आखिर भारत क्यों आ रहे हैं येल, स्टैनफोर्ड और ऑक्सफोर्ड ? इसके पीछे की कहानी समझिए

भारत सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए अपने देश के द्वार को खोल रही है। जिसके बाद भारत में रहकर ही यहां के छात्र येल, ऑक्सफोर्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने का सुनहरा अवसर पा सकेंगे।

A holistic analysis of Yale, Stanford and University of Oxford coming to India

SOURCE TFI

Yale, Stanford and Oxford in India soon: प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के नेतृत्व में भारत हर क्षेत्र में विकास का परचम लहरा रहा है। साथ ही बीते कई सालों से भारत एक आत्मविश्वासी एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में भी उभरा है। अभी हाल ही में मोदी सरकार के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र को लेकर एक बड़ी घोषणा की गयी। जिसमें भारत सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए अपने देश के द्वार खोल रही है। जिसके बाद आपको भारत में रहकर ही येल, ऑक्सफोर्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने का सुनहरा अवसर मिल सकता है। मोदी सरकार के द्वारा देश में इन सभी विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने और उनकी डिग्री देने को अनुमति देने की दिशा में बड़ा और अहम कदम उठाया है।

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नया ड्राफ्ट रेगुलेशन

इस बात का खुलासा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी के नये ड्राफ्ट रेगुलेशन (UGC Foreign University Bill) के सामने आने से हुआ है। इस ड्रॉफ्ट के तहत भारत में पहली बार विदेशी शैक्षिक संस्थानों के प्रवेश और उसके संचालन का एक बेहतरीन रास्ता तैयार करेगा। इस ड्रॉफ्ट के अनुसार, विदेशी विश्वविद्यालयों के स्थानीय कैंपस के द्वारा ही घरेलू और विदेशी छात्रों के प्रवेश के लिए नियम, शुल्क और छात्रवृत्ति पर निर्णय कर सकेंगे। इतना ही नहीं इन सभी संस्थानों को फैकल्टी और स्टाफ की भर्ती करने की पूरी-पूरी छूट प्रदान की जाएगी। आइए जानते हैं सरकार के इस विशेष कदम से देश और छात्रों को क्या-क्या लाभ हो सकते हैं।   

यूजीसी के अंतिम ड्राफ्ट को कानून बनने से पहले मंजूरी मिलने के लिए संसद में पेश किया जाएगा, फिर इस कानून के नियमों के अंतर्गत अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, चीन की टॉप यूनिवर्सिटी भारत में अपने कैंपस को आसानी से खोल सकेगी। सरकार को ये उम्मीद है कि इस निर्णय से विश्व की सबसे बड़ी और अच्छी यूनिवर्सिटी जैसे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, येल, ऑक्सफोर्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान भी (Yale, Stanford and Oxford in India soon) भारत आ सकेंगे। आरम्भ में इन्हें 10 साल के लिए कैंपस खोलने की अनुमति मिलेगी और कोर्स केवल ऑफलाइन चलाने होंगे।

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विश्वस्तरीय शिक्षा का लाभ

मोदी सरकार भारत के एजुकेशन सिस्टम में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की ओर अग्रसर हो रही है जिससे यहां के छात्रों के साथ-साथ दूसरे देशों के छात्रों को भी विश्वस्तरीय शिक्षा का लाभ मिल पाएगा। भारत में ऐसे लाखों युवा हैं जिनके पास टैलेंट की कोई कमी नहीं है, लेकिन वह विदेश जाने और रहने के मोटे खर्च के कारण इससे वंचित रह जाते थे। यदि उन्हीं संस्थानों (Yale, Stanford and Oxford in India soon) का कैंपस भारत में होगा तो यह समस्या पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। इससे एक तीर से दो निशाना हो पाएगा यानी मोटी बचत और और प्रतिभाशाली छात्रों को अवसर मिलना। इससे भारत के छात्रों को एक बड़ी और अच्छी यूनिवर्सिटी की डिग्री भारत में ही मिल पाएगी, इन यूनिवर्सिटी के मुख्य कैंपस की तुलना में भारत में उनकी पढ़ाई थोड़ी सस्ती भी हो सकती है।

हालांकि यूजीसी के द्वारा पेश किये गए ड्राफ्ट बिल में कहा गया है कि फीस स्ट्रक्चर निर्धारित करने की छूट यूनिवर्सिटी के पास ही रहेगी लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन की तुलना में भारत में फीस कम रहने की पूरी-पूरी संभावना जताई जा रही है। इसके कैंपस यदि भारत में होंगे तो वहां कार्य करने के लिए टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की भी आवश्कता तो होगी ही, इससे भारत के शिक्षक और यंग ग्रजुएट्स के लिए नौकरियों के भी अवसर होंगे।

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स्थानीय लोगों को भी लाभ होगा

इसका एक और लाभ ये भी होगा कि जहां भी इन विश्वविद्यालयों का निर्माण कराया जाएगा वहां के पूरे क्षेत्र का विकास भी तीव्र गति से हो पाएगा। जिससे वहां के स्थानीय लोगों को भी लाभ होगा और निवेश भी बढ़ेगा। इतना ही नहीं भारतीय छात्रों के साथ-साथ यहां दूसरे देशों के छात्र भी इन विश्वविद्यालयों में पढ़ने भारत आ सकेंगे। खासकर साऊथ एशियन देश जैसे- श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान आदि देशों के छात्र भी भारत आकर विश्वस्तरीय शिक्षा प्राप्त कर पाएंगे।  क्योंकि अगर देखा जाए तो ये सभी देश आर्थिक रूप से उतने अच्छे नहीं है जो यूएस, ब्रिटेन और जर्मनी आदि देशों में जाकर शिक्षा ले पाएं लेकिन अगर ऐसा होता है तो इन सभी देशों के छात्रों के लिए भारत में शिक्षा ग्रहण करने का रास्ता खुल जाएगा। इससे भारत में विदेशी छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, जो किसी भी देश के एजुकेशन सिस्टम को अधिक बेहतर बनाने के लिए एक जरूरी मानक माना जाता है, इससे सरकार को भी रिवेन्यू प्राप्त होगा।

भारत में विदेशी छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ-साथ रिसर्च वर्क में भी वृद्धि होगी, इंटर-कल्चरल एक्सचेंज को बढ़ावा मिलेगा, जो वैश्विक स्तर पर किसी संस्थान को रैंकिंग प्रदान करने का अहम पैरामीटर साबित होता हैं। इससे ग्लोबल लेवल पर एजुकेशन के मामले में भारत की रैंकिंग में सुधार आने की बहुत अधिक संभावना होगी। सरकार का ये निर्णय भारत के एजुकेशन सिस्टम के लिए एक अच्छा कदम साबित हो सकता है।

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अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम

यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. एम. जगदीश कुमार ने डॉफ्ट रेगुलेशन को जारी कर कहा है कि “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों के अनुसार आयोग ने भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में कई बड़े और महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सरकार ने देश में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के  परिसर को स्थापित करने और उनके परिचालन  संबंधी सभी नियमों को भी तैयार कर लिया गया हैं।” उन्होंने ये भी बताया है कि “ग्लोबल रैंकिंग में ओवरऑल टॉप 500 में अपनी जगह बनाने वाले विश्वविद्यालय भारत में अपना कैंपस खोल सकते हैं। अगर ओवरऑल टॉप 500 में नहीं आते हैं लेकिन उनके सब्जेक्ट्स या किसी स्ट्रीम में टॉप 500 में हैं तो भी आवेदन कर सकते है।”

शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति को देखें तो लॉर्ड मैकाले के द्वारा रखी गयी शिक्षा की नीति का सबसे बड़ा उद्देश्य यहां के लोगों के दिमाग में ऐसी विचारों को भरना था जिससे भारतीय आजीवन अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से जकड़ें रहें। यही कारण है कि आज के समय में भी लोगों के दिमाग में अंग्रेजी भाषा को सीख लेने की होड़ है और भाषा का भूत सवार है। मैकाले के द्वारा भारतीय भाषाओं को अविकसित और बेकार बताया गया था जिसके फलस्वरूप भारतीय भाषाओं का विकास रुक गया था। तो इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए यूसीजी को भारत के इन सभी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली शिक्षा पर अपनी विशेष निगरानी रखने की बहुत आवश्कता होगी। जिससे देश विरोधी विषयों को जरा भी हवा न मिले और ऐसे विचारों को अंकुरित होने का मौका न मिले जिससे युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो। यूसीजी को इस विषय को लेकर सतर्क रहना होगा।

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