वो दिन दूर नहीं जब ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यात करेगा भारत, ये है सरकार की रणनीति

ग्रीन हाइड्रोजन के सेक्टर में सरकार का यह कदम क्रांति ला सकता है। समझिए कैसे?

ग्रीन हाइड्रोजन

SOURCE TFI

ग्रीन हाइड्रोजन भारत: गर्मी हो या ठंड दिनोदिन बढ़ती पेट्रोल की कीमतों ने लोगों के पसीने छूड़ा दिए हैं। वहीं दूसरी ओर ईंधन की बढ़ती मांग और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्याओं के कारण ऊर्जा के नये स्त्रोतों की आवश्यता भी बढ़ती जा रही है। बीते कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति लोग जागरुक होते दिखे हैं। परिस्थितियों और आने वाले भविष्य को भांपते हुए दुनिया स्वच्छ और हरित ऊर्जा निवेश की ओर बढ़ रही है। पहले जहां हरित ऊर्जा की मांग को पूर्ण करने के लिए भारत के बड़े उद्योगपति मैदान में उतरे थे, वहीं अब इस ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग की लागत में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भारत सरकार ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है।

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ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग

अभी हाल ही में ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग के लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाया है जिसके तहत भारत सरकार हरित हाइड्रोजन (green hydrogen) उद्योग के लिए $2 बिलियन प्रोत्साहन कार्यक्रम की योजना बना रही है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और नवीकरणीय ऊर्जा में कार्य करने वाले उद्योग प्रबंधक की माने तो 180 बिलियन रुपये (2.2 बिलियन डॉलर) के प्रोत्साहन का लक्ष्य आने वाले पांच वर्षों में ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को पांचवें हिस्से तक कम करना है। अधिकारी ने ये भी कहा है कि उद्योग के पैमाने को बढ़ाकर ऐसा किया जाएगा।

प्रश्न यह है कि ग्रीन हाइड्रोजन क्या है? जब पानी से बिजली को गुजारा जाता है तब हाइड्रोजन पैदा होती है। इस हाइड्रोजन का उपयोग बहुत सारे कार्य पूरा करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। अगर हाइड्रोजन बनाने में उपयोग होने वाली बिजली किसी रिन्यूएबल सोर्स से आ रही होती है तो इसमें बिजली बनाने में किसी भी तरह का कोई प्रदूषण नहीं होता है और ऐसे हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन कहा जाता है।

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ग्रीन हाइड्रोजन की आवश्यकता क्यों है?

प्रश्न यह है कि जब पवन चक्की और सोलर पावर के माध्यम से एनर्जी पैदा की जा रही है और इससे प्रदूषण भी नहीं हो रहा है तो फिर भला इस ग्रीन हाइड्रोजन की आवश्कता क्यों है? आज के समय में हरित हाइड्रोजन की आवश्कता इसलिए है क्योंकि पवन चक्की और सोलर पावर हर इंडस्ट्री में काम नहीं आ सकता है।

मान लेते हैं कि तमाम गाड़ियां चलाने, ट्रेनें चलाने और बहुत सी फैक्ट्रियों में भी इससे आसानी से काम हो जाता है, लेकिन आज भी स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों में कोयले और एयरलाइंस और पानी के जहाजों के लिए लिक्विड फ्यूल की आवश्यकता तो पड़ती ही है। ऐसे में केवल सोलर एनर्जी या उससे मिली बिजली से सब कुछ संभव नहीं है। लंबी दूरी की यात्रा के लिए केवल रिन्यूएबल एनर्जी पर निर्भर रहना पूर्ण रूप से ठीक नहीं है, ऐसे में हाइड्रोजन एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसे स्टोर कर आवश्यकता के अनुसार उपयोग किया जा सकता है।

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बड़ी योजनाएं सामने आने वाली हैं

प्रबंधक के अनुसार, भारत में अभी मौजूदा समय में इसकी कीमत 300 रुपये से लेकर 400 रुपये प्रति किलो तक की है। वहीं एक सरकारी अधिकारी के अनुसार 1 अप्रैल से आरम्भ होने वाले वित्त वर्ष के लिए 1 फरवरी के बजट में भारतीय सहायता का ऐलान किया जा सकता है। हालाकिं सरकार की ओर से इस पर कोई भी अधिकारिक जानकारी नहीं मिली है। लेकिन भारतीय कंपनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन ऑयल, एनटीपीसी, अदाणी एंटरप्राइजेज, जेएसडब्ल्यू एनर्जी और एक्मे सोलर की ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर कई बड़ी योजनाएं सामने आने वाली हैं।

आप सभी जानते है कि मोदी सरकार के द्वारा देश को हाइड्रोजन पावर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया जा चुका है। इसके अंतर्गत सरकार ने नयी ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी (Green Hydrogen Policy) का भी निर्माण किया। कुछ समय पहले भारत के दो बड़े उद्योगपति अडानी और मुकेश अंबानी ने भी हरित हाइड्रोजन में निवेश करने में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी। जहां गौतम अडानी की कंपनी अडानी न्यू इंडस्ट्रीज का लक्ष्य नवीकरणीय उर्जा और हरित ऊर्जा उपकरण जैसे- सौर पैनल और पवन टर्बाइन के उत्पादन से लेकर नाइट्रोजन उर्वरकों और मेथनॉल जैसे हरे हाइड्रोजन डेरिवेटिव का उत्पादन करने वाली डाउनस्ट्रीम सुविधाओं का निर्माण करना, दुनिया का सबसे बड़ा एकीकृत हाइड्रोजन उत्पादक बनना था। अपने इस लक्ष्य को  पूरा करने के लिए अडानी एक के बाद एक  इस क्षेत्र में निवेश भी करते जा रहे हैं। कुछ समय पहले ही उन्होंने आंध्र प्रदेश में 3,700 मेगावाट पंप हाइड्रो सौर परियोजना स्थापित करने के साथ-साथ 10,000 मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजना स्थापित करने के लिए 60000 करोड़ की डील साइन की थी।

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मुकेश अंबानी का योगदान

वहीं भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी ने भी इस क्षेत्र में अपना योगदान दिया है। गुजरात को कार्बन-मुक्त बनाने के लिए राज्य में 10 से 15 वर्षों में 100 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा संयंत्र और ग्रीन हाइड्रोजन इको-सिस्टम का विकास करने के लिए 5 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने का प्रस्ताव रखा था। इसके अलावा रिलायंस ने यह भी कहा कि वह एक नयी ऊर्जा विनिर्माण-एकीकृत नवीकरणीय विनिर्माण स्थापित करने में 60,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। हरित ऊर्जा क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करने की दौड़ में टाटा ग्रुप भी शामिल हो चुका है। जहां टाटा पावर ने अगले पांच वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा में 75,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करने का ऐलान किया था।

भारत के इन तीनों दिग्गज उद्योगपतियों का हरित ऊर्जा में बढ़ता निवेश का सबसे बड़ा कारण ये है कि दुनिया अब धीरे-धीरे फोसिल फ्यूल पर अपनी निर्भरता को कम कर रही है। इस पर केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री,  नितिन गडकरी ने भी अपने एक बयान में कहा था कि “मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूं कि पांच साल बाद देश से पेट्रोल की आवश्यकता ख़त्म हो जाएगी। आपकी कार और स्कूटर या तो ग्रीन हाइड्रोजन, एथोनल फ्लेक्स फ्यूल, सीएनजी या एलएनजी पर चलेंगे।”

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ग्रीन हाइड्रोजन की वैश्विक मांग

अगर देखे तो पश्चिमी देशों जैसे- यूरोप, जापान और साऊथ कोरिया में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग बढती जा रही है। जिससे सरकार अपने देश के साथ-साथ इन देशों में हरित हाइड्रोजन का निर्यात कर सकती है. उद्योग सूत्रों के अनुसार, सरकार ऐसा अनुमान लगा रही है कि हरित हाइड्रोजन की वैश्विक मांग साल 2030 तक 100 मिलियन टन से अधिक हो जाएगी, जो अभी 75 मिलियन टन से कम पर है। फरवरी माह में सरकार ने भारत के लिए 2030 तक सालाना 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन बनाने की योजना का ऐलान किया था, जिसके तहत सरकार के द्वारा कई इंसेंटिव भी दिए जाएंगे।

सरकार देश में फोसिल फ्यूल को कम करने के साथ-साथ दूसरे देशों में भी इसका तेज़ी से निर्यात करना चाहती है और इसके लिए सरकार कई बड़ी कंपनियों को इंसेंटिव प्रदान करने वाली है, जिससे इसमें बहुत लाभ मिलेगा। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए गेम चेंजर साबित हुई है। उदहारण के लिए अभी 1 किलों ग्रीन हाइड्रोजन बनाने में 300 से 400 रुपये लगते हैं और यहां सरकार कंपनियों को यदि 50 रुपये इंसेंटिव देगी तो इससे कंपनियों को अधिक से अधिक हरित हाइड्रोजन बनाने में सहायता मिलेगी और कंपनियां उत्साहित भी रहेंगी। इससे घरेलू मांग पूर्ण होगी, प्रदुषण कम होगा साथ ही बची हुई ग्रीन हाइड्रोजन को दूसरे देशों में निर्यात करके और अधिक लाभ भी कमा पाएंगे।

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इससे पहले भी सरकार कई सेक्टर में इंसेंटिव की सुविधा दे चुकी है। जिससे कई लाभ देखने को भी मिले हैं। उद्योग के एक अधिकारी के अनुसार, भारत दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोपीय संघ जैसे देशों को उत्पादन का 70% बेचने का लक्ष्य रख रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग के लिए सरकार के बढ़ते कदम देश को कई नयी बुलंदियों तक लेकर जाएंगे।

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