कैसे भारतीय सेना के लिए अचूक अस्त्र समान होंगे Cyborgs Rat? इससे जुड़े हर प्रश्न का उत्तर यहां जानिए

DRDO काफी तेजी से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। अभी तक अमेरिका और चीन ही इसे विकसित कर पाए हैं। DRDO के सफल होते ही हम ऐसा करने वाले दुनिया के तीसरे देश बन जाएंगे।

Cyborg Rat

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Cyborgs Rat: आज के समय में डिफेंस सेक्टर में जितने ज्यादा आवश्यक बम, बारूद और हथियार हैं, उतना ही तकनीक का इस्तेमाल भी आवश्यक है। कोई भी देश यह नहीं चाहता कि युद्ध से लेकर सीक्रेट मिशन आदि में सैनिकों की ज्यादा क्षति हो। ऐसे में एक ही चीज काम आती है और वह है रोबोटिक्स। अब दिक्कत यह है कि रोबोटिक्स का उपयोग किस तरीके से किया जाता है क्योंकि यह बात तो दुश्मन भी समझने लगा है।

ऐसे में जरूरी यह है कि रोबोटिक्स के साथ कुछ ऐसे प्रयोग किए जाएं, जो कि दुश्मन को पता भी न हो और उस तकनीक की मदद से अपना काम निकाल लिया जाए। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। आज के इस विशेष लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे भारत का DRDO कुछ ऐसी ही टेक्नोलॉजी (Cyborgs Rat) पर काम कर रहा है, जिसमें चूहों की मदद ली जा रही है। लेकिन यह प्रोजेक्ट क्या है, कैसे इसका प्रयोग किया जा सकता है? इसका जवाब आगे लेख में मिलेगा।

दरअसल, रोबोटिक्स की दुनिया दो तरह की होती है- Android Robot और Cyborgs Rat। सबसे पहले बात एंड्रायड रोबोट की करें तो यह कोई मोबाइल सॉफ्टवेयर नहीं है बल्कि इस तरह के रोबोट इंसानी बनावट की तरह दिखने वाले होते हैं। इसके अलावा उस रोबोट की बात करें तो वह बस तकनीक का एक प्रोटोटाइप होते हैं जबकि आज हम जिस साइबोर्ग की बात कर रहे हैं, यह असल में जीव होते हैं। इनमें जान होती हैं, भावनाएं होती हैं जिसके कारण यह काफी हद तक डिफेंस सेक्टर में उपयोगी बन सकते हैं।

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DRDO कर रहा है Cyborgs RAT पर काम

ध्यान देने योग्य है कि भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी DRDO ने अब डिफेंस मैकेनिज्म को विकसति करने और सीक्रेट जानकारियों को निकालने के लिए साइबोर्ग के एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम करने की बात कही है। खास बात यह है कि इसमें चूहों का इस्तेमाल रोबोट के तौर पर किया जाएगा। जानकारी के मुताबिक DRDO की DYSL-AT के वैज्ञानिक एक खास चूहे के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, जिसके सिर पर कैमरे लगे होंगे और उनके दिमाग को रिमोट से कंट्रोल किया जा सकेगा।

DRDO के DYSL-AT के निदेशक पी. शिव प्रसाद ने बताया कि यह पहली बार है जब भारत इस तरह की तकनीक विकसित करने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। कुछ देश पहले से ही इस टेक्नोलॉजी से लैस हो चुके हैं। उन्होंने इसके प्रयोग को लेकर बताया कि यह खुफिया जानकारी जुटाने से लेकर, निगरानी करने तक सुरक्षा बलों के लिए सर्वाधिक उपयोगी साबित हो सकते हैं।

कैसे काम करेगी Cyborgs Rat तकनीक

DRDO के अधिकारियों ने बताया है कि इस पूरे प्रोजेक्ट के दो पार्ट हैं। पहले चूहों को ऑपरेटरों के आदेशों का पालन करने के लिए सभी तरह के निर्देश, ट्रेनिंग के जरिए दिए जाएंगे। इसके बाद उनके सिर पर कैमरे लगाए जाएंगे, जिससे वह चीजों की खोज में निकल सकेंगे और उनका दिमाग रिमोट से कंट्रोल किया जा सकेगा। जानकारी के अनुसार, प्रोजेक्ट का पहला चरण आसानी से पार कर लिया गया है। इसमें सर्जरी के माध्यम से चूहों में इलेक्ट्रोड लगाए गए हैं, जो कि रिमोट कंट्रोल से नेविगेट होंगे। बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट में डीआरडीओ ने शुरुआती दौर में तीन-चार चूहों पर ही टेस्टिंग की है।

अधिकारियों ने बताया है कि चूहों को इस प्रोजेक्ट के लिए सबसे उत्तम माना जाता है क्योंकि वे किसी भी काम को करने को लेकर सबसे ज्यादा दृण संकल्पित होते हैं। किसी भी काम को करने के बाद इन चूहों को खाने का रिवॉर्ड दिया जाता है, जो कि इन्हें इनके टारगेट पर बने रहने के लिए प्रेरित करता है। अधिकारियों ने यह भी बताया है कि चूहों के पास जल्दी से चलने, दुर्गम स्थानों तक पहुंचने, सीढ़ियों पर चढ़ने और खुद के टारगेट को ढूंढने की सबसे ज्यादा लालसा होती है, जिससे ये डिफेंस सेक्टर के लिए सबसे बेहतरीन साबित हो सकते है। वहीं, खास बात यह भी है कि अगर चूहा रुक जाता है, तो रिमोट कंट्रोल के जरिए उसे दिमागी तौर पर काम को पूरा करने के लिए प्रेरित भी किया जाता है।

Cyborgs RAT से क्या होगा फायदा ?

आप सभी को 26/11 का मुंबई आतंकी हमला याद होगा, जिसमें होटल में लोगों को बंधक बनाकर आतंकी दहशत फैला रहे थे। लेकिन अहम बात यह है कि सुरक्षा बलों को इस हमले में आतंकियों को काउंटर करने में दो दिन से ज्यादा का समय लगा था क्योंकि कमांडोज के पास किसी भी तरह की आतंकियों की जानकारी नहीं थी। डीआरडीओ का कहना है कि इसी परिस्थिति में काम करने के लिए चूहे को साइबोर्ग बनाए जा रहे हैं, जो कि दुश्मन की एक एक चीज पर नजर रखेंगे और खुफिया जानकारी पहुंचाएंगे। लेकिन दुश्मन इन्हें सामान्य  चूहा समझकर नजरंदाज करेगा। ऐसे में सुरक्षा बलों का प्लान ज्यादा स्पेसिफिक और पिन प्वॉइंटेड हो सकता है, जिससे घंटो का काम मिनटों में सिमट जाए।

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चीन और अमेरिका कर चुके हैं विकसित

यह पहली बार नहीं है कि किसी देश ने साइबोर्ग विकसित किया है। अमेरिका ने वर्ष 2014 में अपने साइबोर्ग प्रोजेक्ट की घोषणा की थी और इसी तरह वर्ष 2019 में चीन ने भी ऐसा साइबोर्ग विकसित किया था। जिसमें दावा किया गया था कि एक चूहे के दिमाग को इंसानी दिमाग से कंट्रोल किया जा सकता है। इसे लेकर कुछ डिटेल्स भी सामने आई थीं लेकिन अब भारत इस प्रोजेक्ट पर काफी बड़े स्तर पर काम कर रहा है। आपको बता दें कि केवल चूहों पर ही नहीं बल्कि कई तरह के जानवरों पर इस तरह की तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।

हालांकि, इसमें भी लगभग हर तरह की प्रक्रिया का पालन किया जाता है। दक्षिण कैरोलिना विश्वविद्यालय के रिसर्चर्स ने डॉल्फ़िन को सेंसर और उनके शरीर से जुड़े अन्य उपकरणों की मदद से पानी के नीचे की खानों की पहचान करने और उन्हें चिह्नित करने में सक्षम बनाने पर काम किया है। इसी तरह नॉर्थ कोरिया द्वारा हमले तक के लिए डॉल्फिन को विकसित करने की खबरें सामने आ चुकी हैं, जो बताती हैं कि भारत ही पहली बार इस प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर रहा है क्योंकि दुनिया में कई देश इस तरह के प्रोजेक्ट में सफलता प्राप्त कर चुके हैं।

पेटा की नौटंकी

आपको बता दें कि अब पशुओं के साथ किए जा रहे प्रयोग पर कुछ एनिमल एक्टिविस्ट संस्थाओं की नाराजगी भी सामने आई है। पेटा जैसे संगठनों ने भारत में साइबोर्ग जानवरों के उपयोग के बारे में नैतिक चिंता व्यक्त की है। उन्होंने यह दावा किया है कि संशोधनों से जानवरों को अनावश्यक पीड़ा हो सकती है या उन्हें उनकी प्राकृतिक क्षमताओं से वंचित किया जा सकता है। हालांकि, पेटा का डबल स्टैंडर्ड समय समय पर सामने आता रहा है, जो कि गाय के दूध को पीने पर मनाही की बात करते हुए इसे गायों पर प्रताड़ना बताता है लेकिन यही पेटा बकरीद पर बकरियों और क्रिसमस पर ‘टर्की’ की हत्याओं पर चुप्पी साध लेता है।

पेटा जैसे दोगले संगठनों से भारत के डिफेंस सेक्टर के बेहतरीन प्रोजेक्ट को लेश मात्र भी फर्क नहीं पड़ना चाहिए। DRDO का यह प्रोजेक्ट भारत में विशेष क्रांति ला सकता है। आतंकी हमलों से लेकर कश्मीर में सीक्रेट सैन्य मिशनों तक में इसका खूब प्रयोग किया जा सकता है। यह भारत के लिए हर तरह से सही साबित हो सकता है, वैज्ञानिक इस पर जोर शोर से काम कर रहे हैं। ऐसे में अब उस दिन का इंतजार है, जब DRDO इस प्रोजेक्ट की सफलता की घोषणा कर दे।

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