‘राष्ट्रवादी’ होने की सबसे क्रूर सजा गुरदास मान को ही मिली है!

पंजाबी संगीत को लोकप्रिय बनाने वाले गुरदास मान के पीछे कुछ लोग हाथ धोकर पड़े हैं!

Gurdas Maan has got the cruelest punishment for being a 'nationalist'!

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क्या देश को सर्वोपरि मानना अपराध है? क्या देश की संस्कृति का मान रखना अक्षम्य है? कुछ घटनाओं को देखकर तो ऐसे प्रश्न अनायास ही मन में उठने लगते हैं। वहीं हाल के वर्षों में पंजाब में जिस तरह की स्थितियां बनी हैं देश का यह राज्य भी प्रश्नचिह्न के घेरे में आ गया है। गायक गुरदास मान के साथ जो हुआ है उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है जिनका दोष केवल इतना था कि उन्होंने देश तोड़ने वालों का कभी साथ नहीं दिया।

पंजाब और भारतीय संगीत

कुछ माह पूर्व “गल सुनो पंजाबी दोस्तों” नामक गीत से गुरदास मान ने पंजाबी मित्रों को अपना पक्ष सुनाने का प्रयास किया। पर क्यों? कुछ वर्ष पूर्व, जब गुरदास मान ने “एक देश, एक भाषा” का समर्थन किया, तो बिना सोचे समझे विरोधी उन पर टूट पड़े और उन्हें पंजाब विरोधी बताने लगे। उस व्यक्ति को पंजाब विरोधी कहा, जिन्होंने अपना जीवन पंजाब और भारतीय संगीत की सेवा में समर्पित कर दिया।

आज जो पंजाबी संगीत के लोग दीवाने हैं, उसमें केवल हनी सिंह या बी प्राक का योगदान नहीं है। इसमें गुरदास मान का बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है, जिन्होंने पंजाबी संगीत को जन-जन तक पहुंचाया। इनका जन्म 4 जनवरी 1957 को पंजाब के मुक्तसर जिले में स्थित गिद्दड़बाहा नामक कस्बे में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा मलोट में हुई तथा उच्च शिक्षा के लिए ये पटियाला आ गए, जहां के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ स्पोर्टस (एन आई एस) से डिग्री ली।

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नेशनल लेवल के एथलीट

गायक होने से पूर्व गुरदास मान राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भी भाग लेते रहे हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि वो एक नेशनल लेवल के एथलीट भी रह चुके हैं एवं उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीते हैं। इसके अतिरिक्त गुरदास मान एक मार्शल आर्ट एक्पर्ट भी रह चुके हैं और जूडो में ब्लैक बेल्ट विजेता रह चुके हैं।

1981 में गीत “दिल दा मामला है” की अपार सफलता के बाद गुरदास मान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे पंजाबी संगीत के एक मजबूत स्तंभ बने परंतु अन्य कलाकारों की भांति उन्हें घमंड छू भी नहीं पाया। जितने उत्साह से वो बड़े कॉन्सर्ट करते, उतने ही उत्साह से वे छोटे-छोटे गांवों में भी धार्मिक अनुष्ठानों, मेलों आदि में गाया करते।

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कई भाषाओं में गीत गाए हैं

इतना ही नहीं, गुरदास मान ने हिंदी और पंजाबी के अलावा बंगाली, तमिल, हरियाणवी और राजस्थानी भाषाओं में गीत गाए हैं, वो एक कमाल के सिंगर होने के अलावा फिल्मी अभिनेता भी रहे हैं। उन्होंने कुछ एक ही फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों के माध्यम से उन्होंने समाज को एक सुखद संदेश भी दिया।

गुरदास मान स्वभाव से ही परमार्थी हैं जिसका परिचय उन्होंने जून 2013 में भी दिया, जब उत्तराखंड में आई बाढ़ के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष में उन्होंने 11 लाख रुपये का दान दिया। उनसे जुड़ी एक घटना सामने आती है जब 9 जनवरी 2001 को रोपड़ के पास एक भयानक हादसे में मान बाल-बाल बचे किंतु इनके ड्राइवर तेजपाल की मृत्यु हो गई। वे उसे अपना अच्छा दोस्त भी मानते थे, उसे समर्पित करते हुए उन्होंने एक गाना भी लिखा व गाया – “बैठी साडे नाल सवारी उतर गयी”।

इतना ही नहीं, गुरदास मान अभिनय में भी रुचि रखते हैं। उन्होंने कई पंजाबी फिल्मों में बतौर अभिनेता कार्य किया, और बूटा सिंह को इन्होंने जीवंत किया। ये वही बूटा सिंह हैं, जिनके कारनामों पर बहुचर्चित फिल्म ” गदर – एक प्रेम कथा” भी कहीं न कहीं आधारित थी। इसके अतिरिक्त गुरदास मान “शहीद उधम सिंह”  (२०००) नामक फिल्म में भगत सिंह की भूमिका में भी दिखाई दिए, जिसमें राज बब्बर ऊधम सिंह बने थे।

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ड्रग्स की समस्या के विरुद्ध अभियान

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि सबका प्रिय गुरदास कईयों की आंखों में शूल की भांति चुभने लगा। इसके तीन कारण थे- एक वे पंजाब में उत्पन्न ड्रग्स की समस्या के विरुद्ध एक सशक्त अभियान चलाने को आतुर थे। इसके लिए उन्होंने पंजाब नामक एलबम 2017 में निकाला, जहां वे संपूर्ण पंजाब की समस्याओं पर प्रकाश डाल रहे थे।

दूसरा, वे प्रखर राष्ट्रवादी रहे हैं, वे “एक देश, एक भाषा” के समर्थक रहे हैं। ये बात उन्होंने कनाडा के एक रेडियो चैनल पर साक्षात्कार में साझा भी किया, जहां पंजाबी भाषा के अपमान का कोई उल्लेख भी नहीं था। गुरदास मान ने स्पष्ट कहा था कि, ‘पूरे देश में एक ही भाषा होनी चाहिए, जिसे सभी समझ सकें। जहां पंजाबी हमारी मातृ भाषा है, वहीं हिंदी भी हमारी मौसी है, इसलिए उसका भी उतना ही सम्मान होना चाहिए।’ इस इंटरव्यू के बाद एक षड्यंत्र के तहत उनका विरोध शुरू हो गया था।

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क्या अखंडता को अक्षुण्ण रखना अपराध है?

तीसरा, वे किसानों के तो समर्थक रहे ही लेकिन कभी भी उन्होंने फर्जी किसान आंदोलन का समर्थन नहीं किया। वे किसान समर्थक अवश्य हैं, वे राष्ट्रवादी हैं और उनका तर्क स्पष्ट रहा है कि अराजकतावादियों को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए पर उनकी इसी मुखरता के विरुद्ध षड्यंत्रों के तहत आंदोलनकारियों ने उनका विरोध करना शरू किया, कुछ ने तो उन पर बेअदबी तक का आरोप जड़ दिया। क्या देश की अखंडता को अक्षुण्ण रखना अपराध है?

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