भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई.पू. का समय सभ्याताओं के पुनर्विकास, विविध विरासत और विचारों के फलने-फूलने का समय था। साथ ही यह वो समय था जब भारतीय कृषि व्यवस्था में लोहे का उपयोग और शहरीकरण की शुरूआत होने लगी थी, जिसके कारण कई छोटे-बड़े साम्राज्य फलने-फूलने लगे थे जिन्हें इतिहास में महाजनपदों का नाम दिया गया। इन महाजनपदों की संख्या 16 हुआ करती थी, जिनमें मगध सबसे शक्तिशाली था। मगध सम्राज्य में वैसे तो कई शक्तिशाली वंश हुए लेकिन आज हम हर्यक वंश के संस्थापक बिंबिसार के चरमोत्कर्ष से लेकर उनके बौद्ध धर्म अपनाने और अपने पुत्र अजातशत्रु द्वारा बंदी बनाने तक की पूरी कहानी पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
दरअसल, बिंबिसार मगध साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थे उनका शासनकाल 543 ई.पू से 491 ई.पू के बीच रहा। ज्ञात हो कि यह वही समय था जब भारत में गौतम बुद्ध अपने विचारों का और महावीर अपने विचारों का घूम-घूमकर प्रचार कर रहे थे। बिंबिसार ने बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मों का समान रूप से समर्थन किया लेकिन बाद में बौद्ध धर्म अपना लिया था।
बिंबिसार के शासन करने के स्थान को यदि वर्तमान भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो मौजूदा बिहार के राजगीर के इलाके का नाम आता है। पहले इसे गिरिव्रज और राजगृह के नाम से जाना जाता था। राजगीर के बारे में कहा जाता है कि बिंबिसार ने इसकी भौगोलिकता को ध्यान में रखते हुए इसे बसाया था। इसके अलावा राजगीर शहर की बसावट सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि राजगीर चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है और ऐसे में उस पर किसी भी शत्रु के लिए आक्रमण करना मुश्किल था।
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बिंबिसार की प्रारंभिक सत्ता और शक्ति
बिंबिसार का जन्म लगभग 559 ई.पू के आसपास हुआ। इनका उपनाम ‘श्रेणिक’ था और पड़ोसी राज्य अंग के राज ब्रह्मदत्त से बचपन से ही वो बदला लेना चाहते थे। यही नहीं, बिंबिसार एक शक्तिशाली शासक होने के साथ-साथ बुद्धिमान शासक थे। बिंबिसार अपनी सीमाओं का विस्तार करने के लिए पहले युद्ध की नीति को अपनाते थे लेकिन उन्हें जब लगता कि यहां युद्ध से बात नहीं बनने वाली है तो वह उनसे मित्रता कर लेते थे और मित्रता के सहारे वह अपने हितों को साधने में सफलता प्राप्त करते थे।
उदाहरण के लिए बिंबिसार ने अंग जनपद को अपने आधिपत्य में लेने के लिए युद्ध तो किया और उसे आधिपत्य में ले भी लिया। लेकिन अवंति को लेकर उन्होंने कूटनीति के साथ काम किया। अंवति को अपने आधिपत्य में लेने के लिए पहले उन्होंने युद्ध तो किया लेकिन जब बार-बार युद्ध करने के बाद भी वह अवंति पर कब्जा न कर सके तो उन्होंने अवंति के राजा प्रद्योत से संधि कर ली और मित्रतापूर्ण संबंधों के कारण वह अंवति को अपने पक्ष में लाने में सफल हुए। बिंबिसार और प्रद्योत की मित्रता के बारे में समकालीन बौद्ध धर्म ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है।
बिंबिसार की शासन व्यवस्था
मगध साम्राज्य में होने वाले वंशों के बारे में बात की जाए तो बिंबिसार की सेना उसके बाद के हुए वंशों की अपेक्षा कम थी लेकिन उन्होंने शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक व्यवस्थित प्रक्रिया अपनायी, जिसके अंतर्गत उन्होंने लगभग 80 हजार गांवों में मुखिया नियुक्त किए। जिनका काम ‘कर वसूली’ करना और गांव की वित्त व्यवस्था को बनाए रखना था। इसके अलावा बिंबिसार ने न्यायिक व्यवस्था की स्थापना भी की थी। न्यायिक व्यवस्था में नियुक्त किए गए लोगों को यह अधिकार दिए गए थे कि शासन व्यवस्था के अंतर्गत काम करने वाला कोई भी व्यक्ति अगर ठीक से काम नहीं करता है तो उसे उसके पद से हटाया जा सकता है। बिंबिसार की शासन व्यवस्था को मगध साम्राज्य में आने वाले दूसरे वंशों ने भी अपनाया था। लेकिन जो राजा इतना महान था, जिसकी महानता के किस्से इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं, वह बर्बाद कैसे हो गया, उसके साम्राज्य का पतन कैसे हो गया? यह बड़ा सवाल है।
बौद्ध धर्म में बिंबिसार की रूचि और निर्बलता
बिंबिसार की युद्ध नीति, कूटिनीति और शासन व्यवस्था जैसे मजबूत पक्षों के साथ-साथ बिबिंसार का एक कमजोर पक्ष भी नजर आता है, जो उनकी लोकप्रियता में पलीता लगाने का काम करता है और वह है बिंबिसार का बौद्ध धर्म अपना लेना। मगध साम्राज्य में बिंबिसार पहले ऐसे शासक थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया था। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद बिबिंसार ने शासन व्यवस्था और सीमाओं का विस्तार करने के बजाय अपना पूरा ध्यान बौद्ध धर्म के विस्तार पर लगा दिया। बिंबिसार अब वह बिंबिसार नहीं रह गए थे, जिन्होंने अंग पर आक्रमण कर उसे अपने अंतर्गत कर लिया था।
बिंबिसार के बौद्ध धर्म अपनाने के दौरान उनका बेटा अजातशत्रु अंग राज्य पर शासन कर रहे थे। जब उन्होंने बिंबिसार को इस प्रकार से बौद्ध धर्म अपनाने के बाद युद्ध न लड़ने और शांति की राह पर चलने का प्रण लेते हुए देखा तो उन्हें प्रतीत हुआ कि बिंबिसार अब शासन ठीक तरह से चला नहीं पा रहे हैं और सारी चीजें बर्बाद हो रही हैं। इसलिए उन्होंने बिंबिसार को पद से हटा कर उन्हें बंदी बना लिया। बिंबिसार की मृत्यु के बारे में बताया जाता है कि कैद के दौरान ही जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी। यदि हर्यक वंश के संस्थापक बिंबिसार के चरमोत्कर्ष से लेकर बौद्ध धर्म अपनाने और मृत्यु होने तक संक्षेप में कहा जाए तो बिंबिसार एक योग्य शासक थे लेकिन उनके द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने और बुद्ध के अनुसार अपनी नीतियों को परिवर्तित करने के कारण वह अंत में आकर एक कमजोर शासक के रूप में परिवर्तित हो गए, जो उनके पतन का कारण भी बना।
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