Ganga Ji Ki Aarti : गंगा जी की आरती हिंदी में एवं कहानी
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Ganga Ji Ki Aarti साथ ही इससे जुड़े कहानी के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता ।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता ॥
चंद्र सी जोत तुम्हारी, जल निर्मल आता ।
शरण पडें जो तेरी, सो नर तर जाता ॥
ॐ जय गंगे माता …
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता ।
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता ॥
ॐ जय गंगे माता …
एक ही बार जो तेरी, शारणागति आता ।
यम की त्रास मिटा कर, परमगति पाता ॥
ॐ जय गंगे माता …
आरती मात तुम्हारी, जो जन नित्य गाता ।
दास वही सहज में, मुक्त्ति को पाता ॥
ॐ जय गंगे माता …
Om Jai Gange Mata, Shri Jai Gange Mata
Jo Nar Tumko Dhyata, Man Vanchit Phal Pata
!! Om Jai Gange Mata !!
Chandra Si Jot Tumhari, Jal Nirmal Aata
Sharan Pade Jo Teri, So Nar Tar Jata
!! Om Jai Gange Mata !!
Putra Sagar Ke Taare, Sab Jag Ko Gyata
Kripa Drishti Tumhari, Tribhuvan Sukh Data
!! Om Jai Gange Mata !!
Ek Baar Jo Teri, Sharanagati Aata
Yam Ki Traas Mitakar, Paramgati Pata
!! Om Jai Gange Mata !!
Aarti Mat Tumhari, Jo Jan Nitya Gata
Arjun Wahi Sahaj Mein, Mukti Ko Pata
!! Om Jai Gange Mata !!
कहानी –
प्राचीन काल में सगर नाम के राजा हुए जिनकी दो केशिनी तथा सुमति नामक रानियाँ थीं, सुमति के साठ हज़ार तथा केशिनी का एक पुत्र था। एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। यज्ञ भंग करने हेतु देवराज इन्द्र ने राजा द्वारा छोड़े गए घोड़े को चोरी कर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया।
राजा ने यज्ञ के घोड़े की खोज में अपने साठ हज़ार पुत्रों को भेजा। घोड़े को खोजते-खोजते सभी पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पोहोंच गए, वहां घोड़े को बंधा देख कपिल मुनि को चोर-पाखंडी कहने लगे और उनके लिए अपशब्द भी कहने लगे। उस समय कपिल मुनि प्रभु ध्यान में मगन थे, राजा के पुत्रों के कारण कपिल मुनि की समाधि टूट गई तथा राजा के सारे पुत्र कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में जलकर भस्म हो गए। जब बहुत समय होने पर भी किसी पुत्र की कोई सूचना नहीं मिली, तो पिता की आज्ञा पाकर अंशुमान अपने भाइयों को खोजता हुआ जब मुनि के आश्रम में पहुंचा।
वहां उसे गरुण मिले जिन्होंने सम्पूर्ण घटना स्वयं देखी और अंशुमान को उसके भाइयों के भस्म होने का सारा वृत्तांत कह सुनाया। गरुड़जी ने अंशुमान को यह भी बताया कि यदि इनकी मुक्ति चाहते हो तो गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा।
परन्तु पहले अपने पिता का यज्ञ पूर्ण कराओ, तदोपरान्त देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने का कार्य करो, देवी गंगा द्वारा ही तुम्हारे सभी भाईयों की आत्मा को मुक्ति मिल सकती है।अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञ मंडप में पहुंचकर राजा सगर से सब वृतांत कह सुनाया। अपने भाइयों की आत्मा की शांति के लिए अंशुमान ने देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तप किया, परंतु वह असफल रहे।अंशुमान की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दिलीप हुए, दिलीप ने भी देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या की परंतु उन्हें भी सफलता नहीं मिली।अंत में दिलीप के पुत्र भगीरथ ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। कई वर्ष बीत जाने पर ब्रह्माजी ने भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न गंगाजी को पृथ्वी लोक पर ले जाने का वरदान दिया।अब समस्या यह थी कि ब्रह्माजी के कमण्डल से छूटने के बाद पृथ्वी पर किसी में यह शक्ति नहीं है जो गंगा के वेग को संभाल सके। ब्रह्माजी ने बताया कि भूलोक में भगवान शंकर ही है, जो देवी गंगा के वेग को संभाल सकते हैं। इसलिये तुम भगवान शिव से प्रार्थना करो।
भगीरथ एक अंगूठे पर खड़े होकर भगवान शंकर की आराधना करने लगे। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी गंगा को अपनी जटाओं में संभालने के लिए तैयार हो गए। जब देवी गंगा ब्रह्माजी के कमण्डल से पृथ्वी की ओर बढ़ी तो शिवजी ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया।बहुत वर्षों तक गंगा शिव जी की जटाओं से निकल नहीं, पाई तब भागीरथ ने शिव जी से देवी गंगा को जटाओं से मुक्त करने को विंती की। इसके बाद शिव जी ने अपनी जटाएं खोल दी और देवी गंगा जटाओं से निकल कर हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर बढ़रही थीं, उसी मार्ग में ऋषि जून का आश्रम था।
गंगा के शोर से ऋषि जून की तपस्या में विघ्न आ रहा था, जिससे क्रोधित हो ऋषि जून गंगा को पी गए। भगीरथ के प्रार्थना करने पर उन्हें पुन: जाँघ से निकाल दिया, तभी से गंगा को जाह्नवी या जहूपुत्री कहा जाने लगा।अनेक स्थानों को पार करती हुई गंगा कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म अवशेषों को तारकर मुक्त किया। ब्रह्माजी ने भगीरथ के कठिन तप का वर दिया कि तुम्हारे नाम पर गंगाजी का नाम भागीरथी होगा।
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