सत्ता में आने के बाद से ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तुष्टिकरण की राजनीति करने में लगे हुए हैं। हेमंत सोरेन स्वयं आदिवासी समुदाय से आते हैं। आदिवासी समुदाय के वोट के कारण ही हेमंत सोरेन सत्ता में आए हैं, जिनके कारण वो कुर्सी पर बैठे हैं, उन्हीं आदिवासियों को आज वो नजरअंदाज कर रहे हैं। सोरेन के कार्यकाल के दौरान झारखंड में एक अलग ही खेल चल जा रहा है। यहां आदिवासियों को जमीन को हड़पा जा रहा है परंतु सोरेन तो मानो आंख पर पट्टी बांधे बैठे हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी करके जमीन और उनके अधिकार हथिया रहे हैं, परंतु इस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चुप्पी साधे बैठे हैं।
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हड़पी जा रही आदिवासियों की जमीन
दरअसल, झारखंड में एक षड्यंत्र के तहत आदिवासी महिला की जबरन शादी की जा रही है और उनकी जमीन को हड़पा जा रहा है। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा में महा संकल्प रैली को संबोधित करते हुए इस ओर प्रकाश डाला। शाह ने सोरेन सरकार को निशाने पर लेते हुए दावा किया कि वर्तमान शासन आदिवासी विरोधी है और उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए झारखंड को नष्ट कर दिया है।
अमित शाह ने कहा- “मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी हैं परंतु उनकी यह सरकार आदिवासी विरोधी है। झारखंड में भ्रष्टाचार चरम पर है, जमीन हड़पने वाले सक्रिय हैं और मुख्यमंत्री कोई जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। झारखंड में आज आदिवासी महिलाओं की जबरन शादी की जा रही है और उनकी जमीन को हड़पा जा रहा है।”
साथ ही गृह मंत्री ने हेमंत सोरेन सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि घुसपैठियों के इस दुस्साहस को रोकें। नहीं तो झारखंड की जनता आपको माफ नहीं करेगी। वोट बैंक का लालच आदिवासियों के कल्याण से ऊपर नहीं हो सकता।
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झारखंड में आदिवासी समुदाय
दरअसल, देखा जाये तो झारखंड में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं यहां 32 आदिवासी जनजातियां हैं। झारखंड जल, जंगल और जमीन के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने के बाद वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर एक आदिवासी बहुल राज्य बना था। झारखंड की राजनीति आदिवासी समुदाय के इर्द गिर्द ही घूमती है। माना जाता है कि जिसने आदिवासियों का दिल जीत लिया वही यहां अपनी सरकार बना लेता है। यहां सीएम स्वयं हेमंत सोरेन भी इसी समुदाय से आते हैं लेकिन बावजूद इसके वो अधिकारों की रक्षा नहीं कर पा रहे।
आदिवासी बेहद भोले भाले होते हैं, जिसके चलते हैं ये जल्दी ही किसी की भी बातों में आ जाते हैं। इन बातों का लाभ उठाकर गैर आदिवासी बाहरी लोग इन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं। बाहरी आकर आदिवासी समुदाय की लड़कियों को बहला फुसलाकर इनसे शादी कर लेते हैं फिर यहीं उनकी जमीनों पर ही बस जाते हैं। शादी के बाद बाहरी लोग सीधे साधे आदिवासियों का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए करते हैं। अब आप ये सोच रहे होगें कि आदिवासी महिलाओं से शादी करने से बाहरी घुसपैठिए कैसे राजनीतिक लाभ लेते हैं? यह एक बेहद चौकाने वाली बात है।
दरअसल, राजनीति में आदिवासियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए इनको कुछ विशेष अधिकार मिले हुए हैं। झारखंड में 26 सीटें ऐसी हैं जो आदिवासी बहुल हैं और कुल 81 सीटों वाली विधानसभा में 28 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं। लेकिन अशिक्षित और राजनीति का कम ज्ञान होता है जिसका फायदा बाहरी घुसपैठिए उठाते हैं और आदिवासी महिलाओं को अपने जाल में फंसाकर उनसे शादी करने के बाद आदिवासी महिलाओं को चुनावी मैदान में उतार देते हैं। जब आदिवासी महिला चुनाव जीत जाती है तो उनके अधिकारों का स्वयं उपयोग करते हैं।
बस इसलिए राज्य में इतना बड़ा खेल चल रहा है और हेमंत सरकार को इसकी खबर न हो ऐसा होना नामुमकिन है। इतना कुछ होने के बाद भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस पर चुप्पी साधे बैठे हुए हैं।
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आदिवासी लड़कियों को फंसा रहे बांग्लादेशी घुसपैठिये
कुछ महीनों पहले झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में दावा किया था कि बांग्लादेशी मुस्लिम आदिवासी लड़कियों को फंसाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि, शादी का झांसे देकर ये लोग आदिवासी लड़कियों की जिंदगियों के साथ खेल रहे हैं। उन्होंने दावा किया था कि राज्य में तेजी से इस्लामीकरण हो रहा है। एक खबर के अनुसार झारखण्ड के संतालपरगना में बांग्लादेशी घुसपैठ कर आदिवासी संस्कृति पर हमला कर रहे हैं। आदिवासी समाज की भोली-भालि लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाकर उनसे शादी रचा रहे हैं। उनका धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। फिर उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लेते हैं और यहां के नागरिक बन जाते हैं।
जब से झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार आई है तब से लगातार मुस्लिम तुष्टीकरण किया जा रहा है। चाहे वो झारखंड के जामताड़ा में प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों को मुस्लिम आबादी का हवाला देते हुए रविवार के बजाय शुक्रवार को अवकाश दिया जाना हो या फिर नमाज पढ़ने के लिए झारखंड विधानसभा भवन में अलग से एक कमरा अलॉट किया जाना हो। ये घटनाएं हेमंत सरकार के द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण करने का प्रमाण देती हैं। तो क्या आदिवासियों साथ हो रहे इस घोर अत्याचार के विरुद्ध मौन रहना हेमंत सरकार के मुस्लिम तुष्टीकरण की ओर ही इशारा करता है क्योंकि दैनिक जागरण की खबर के अनुसार तो आदिवासियों के अधिकारों का इस प्रकार हनन करने में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग सबसे आगे हैं।
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