अकड़ किसी भी स्थिति में सही नहीं है, चाहे वह व्यक्तित्व में हो या फिर किसी अन्य के साथ व्यवहार में। जो लोग ये सोचते हैं कि अमिताभ बच्चन का करियर अचानक से रसातल में कैसे चला गया, उसका एक प्रमुख कारण है- अकड़। यदि ये न होता तो अमिताभ बच्चन के साथ अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को रद्द करने के लिए सुभाष घई विवश न हुए होते और न ही अमिताभ बच्चन की छवि पर इतना बड़ा प्रश्नचिन्ह लगता। इस लेख में हम आपको उस कहानी से विस्तार से अवगत कराएंगे, जब मशहूर डायरेक्टर सुभाष घई ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अमिताभ बच्चन के साथ अपनी फिल्म करने से मना कर दिया था और उसके पीछे भी कारण अमिताभ बच्चन की ‘अकड़’ ही थी!
और पढ़ें: ए आर रहमान नहीं अमित त्रिवेदी हैं आधुनिक बॉलीवुड के लीजेंड
सुभाष घई की ड्रीम प्रोजेक्ट थी फिल्म ‘देवा’
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुभाष घई और अमिताभ बच्चन एक समय पर अपने अपने क्षेत्रों के धुरंधर थे। अमिताभ बच्चन यदि बॉलीवुड के अद्वितीय सुपरस्टार थे तो सुभाष घई 80 के दशक में अपने कमर्शियल सफलता के पीछे ‘शोमैन’ कहे जाने लगे थे। ऐसे में प्रश्न उठना तो स्वाभाविक था कि आखिर दो इतने सफल लोग एक साथ, एक प्रोजेक्ट पर काम कैसे नहीं कर सकते हैं?
परंतु इसके पीछे कुछ अंतर्कथाएँ भी थीं, जो लोगों के समक्ष आज तक नहीं आई हैं। कहते हैं कि सुभाष घई, अमिताभ बच्चन के साथ रमेश सिप्पी की अधूरी फिल्म ‘शतरंज’ पर काम करना चाहते थे, जहां विलेन अमजद खान थे पर बाद में अमरीश पुरी आ गए। नकारात्मक भूमिका में अनिल कपूर होते परंतु 1984 तक अमिताभ सांसद बन गए और यह फिल्म अधर में लटक गई। बाद में अनिल कपूर ने हीरो की भूमिका स्वीकारी और सामने आई ‘मेरी जंग’, जिसने ‘हीरो’ के बाद सुभाष घई को रातोंरात बॉलीवुड के सबसे सफल फ़िल्मकारों में सम्मिलित करा दिया।
अब बात यहीं पर खत्म हो जाती तो भी ठीक था परंतु भाग्य में तो कुछ और ही लिखा था। वर्ष 1987 के आसपास सुभाष घई अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘देवा’ में कार्यरत थे, जिसमें पुनः अमिताभ बच्चन प्रमुख भूमिका में होते और साथ में होते राजकुमार, मीनाक्षी शेषाद्री, शम्मी कपूर इत्यादि जैसे लोग। परंतु जिन परिस्थितियों में यह प्रोजेक्ट रद्द हुआ, उसमें आज भी अमिताभ बच्चन की छवि बहुत अधिक सकारात्मक नहीं दिखती।
‘देवा’ के बंद होने का प्रमुख कारण
कहते हैं कि जब ‘देवा’ की घोषणा हुई तो उसके मुहूर्त शॉट से लेकर उसके प्रारम्भिक शूटिंग तक अमिताभ बच्चन बहुत अधिक उत्सुक नहीं थे। वो सेट पर अधिकतम समय लेट आते और कभी कभी तो कह देते कि उनकी तबीयत ही ठीक नहीं है। एक समय तक सुभाष घई यह सब सहते रहे परंतु स्थिति तब नियंत्रण से बाहर हो गई, जब उन्हें अमिताभ बच्चन को शूट करने के लिए ‘बाध्य’ करने पर निर्माता ए जी नाडियाडवाला से उलाहने सुनने पड़े। उसके बाद चीजें ऐसी हो गई कि अगर वो अमिताभ से वार्तालाप करने की कोशिश करते तो उनके स्थान पर उनकी सेक्रेटरी बात करती।
अब यह बात सुभाष घई को अखर गई और यह सही भी था। उसके कुछ ही दिनों बाद एक सनसनीखेज प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुभाष घई ने घोषणा कर दी कि ‘देवा’ को ‘Creative Differences’ के कारण दुर्भाग्यवश रद्द करना पड़ रहा है। उसके बाद वो सीधे मद्रास पहुंचे, जहां पर ‘शहंशाह’ फिल्म की शूटिंग हो रही थी और उन्होंने अमिताभ बच्चन से स्पष्ट कहा कि वो ऐसे परिस्थिति में काम नहीं कर पाएंगे। परंतु अमिताभ बच्चन ने उल्टे यह आरोप लगाया कि चूंकि उनका नाम ‘बोफोर्स घोटाले’ में आया है, इसलिए वो उनके साथ काम नहीं करना चाहते। सुभाष घई इस बात से आग बबूला हो गए और उन्होंने ‘देवा’ नामक प्रोजेक्ट को वहीं पर रद्द करने का निर्णय ले लिया। स्वयं सुभाष घई ने इस बात को स्वीकारते हुए कहा था कि “मैं और विलंब स्वीकार नहीं कर सकता था और अधीरता में मैंने यह निर्णय लिया।”
इसी बीच एक अन्य निर्माता ने सुझाव दिया कि जितना समय उन्होंने ‘देवा’ पर व्यतीत किया, उसी में वो एक वित्तीय रूप से बेहतर फिल्म कर सकते हैं, जिससे उनके नुकसान की भरपाई भी हो जाएगी। वो व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि बोनी कपूर थे और जिस फिल्म का उन्होंने सुझाव दिया, वह थी बहुचर्चित फिल्म ‘राम लखन’। सुभाष घई ने तो अपनी प्रतिष्ठा वापस प्राप्त कर ली परंतु ‘देवा’ वाले विवाद से जो हानि अमिताभ बच्चन को हुई, उसकी भरपाई करने में उन्हें वर्षों लग गए।
और पढ़ें: मुग़ल-ए-आज़म ऐतिहासिक फिल्म के ऊपर सेक्युलर मजाक है
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.