Best Ghalib Shayari in Hindi :बेस्ट ग़ालिब शायरी इन हिंदी

Ghalib Shayari

 Best Ghalib Shayari in Hindi :बेस्ट ग़ालिब शायरी इन हिंदी

स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Ghalib Shayari साथ ही इससे जुड़े परिचय  के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें

ग़ालिब परिचय  –

मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म आगरा में  27 दिसंबर, 1797 को हुआ था। वो एक  सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से थे. और उनकी  पृष्ठभूमि एक तुर्क परिवार से थी। मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम “मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां” उर्फ “ग़ालिब” था। ग़ालिब के बचपन में ही, उनके चाचा और पिता का देहांत  हो गया था।

ग़ालिब का अपना जीवनयापन चाचा के देहांत के बाद मिलने वाले पेंशन से होता रहा. बचपन  से ही उन्हें कविताये और शायरी का शौख रहा महज अपनी 11 साल की उम्र से ही कविताएं लिखना आरम्भ कर दिया था।

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।

वर्ना हम भी आदमी थे काम के।।

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।

वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।

शर्म तुम को मगर नहीं आती।।

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।

आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’।

कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।

दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार।

ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है।।

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!

कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,

वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !

बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,

बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था।

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का।

ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता।।

तुम न आए तो क्या सहर न हुई

हाँ मगर चैन से बसर न हुई।

मेरा नाला सुना ज़माने ने

एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।।

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे।

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।।

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना।

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।।

फ़िक्र–ए–दुनिया में सर खपाता हूँ

मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!

दर्द हो दिल में तो दवा कीजे

दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे

उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ

शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ जुरअत-ए-रिंदाना चाहिए

फिर उसी बेवफा पे मरते हैं,

फिर वही जिंदगी हमारी है ।

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