कभी सोचा है कि आज बॉलीवुड की इतनी दयनीय स्थिति क्यों है? कभी सोचा है कि एक समय देश के सिनेमा पर एकछत्र राज करने वाला बॉलीवुड आज उपहास का विषय क्यों है? कभी सोचा है कि आज बॉलीवुड विनाश के मुहाने पर क्यों है? इसका उत्तर सिर्फ दो स्पोर्ट्स फिल्में और उनके साथ इस उद्योग के व्यवहार से आपको पता चलेगा। इन फिल्मों ने हमारे जनमानस पर व्यापक प्रभाव डाला, हम सभी को प्रभावित किया परंतु आज एक फिल्म शिखर पर है और दूसरे को कोई पूछता भी नहीं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे एम एस धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी और कौन प्रवीण तांबे जैसी फिल्में 83 जैसी नौटंकी से दस गुना बेहतर थी लेकिन उन्हें अनदेखा करके बॉलीवुड अपने विनाश की गाथा स्वयं लिख रहा है।
और पढ़ें: Khakee: The Bihar Chapter Review – नीरज पांडे ने मजेदार वेब सीरीज़ बनाई है
एम एस धोनी और कौन प्रवीण तांबे काफी अलग हैं
अच्छा बताएं, श्रेष्ठ कौन – कपिल पाजी या धोनी? अब आप भी कहेंगे, क्या पागलों वाली बातें हैं, बिल्कुल कपिल पाजी होंगे। परंतु अगर आपसे पूछा जाए, किसे चुनेंगे – उस व्यक्ति को, जिसने निष्ठा से धोनी के किरदार को आत्मसात किया या उसे जिसने कपिल पाजी के किरदार को आत्मसात करने के नाम पर उन्हें कार्टून बना दिया? पर दोनों में तुलना कैसे संभव है? 83 तो टीम के बारे में थी, एम एस धोनी तो केवल एक व्यक्ति के बारे में। यह सत्य है परंतु तरीका होता है और सबसे महत्वपूर्ण होता है कि कथाकार और कलाकार दोनों में मूल कथा को लेकर क्या भावना है। यहीं पर एम एस धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी पर नीरज पांडे और दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत ने एम एस धोनी की भांति सीधा हेलिकाप्टर शॉट जड़ दिया।
वो कैसे? यह फिल्म धोनी के प्रारम्भिक दिनों, उनके स्ट्रगल को अवश्य दर्शाती है परंतु न कहीं पर टीम भावना का अपमान करती है और न कहीं पर राष्ट्रीयता का उपहास उड़ाती है। साथ ही फिल्म की कहानी जनता को अपने से जोड़े भी रखती है। कितने दुर्भाग्य की बात है, जिसे जनता का इतना मान सम्मान मिला, उसे उस फिल्म के लिए एक पुरस्कार तक नहीं मिला।
ऐसे ही इस वर्ष एक फिल्म आई थी, कौन प्रवीण तांबे। हॉटस्टार पर प्रदर्शित यह फिल्म राजस्थान रॉयल्स के चर्चित स्पिनर प्रवीण तांबे के ऊपर थी, जो 41 वर्ष की आयु में टी20 क्रिकेट में पदार्पण करता है और इस कथा को देखकर आप केवल प्रभावित नहीं होंगे, अपितु आप उसके साथ जूझेंगे, हँसेंगे, साथ ही आपके अंदर एक खीज सी उत्पन्न होगी कि हे ईश्वर, एक बार तो प्रवीण भाऊ की बेड़ा पार लगाओ!
रणवीर, दीपिका पर भारी पड़े थे अन्य स्टार
परंतु क्या ये कनेक्शन 83 के साथ हुआ? नहीं! जबकि इस विश्व कप के किस्से तो हम सब ने सुने थे और इस फिल्म की प्रतीक्षा तो हम सबको वर्षों से थी। इस फिल्म के हर एक कास्ट के हर एक सदस्य की अपनी अनोखी कथा थी, जिनको समाहित कर भी लो तो इतनी कथाएं थी कि एक फ्रैन्चाइज़ बना सकते थे। परंतु ‘गंदी मैगी’ बनाना भी कला होती है और वो कबीर खान, रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण से बेहतर कोई नहीं जानता। पूरे विश्व कप की कथा को एक मैच तक कैसे सीमित करना है, कोई इन लोगों से सीखे।
इतना ही नहीं, जब कुछ अभिनेता, जिनकी शायद यह प्रथम फिल्म थी, वो आपसे बेहतर एक्टिंग करने लगे तो समझ जाइए कि आपने क्या प्राप्त किया है और यही हुआ दीपिका और रणवीर के साथ। रणवीर तो फिर भी कपिल पाजी के रूप में थोड़ा बहुत संभाल गए पर दीपिका के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा और अभी तो हमने इस फिल्म के एजेंडे पर प्रकाश भी नहीं डाला है। यूं ही नहीं ऐसी फिल्में 270 करोड़ के बजट का आधा भी नहीं निकाल पाई। पर क्या करें, जब नेक इच्छा से कार्य नहीं करेंगे तो 10 करोड़ में भी पान सिंह तोमर जैसा रत्न बन जाएगा अन्यथा 300 करोड़ भी एक स्पोर्ट्स ड्रामा के लिए कम पड़ जाएंगे।
और पढ़ें: आम जनमानस के हीरो थे मिथुन चक्रवर्ती लेकिन बॉलीवुड ने उनके साथ न्याय नहीं किया
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।