काला कपड़ा और जल्लाद के वो 11 शब्द: कुछ इस तरह दी जाती है फांसी की सजा

फांसी की सजा से जुड़ी इन बातों को नहीं जानते होंगे आप।

फांसी की सजा

SOURCE TFI

किसी व्यक्ति को कानूनी रूप से  न्यायिक प्रक्रिया के तहत जब किसी अपराध के लिए प्राणांत का दण्ड दिया जाता है तब वह दंड मृत्युदण्ड कहलाता है और भारत में मृत्युदण्ड फांसी के रूप में दिया जाता है। सरल रूप में कहें तो किसी गंभीर अपराध के लिए दोषी को यह दंड दिया जाता है। फांसी की सजा को दिए जाने के कई नियम है, आइए जानते हैं फांसी दी जाने से जुड़ी उन बातों को जिनके बारे में लोग बहुत कम ही जानते हैं।

स्वतंत्र भारत में पहली फांसी की सजा कहां दी गई?

भारत में पहली फांसी जबलपुर सेंट्रल जेल में 9 सितंबर 1947 को दी गई थी। वहीं अभी तक की अंतिम फांसी की बात की जाए तो निर्भया केस के 4 गुनहगारों को 20 मार्च 2020 को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई। एनसीआरबी के अनुसार देश में दिसंबर 2020 तक 442 कैदियों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी थी, जिनमें 29 की सजा कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दी, 413 कैदियों की सजा पर अमल होना बाकी है मतलब उनको लेकर अभी स्थिति कुछ साफ नहीं है।

वहीं अगर साल 2021 की बात करें तो 144 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। ऐसे में दिसंबर 2021 तक जेलों में 557 ऐसे कैदी थे, जिन्हें मौत की सजा सुनाए जाने के बाद भी फांसी पर नहीं लटकाया गया। ज्यादातर बार यह देखा जाता है कि निचली अदालतों के फैसले ऊपरी अदालतों में बदल दिए जाते हैं। कुछ अपराधियों की सजा तो देश के राष्ट्रपति भी माफ कर चुके हैं लेकिन आतंकवाद और वीभत्स अपराध की श्रेणी के अपराधियों को आज भी फांसी पर लटकाने से ज्यादा परहेज नहीं किया जाता है।

मुंबई हमले के आतंकी अजमल आमिर कसाब से लेकर संसद हमले के सरगना अफजल गुरु और निर्भया कांड के दोषियों ने भी ऐसे ही गुनाहों की सीमा को पार किया था जिसके बाद उन्हें मौत की सजा का फरमान सुनाए जाने के बाद फांसी के फंदे पर लटकाया गया और देश के किसी भी न्यायिक संस्थान ने उन्हें राहत नहीं दी।

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जेल में तैयार होता है ब्लैक वॉरंट

अब आपको बताते हैं कि फांसी की सजा होने के बाद क्या होता है। जिस भी अपराधी को फांसी दी जाती है तो सबसे पहली प्रक्रिया के तहत जेल में ही अपराधी का डेथ वॉरंट या फिर ब्लैक वारंट तैयार किया जाता है। ये ब्लैक वारंट काले रंग के बॉर्डर वाला एक पेपर होता है जिसमें कैदी का नाम, उसकी सजा-ए-मौत का दिन और जगह लिखी हुई रहती है, यह ब्लैक वॉरंट सीधे तौर पर अपराधी की मौत का फरमान होता है।

14 दिन पहले दी जाती है फांसी की जानकारी

इसके बाद कैदी को एक अलग सेल में रखा जाता है और वह किसी अन्य कैदी से नहीं मिल सकता है। जेल के अंदर बंद कैदी को 14 दिन का वक्त दिया जाता है, उसे यह बता दिया जाता है कि किस दिन और किस समय उसे फांसी पर चढ़ाया जाएगा। कैदी के लिए ये 14 दिन अहम होते हैं क्योंकि इस दौरान कैदी खुद को मानसिक तौर पर फांसी के लिए तैयार करता है और उसे अपने रिश्तेदारों से मिलने की अनुमति दी जाती है, इतना ही नहीं यदि उसके पास कोई जायज प्रॉपर्टी है तो वह उसकी वसीयत भी तैयार करने के लिए सक्षम होता है।

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तैयार होता है फांसी का फंदा

फांसी के दौरान कैदी के स्वास्थ्य को भी पल-पल मॉनिटर किया जाता है और उनका समय-समय पर वजन भी चेक किया जाता है क्योंकि इसके आधार पर ही फांसी के नीचे के तख्त की गहराई रखी जाती है। इसके बाद जब फांसी के एक-दो दिन बचे होते हैं तो फिर फांसी के लिए अलग-अलग तरह से ट्रायल किए जाते हैं। बता दें कि फांसी के लिए रस्सी मुख्य तौर पर बिहार के बक्सर जिले से आती है जो कि काफी सहज मानी जाती है। आम तौर पर ये सारे ट्रायल जल्लाद ही करता है जो कि फांसी से दो दिन पहले ही जेल में आती है और कैदी के वजन के अनुसार ही होती है।

भारत में क्या होता है फांसी का समय

अभी तक हमने जब भी फांसी देने के समय के बारे में सुना है, सुबह के समय के बारे में ही सुना है। देश के नागरिक सुबह सोकर उठे हैं तो पता चला है कि आज सुबह ही किसी कैदी को फांसी दी गई। ऐसा नहीं है कि किसी भी समय कैदी को फांसी दी जाती है क्योंकि फांसी का समय स्थान तक दर्ज होता है। सर्दी गर्मी के हिसाब से फांसी देने का समय अलग-अलग होता है। नवंबर से फरवरी तक सुबह 8 बजे का वक्त फांसी के लिए निर्धारित होता है, वहीं मार्च, अप्रैल, सितंबर और अक्टूबर महीने में सुबह 7 बजे जबकि मई से अगस्त तक सुबह 6 बजे तक फांसी दे दी जाती है। इन महीनों में सामान्य तौर पर सूर्योदय का समय यही रहता है। सुबह का समय इसलिए चुना जाता है क्योंकि ये माना जाता है कि सुबह-सुबह फांसी देना कैदी के लिए मानसिक तौर पर आसान होता है। उसे पूरे दिन इंतजार नहीं करना पड़ता। एक खास बात यह भी है कि भारत में कभी भी सार्वजनिक अवकाश वाले दिन फांसी दी नहीं जाती है।

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क्या होता है फांसी वाले दिन का रुटीन

जानकारी के मुताबिक जिस दिन कैदी को फांसी होती है, उसे उस दिन नहलाया जाता है उसे उसकी इच्छानुसार सुबह का नाश्ता करवाया जाता है।  उसकी अंतिम इच्छा भी उसी दिन सुबह पूरी की जाती है। ये अंतिम इच्छा जेल मैनुअल के हिसाब से तय होती है. जैसे कैदी अपनी पसंद का खाना खाने की इच्छा जाहिर कर सकता है, किसी से मिलने की इच्छा या फिर पूजा-पाठ की इच्छा बता सकता है। फांसी के दौरान ऐसा नहीं है कि कोई भी वहां मौजूद हो सकता है। नियम के मुताबिक जेल सुपरिटेंडेंट, असिस्टेंट जेल सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर, छह वार्डन और जल्लाद ही फांसी के समय मौजूद होते हैं। इस दौरान सुपरिटेंडेंट मुजरिम को वारंट पढ़कर सुनाता है और फिर कैदी को उस पर अपने हस्ताक्षर या अंगूठा लगाना होता है।

जल्लाद के हवाले कर दिया जाता है कैदी

इसके बाद कैदी को उसकी सेल से निकालकर फांसी वाली जगह तक ले जाया जाता है। इस दौरान कैदी के हाथ पीछे की ओर बंधे होते हैं। जितनी देर में कैदी फांसी के स्थान तक पहुंचता है उस दौरान ही जल्लाद फांसी का फंदा भी तैयार कर लेता है।  इसके बाद फांसी वाले तख्ते के पास कैदी को खड़ा करके उसे जल्लाद के हवाले कर दिया जाता है। जल्लाद  कैदी के सिर को पूरी तरह से काले कॉटन के कपड़े से ढक देता है और कैदी के कान में कहता है, ‘राम राम, मुझे माफ करना, मैं अपना फर्ज निभा रहा हूं’। जल्लाद के ये वाक्य कैदी के धर्म के अनुसार होते हैं, यदि कोई कैदी मुस्लिम हैं तो जल्लाद उसे यही बात राम राम की बजाए सलाम बोलकर कहेगा। इसके बाद फंदा उसके गंले में डालकर लीवर खींच दिया जाता है।

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धार्मिक आधार पर अंतिम संस्कार

कैदी की इस दौरान थोड़ी देर छटपटाने के बाद मौत हो जाती है और आधे घंटे बाद उसके शव को उतारकर मेडिकल किया जाता है फिर बॉडी को वहां से हटाकर उसका पोस्टमार्टम किया जाता है। ऐसे में यदि कैदी के परिजन उसके शव को लेने के लिए आते हैं तो उन्हें शर्तों के साथ शव दे दिया जाता है और पुलिस की मौजूदगी में ही कैदी के शव का अंतिम संस्कार होता है। वहीं कई मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि कैदी के परिजनों ने या तो उसके शव को लेने से मना कर दिया होता है या फिर परिजनों का कोई अता पता ही नहीं होता है। ऐसे में जेल प्रशासन कैदी के धार्मिक रिति रिवाज के आधार पर जेल में ही उसका अंतिम संस्कार कर देता है।

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