भारत-मिस्र के संबंध: ये तो हम सभी जानते हैं कि पाकिस्तान के साथी तुर्की के साथ भारत के संबंध अच्छे नहीं है। पिछले लंबे समय से ऐसी खबरें आ रही हैं कि भारत, तुर्की और पाकिस्तान के गठजोड़ को कूटनीतिक स्तर पर पटखनी देने के लिए रणनीतियां बना रहा है। फिर वो साइप्रस के माध्यम से हो, आर्मेनिया या फिर मिस्र के सहारे ही क्यों न हो। इन अरब देशों के साथ भारत अपने संबंध मजबूत कर रहा है। इस बार गणतंत्र दिवस के अवसर पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने भारत आए। 24 जनवरी को वो तीन दिवसीय अपनी यात्रा के लिए भारत आए थे। गणतंत्र दिवस के समारोह में उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की थी। ऐसा पहली बार हुआ जब मिस्र का कोई लीडर गणतंत्र दिवस समारोह में चीफ गेस्ट बन हो।
भारत के लिहाज से देखा जाये तो ये एक अच्छा कदम है, क्योंकि अरब देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने से भारत को लाभ होने वाला है। ऐसा कर वो तुर्की को एक तरह से चक्रव्यूह में फंसाने का काम करेगा। चाहे वो कश्मीर का मुद्दा हो या फिर अनुच्छेद-370 का मामला तुर्की हर दम पाकिस्तान के साथ ही खड़ा नजर आता है। परंतु यहां प्रश्न यह है कि आखिर मिस्र क्यों भारत के करीब आ रहा है? उसे भारत से आखिर क्या लाभ है? आज हम आपको इसके पीछे की पूरी कहानी ही बताने जा रहे हैं…
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भारत-मिस्र संबंध: मिस्र की हालत बेहद खराब
भारत और मिस्र के संबंध बेहद पुराने रहे हैं लेकिन पिछले कुछ दशकों में दोनों देशों के रिश्ते कमजोर हो गए थे। हालांकि भारत-मिस्र संबंध को अब फिर से मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। मिस्र इन दिनों संकट में है क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति डगमगाई हुई है। मिस्र के इस बुरे दौर में उसके सहयोगी मुस्लिम देश भी साथ खड़े नहीं दिखाई दे रहे हैं। NBT की एक रिपोर्ट में आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया गया है कि मिस्र महंगाई दर 24 प्रतिशत से अधिक हो गई है। साथ ही विदेशी कर्ज का बोझ 170 अरब डॉलर तक बढ़ गया है। मिस्र का हाल पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह होता जा रहा है। हाल ही में उसने IMF से 3 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज लिया था। मिस्र की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि वहां के लोगों के पास बच्चों की स्कूल फीस तक भरने के लिए लोगों के पास पैसे नहीं हैं।
भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रहा मिस्र आज कर्ज के चक्र में फंस गया है। मिस्र की अर्थव्यवस्था को पिछले 2 वर्षों से डामाडोल रही है। उसकी बुरी हालत के पीछे सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध को बताया जा रहा है। मिस्र को अपने इस संकट के दौर में सहायता की सख्त आवश्यकता है और ऐसे में वो उम्मीद भरी नजरों से भारत की तरफ ही देख रहा है। मिस्र को उम्मीद है कि वो इस मुश्किल समय में उसकी सहायता करेगा। ठीक वैसे ही जैसे संकट में घिरे श्रीलंका की भी भारत ने सहायता की थी। रूस-यूक्रेन जंग के कारण जब मिस्र में खाद्य संकट हुआ तो हुआ तो भारत ने 61 हजार टन गेहूं एक्सपोर्ट किया था।
भारत-मिस्र संबंध
रक्षा क्षेत्र में भी मिस्र को भारत की सहायता की आवश्यकता है। फरवरी में होने वाले एयर इंडिया शो में मिस्र का डेलिगेशन भी आ रहा है। दोनों देशों के बीच व्यापार भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है। पीआईबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021-22 में दोनों देशों के बीच व्यापार में इससे पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में 75 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है। वित्त वर्ष 2021-22 का डेटा पर गौर करें तो भारत और मिस्र के बीच व्यापार 7.26 अरब डॉलर को पार कर गया। अगले पांच वर्षों में इसके 12 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।
कोरोना महामारी के दौर में भी दोनों देशों के बीच आवश्यक सामानों के साथ दवाईयों का भी आयात निर्यात हुआ था। कोविड-19 के दौरान मिस्र ने 2021 की शुरुआत में भारत से 50 हजार वैक्सीन खरीदी थीं। वहीं भारत ने दूसरी लहर के दौरान मिस्र में निर्मित लगभग 3 लाख रेमडिसिविर की खुराकें मगाई थीं। अप्रैल 2022 से ही भारत मिस्र को रियायती दरों पर सैकड़ों टन गेहूं उपलब्ध करा रहा है। अप्रैल 2022 में भारत और मिस्र के बीच 10 लाख टन गेहूं की सप्लाई को लेकर बात हुई थी परंतु फिर मई में भारत ने गेहूं की किल्लत से जूझने के कारण इसके निर्यात पर रोक लगा दी। इस बाद भी भारत ने कुछ देशों को गेहूं भेजना जारी रखा, जिसमें मिस्र भी शामिल था। भारत और मिस्र के बीच व्यापारिक संबंध अच्छे रहे हों। परंतु अब यही मिस्र गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और उसे मदद की सख्त आवश्यकता है। मिस्र ऐसा मानता है कि इन मुश्किल हालातों में भारत उसका साथ देगा।
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मिस्र को बचाएगा भारत?
बता दें कि मिस्र एक ऐसा मुस्लिम देश है, जो हमेशा से ही आतंकवाद और कट्टरता के विरुद्ध खुलकर बोलता आया है। वो OIC में पाकिस्तानी की नीतियों का समर्थन में भी नहीं रहता है। ऐसे में इस्लामिक देशों ने मिस्र को अलग थलग कर दिया है जिस कारण इस संकट की घड़ी में मिस्र अकेला पड़ गया है। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने भी स्वीकारा है कि उनके सहयोगी देश उनके इस मुश्किल समय में उनके साथ नहीं खड़े हैं। केवल इतना ही नहीं इन मुश्किल हालातों में मिस्र को जो सहायता मिल रही है, उसे विरोध में भी कुवैत जैसे इस्लामिक देश सामने आ रहे हैं।
एक समय ऐसा था जब मिस्र खाड़ी देशों का प्रिय हुआ करता था लेकिन अब इसे संकट में देख ये देश इससे किनारा कर रहे हैं। मिस्र की जनता बढ़ती मंहगाई से ग्रस्त है। गेहूं की किल्लत के साथ साथ कई कई कंपनियों चावल का स्टॉक भी कम होता जा रहा है। ऐसे में मिस्र पर चावल का गंभीर संकट मंडरा रहा है। ऐसे में मिस्र भी ये जान रहा है कि भारत सबसे विश्वसनीय भागीदार है जिस पर वह भरोसा कर सकता है और इसलिए वो भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत कर रहा है।
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