हर प्राचीन प्रांत की अपनी कथा और रीति होती है। एक ऐसा ही प्रांत था मिथिलांचल, जिसमें वर्तमान बिहार के दरभंगा, सीतामढ़ी, मुंगेर, मधुबनी एवं मुज़फ्फ़रपुर जैसे नगर समाहित हैं। बागमती नदी के निकट स्थित दरभंगा एक समय इसी मिथिलांचल की सांस्कृतिक राजधानी हुआ करता था। कहते हैं कि वर्षों तक जनकपुर नगर इस प्रांत के सत्ता का केंद्र हुआ करता था और इसी प्रांत में कभी राजा जनक का शासन भी हुआ करता था।
ज्ञान एवं संस्कृति का केंद्र
समय बदला, नगर बदले, शासन भी बदला, परंतु एक बात आज भी नहीं बदली, और वह यह कि इस प्रांत की सांस्कृतिक विरासत अनंत है, भव्य है, जिसे निरंतर आक्रमण भी नहीं मिटा पाए। मिथिला सदैव से ज्ञान, चर्चा एवं संस्कृति का केंद्र रहा है, और यहीं पर माता सीता का जन्म भी हुआ था। इसी मिथिला से अनेक साधु संत एवं चिंतक निकले हैं, जिन्होंने समय समय पर भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में अपना अद्वितीय योगदान दिया, और आज भी एक हस्ती का नाम इस क्षेत्र में गूंजता है जिसका नाम है– गोनू झा।
गोनू झा का नाम लोगों ने कम ही सुना होगा, हमारे इतिहासकारों ने सदैव ही अकबर बीरबल के बहुत चर्चे किए हैं, भले ही उनकी जोड़ी वास्तव में थी या नहीं, इससे कोई सरोकार नहीं, परंतु इन्हीं का गुणगान इतना किया गया कि अन्य किसी विद्वान की प्रशंसा तो छोड़िए, चर्चा के योग्य भी नहीं छोड़ा गया। स्वयं तेनालीराम जैसे विद्वान को भी इन इतिहासकारों ने इसलिए नहीं जगह दी क्योंकि वह इनके एजेंडे के अनुसार फिट नहीं बैठता।
और पढ़ें- अंततः भारत ई-स्पोर्ट्स के क्षेत्र में इतिहास रचने के लिए उतर ही गया
गोनू झा कौन थे?
परंतु ये गोनू झा कौन थे? साफ शब्दों में कहें तो मिथिला में कोई भी शुभ कार्य बिना मछली, मखाना और गोनू झा के पूर्ण ही नहीं होता। अपनी बुद्धिमत्ता और हास्य रस में निपुण होने के लिए ये विद्वान मिथिलांचल के घर-घर में जाने जाते हैं और कई मामलों में ये यदि तेनालीराम से बेहतर नहीं, तो उनके समानांतर तो अवश्य थे।
वर्तमान दरभंगा के सिंघवाड़ा ब्लॉक के भरवाड़ा ग्राम से नाता रखने वाले गोनू झा अपने कार्यकुशलता एवं बुद्धिमत्ता के लिए जाने गए। 13 वीं सदी में जब दरभंगा प्रांत पर राजा हरीसिंह का शासन था तब तो गोनू झा उन्हीं की सेवा में कार्यरत थे। इनके प्रारम्भिक जीवन के बारे में कम ही लोग जानते हैं, परंतु इनकी बुद्धिमत्ता एवं इनकी चतुराई के बारे में सम्पूर्ण मिथिलांचल में चर्चे होते हैं। आज भी कई वृद्धजन अपने पोते-पोतियों को इन्हीं की कथाएं सुनाकर सुलाते हैं।
अब इसके कई कारण हो सकते हैं, परंतु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मिथिलावासी इन कथाओं को अब तक सहेजकर रखे हैं और इनका कथावाचन भी अपने आप में अनोखा है, जिसकी प्रशंसा में शब्द भी कम पड़ेंगे।
और पढ़ें- महाजनपदों का गौरवशाली इतिहास: भाग 4- अवंती
हर कठिनाई का सामना किया
गोनू झा ने जीवन में लगभग हर कठिनाई का सामना किया। कभी चोर उचक्कों से लेकर जंगली पशु, ढोंगी फकीर, अंधा प्रेम, कुटिल प्रचारक, यहाँ तक कि उस समय के अभिजात्य वर्ग से भी इनका पाला पड़ा है पर कोई भी गोनू झा को सीधे या टेढ़े मार्ग से भी परास्त नहीं कर पाया।
गोनू झा के जीवन से सबसे उत्कृष्ट सीख मिलती है कि उन्होंने किसी भी समस्या को लेकर हाय तौबा नहीं किया, अपितु हर समस्या का सामना ठंडे दिमाग और काफी सोच विचार के बाद ही किया। उनके पास तो मानो हर समस्या का रामबाण था।
परंतु इन सब समाधानों में एक बात समान थी – गोनू झा के सभी समाधानों का आधार था व्यवहारिकता। गोनू झा अपने जीवन को लेकर काफी दार्शनिक थे। परंतु आज के कथित दर्शनशास्त्रों की तुलना में वे अपने दर्शन से समस्या का समूल नाश करने पर ध्यान देते थे। वे केवल नाम के बुद्धिजीवी नहीं, अपितु वास्तविक बुद्धिजीवी थे।
और पढ़ें- मिलिए इतिहासकार जेम्स मिल से, जो एक बार भी भारत नहीं आए लेकिन भारत का इतिहास लिख डाला
सुयोग्य और दृढ़निश्चयी राजा
कोई भी परिवार, चाहे आम हो या राजसी, वह तभी प्रसन्न रह सकता है जब उनके आसपास के लोग भी उनसे प्रसन्न हों। ये स्पष्ट है कि एक योग्य एवं चतुर सलाहकार के बिना राजपाट संभालना सरल है, परंतु उतना ही सुयोग्य और दृढ़निश्चयी राजा भी हो तो प्रजा को किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं होंगी, और इसी दिशा में गोनू झा अपने राजन को आगे बढ़ने के लिए सुझाया करते थे। गोनू झा ने सिखाया कि हास्य रस को यदि सही दिशा में मोड़ो तो संसार के अनेक दुख मिट सकते हैं।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।