश्यकता होती है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं टेराकोटा कला के बारे में। टेराकोटा एक ऐसी कला है जिसके तहत मिट्टी का उपयोग कर प्रचीनकाल में बर्तन, खिलौने, मूर्तियां इत्यादि बनाई जाती थीं।

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आज के समय में भी हम जिस घड़े का उपयोग पानी भरने और पानी ठंडा रखने के लिए करते हैं वो भी टेराकोटा कला के द्वारा ही बनाया जाता है। परन्तु जिस प्रकार इतिहास के अन्य दूसरे तथ्यों को लेकर बहस छिड़ जाती है कि इसका विकास हमारे देश में हुआ था और उसका विकास हमारे पूर्वजों ने किया था ठीक उसी प्रकार टेराकोटा की उत्पत्ति को लेकर भी अलग-अलग देश अपना दावा ठोकते हैं। परन्तु टेराकोटा के सबसे पुराने अवशेष हड़प्पा संस्कृति से मिलते हैं जबकि आज जब भी टेराकोटा की बात होती है तो चीन की टेराकोटा आर्मी का नाम सबसे पहले लिया जाता है या यूं कहें कि चीन की टेराकोटा आर्मी को टेराकोटा कला का पर्याय बना दिया गया है।

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भारत में टेराकोटा कला

भारत में टेराकोटा कला की बात की जाए तो मध्य पाषाण काल, नव पाषाण काल, सिंधु औऱ हड़प्पा सभ्यता से लेकर मौर्यकाल और गुप्तकाल तक और उससे आगे के काल तक इस कला का क्रमबद्ध विकास हमें देखने के लिए मिलता है। यही नहीं भारत में टेराकोटा कला एक समृद्ध कला हुआ करती थी जिससे कई प्रकार के आभूषण भी बनाए जाते थे। भले ही आज टेराकोटा कला के बारे में सोचने पर चीनी टेराकोटा सेना की छवि सामने आती है परन्तु सर्वेक्षणों और खोजों से पता चलता है कि दुनिया में किसी भी सभ्यता से पहले इस कला में भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों को महारत हासिल थी।

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भारत में टेराकोटा कला के फलने-फूलने की बात होती है तो बिहार का नाम प्रमुखता से लिया जाता है क्योंकि बिहार में 322-184 ईसा पूर्व मौर्य सम्राटों के शासनकाल के दौरान टेराकोटा कला की शुरुआत हुई थी। धीरे-धीरे यह कला विकसित होती चली गई और उस स्तर पर पहुंच गई जहां दुनियाभर में दरभंगा में टेराकोटा कला से तैयार किए गए इंद्रधनुषी घोड़ों को लोकप्रियता हासिल हुई। इसके अलावा हाथी, दीपक, और फूलों के बर्तन जो आम तौर पर पारंपरिक थीम वाले होटलों की छत पर देखे जाते हैं, बहुत प्रचलित हुए।

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हालांकि वर्ष 1921 में दयाराम साहनी के नेतृत्व में सिंधु घाटी सभ्यता (3250-1750ई.पूर्व) की खुदाई होने के बाद पता चलता है कि टेराकोटा कला सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी अपने चर्मोत्कर्ष पर थी। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग इसका उपयोग अपनी रोजमर्रा की चीजों से लेकर घर बनाने तक सभी में करते थे।

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चीन में टेराकोटा कला

वहीं दूसरी ओर चीन में विकसित हुई टेराकोटा कला की अवधि के बारे में बात की जाए तो मार्च 1974 में उत्तर-पश्चिम चीन के शानक्सी (Shaanxi) प्रांत में कुएं की खुदाई के दौरान किसानों को कुछ मिट्टी से बने टुकड़े मिले इसके बाद जब उन्होंने वहां थोड़ा बहुत खोजा तो मिट्टी से बना एक सर मिला। जिसके बाद पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई की और एक बड़ा रहस्य दुनिया के सामने आया। इस खुदाई में सैनिकों की मूर्तियां मिली जिनके बारे में बताया जाता है कि ये मूर्तियां 221 ईसापूर्व के आसपास की हैं।

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चीन में भी लोग ऐसा मानते थे कि मृत्यु के बाद एक दूसरी दुनिया में लोग जाते हैं इसलिए राजा महाराजाओं की मृत्यु होने पर उनके साथ कुछ सैनिकों को मारकर दफना दिया जाता था। परन्तु 221 ईसापूर्व के आसपास चिन शी हुआंग का शासन हुआ करता था और उस समय तक इस प्रथा को बुरा माना जाने लगा और मिट्टी की मूर्तियों को इसके विकल्प के तौर पर उपयोग किया जाने लगा। आज के समय में चीन ने इसे विश्वभर में प्रचारित कर दिया है इसलिए टेरकोटा के नाम पर लोगों के दिमाग में चीन की टेराकोटा सेना की छवि बन जाती है।

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भारत के सामने चीन कुछ भी नहीं

यदि भारत और चीन की टेराकोटा कला की अवधि के बीच में तुलना की जाए तो सिंधु घाटी सभ्यता का समय 3250-1750ई.पूर्व है वहीं दूसरी ओर चीन में मिलने वाली टेराकोटा अवशेषों की समय सीमा 221 ईसापूर्व के आस-पसा है। यदि यहां पर चीन की ओर से यह तर्क दिया जाए कि इससे पहले भी चीन में किसी न किसी रूप में टेराकोटा कला उपलब्ध होगी तो इसका एक ही उत्तर हो सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता की समय सीमी की ओर देखों, उत्तर अपने-आप मिल जाएगा।

भारत चीन टेराकोटा कला के इस तुलानत्मक अध्ययन से एक बात तो पूर्णरूप से स्पष्ट हो जाती  है कि जिस चीन को टेराकोटा कला का पर्याय बना दिया गया है असल में वह भारत के सामने इस कला में बौना है और इससे अधिक कुछ नहीं।

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