राहुल गांधी होना एक गुण है और अखिलेश यादव में यह गुण कूट-कूटकर भरा है

पढ़िए, उत्तर-प्रदेश के राहुल गांधी की जीवनी!

अखिलेश यादव

Source: Newstrack

भारतीय राजनीति में राहुल गांधी होने का अपना एक महत्व है। यदि आप बारीकी से देखेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर पार्टियों के पास अपना-अपना राहुल गांधी है। एक राहुल गांधी दिल्ली में कांग्रेस के पास है। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि एक राहुल गांधी मुंबई में उद्धव ठाकरे के पास हैं। लेकिन आज हम आपको सामने उत्तर-प्रदेश के राहुल गांधी की कथा प्रस्तुत करने जा रहे हैं। इस लेख में आप पढ़ेंगे कि कैसे अखिलेश यादव राहुल गांधी बनने के सभी गुण रखते हैं।

सर्वप्रथम आपको समझना होगा कि राहुल गांधी कोई व्यक्ति नहीं हैं- राहुल गांधी एक गुण है। जैसे विनम्र होना- आक्रामक होना- ईमानदार होना- चोर होना- एक गुण होता है। वैसा ही गुण है राहुल गांधी होना। भारतीय राजनीति में राहुल गांधी वो नेता होते हैं- जो अपनी राजनीतिक समझ से अपनी पार्टी का बेड़ा गर्क देते हैं।

अखिलेश यादव का ‘द ग्रेट फैमिली ड्रामा’ 

इसे अच्छे शब्दों में कह देता हूं। राहुल गांधी वो नेता होते हैं जो अपनी ही पार्टी को धीरे-धीरे खत्म कर देते हैं। इसलिए हम यहां यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि राहुल गांधी गुण की बात कर रहे हैं। सबसे पहले आप यह वीडियो देख लीजिए।

https://twitter.com/ManojKu40226010/status/1612357776025726978

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जी हां, हम इन्हीं अखिलेश यादव के राजनीतिक करियर पर और इनकी राजनीतिक समझ पर एक सरसरी नज़र डाल लेते हैं। तो महोदय, सैफई में पढ़े- इटावा में पढ़े- बैंगलौर में पढ़े- ऑस्ट्रेलिया में पढ़े और लौटकर अपने पिताजी की पार्टी से टिकट लेकर कन्नौज से 2000 में सांसद बन गए।

सांसद बन गए- बनना ही था- क्योंकि कन्नौज यादव बाहुल्य जिला है और मुलायम सिंह यादव की पूरी राजनीति जाति के आस-पास ही घूमती थी और तब तक दिल्ली में कोई नरेंद्र मोदी भी नहीं था जो जाति की राजनीति में सेंध लगाने की ताकत रखता हो। तो अखिलेश यादव 2000 में कन्नौज से चुनाव जीत गए।

चुनाव जीतने के लिए बाद टाइम बीतता गया और फिर आता है 15 मार्च, 2012 अखिलेश यादव उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाते हैं। पुत्रमोह में मुलायम सिंह यादव ने अपनी कुर्सी अपने बेटे को दे दी। लेकिन बेटा जी तो बस कुर्सी पर बैठे थे, सरकार को पिता जी और चाचा जी अर्थात मुलायम सिंह और शिवपाल यादव ही चला रहे थे।

3 वर्ष तक ऐसा ही चलता रहा। फिर अखिलेश यादव को अचानक याद आया अरे वो तो मुख्यमंत्री हैं। चाचा को राजनीतिक तौर पर किनारे करने लगे, समाजवादी पार्टी में द ग्रेट फैमिली ड्रामा शुरू हुआ।

अखिलेश यादव के नेतृत्व में बयानबाजी, कुर्सीबाजी, माइकबाजी, घूंसाबाजी ख़ूब हुई। अंत में मुलायम सिंह यादव ने हथियार डाल दिए। पार्टी अखिलेश यादव को मिल गई। शिवपाल यादव अलग हो गए, एक नई पार्टी बना ली और अखिलेश यादव ने दिल्ली के राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस से गठबंधन कर लिया।

“मैं राहुल गांधी हूं”

 

दोनों राहुल बुरी तरह से 2017 का उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव हार गए। भाजपा ने सरकार बना ली। जिस समाजवादी पार्टी की 2012 में 224 सीटें थी- वो 2017 में 47 सीटों पर सिमट गई। राजनीति के जानकार कहते हैं कि यदि समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ नहीं आती तो ज्यादा सीटें जीतती- यहां से अखिलेश यादव ने अपना राहुल गांधी गुण दिखाना शुरू किया था और उत्तर-प्रदेश का बच्चा-बच्चा उनका यह विशेष गुण देखने लगा था। यह तो उन्होंने स्वयं स्वीकार किया था।

2017 से सबक लेते हुए अखिलेश यादव ने अपनी राजनीतिक समझ को और बड़ा किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने राज्य में अपनी धुर-विरोधी मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन किया और बुआ-बबुआ की जोड़ी मैदान में निकल पड़ी। और अखिलेश यादव को बड़ी सफलता मिली।

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मायावती जिनकी 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य सीटें थी- वो 10 सीटों पर विजयी हुईं- जबकि अखिलेश की समाजवादी पार्टी जिसकी 2014 के लोकसभा चुनाव में 5 सीटें थी- 2019 में भी वो उन्हीं 5 घरेलू सीटों पर विजयी हुए। अर्थात अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी की कुर्बानी देकर मायावती को जितवाया- इसी को तो कहते हैं राहुल गांधी होना।

रामचरित मानस पर हंगामा

 

अब आप सोच रहे होंगे कि अखिलेश का यह विशेष गुण तो उत्तर-प्रदेश के लोग जानते हैं- यह हम अभी क्यों बता रहे हैं? दरअसल, रामचरित मानस का विरोध करने वाले स्वामी प्रसाद मोर्या को प्रमोशन देकर अखिलेश यादव ने एक बार फिर अपना राहुल गांधी का गुण दिखाया है।

अखिलेश यादव, कोशिश कर रहे हैं कि ओबीसी और मुस्लिमों को अपने साथ लेकर आएं- लेकिन वो यह भूल जाते हैं कि सनातन धर्म का अपमान करने वालों के साथ ओबीसी क्यों आएंगे?

गैर-यादव ओबीसी छोड़िए- यादव भी ऐसे लोगों के साथ आने में कतराएंगे- लेकिन अखिलेश यादव तो राहुल गांधी हैं- वो भाजपा को जितवाने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। तो यह थी उत्तर-प्रदेश के राहुल गांधी की संक्षिप्त कथा। आप लोगों का अखिलेश को लेकर क्या सोचना है- कमेंट बॉक्स में हमें अवश्य बताएं।

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