“आपके पांव देखे, बड़े हसीन हैं, इन्हें जमीन पर मत रखिएगा मैले हो जाएंगे!”
किसी रोज़ जब राजकुमार ने “पाकीज़ा” में ये संवाद मीना कुमारी के लिए बोला था, तो अनेकों सिनेमाघर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठे थे। परंतु कई लोग आज भी इस संवाद से वास्ता नहीं रखते और आज भी ये शोध का विषय है कि क्या ये संवाद मीना कुमारी के किरदार हेतु बोला गया था या ये उनकी नीरसता पर व्यंग्य था?
इस लेख में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि लगभग एक जैसे रोल करने वाली महजबीन बानो बख्श यानी मीना कुमारी सुपरस्टार कैसे बनी?
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साथ काम करने से कतराते थे कई अभिनेता
मीना कुमारी का नाम सुनते ही कई सिनेमा प्रेमी उनके बारे में बड़े सम्मान से लिखते और बात करते हैं। आखिर जिसने 4 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते हों उसमें कुछ तो बात अवश्य होंगी। “साहिब, बीवी और गुलाम” हो, “परिणीता” हो, “आज़ाद” हो या फिर “मेरे अपने” उन्होंने दर्शकों को कई बार अपनी अदाकारी से प्रभावित किया। चूंकि वह अपनी कला से कई लोगों को प्रभावित करने में सक्षम थी या यूं कहें उनके रोल को “निगल” सकती थी, इसलिए कई अभिनेता उनके साथ काम करने से कतराते थे।
एक समय विनोद मेहरा ने कहा था, “मीना कुमारी तो इतनी शक्तिशाली बन गई कि वह अपनी इच्छा से स्टार्स का करियर बना और बिगाड़ सकती थी”। वह कई नवोदित कलाकारों के लिए संरक्षक सी बन गई और उन्हें अपनी छत्रछाया में निखारती। विश्वास न हो तो “चिराग कहां रोशनी कहां” एवं “एक ही रास्ता” में उनके रोल देख लीजिए, जिसके कारण देश को दो सुपरस्टार मिले, राजेंद्र कुमार एवं सुनील दत्त।
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कष्टों से भरा रहा निजी जीवन
परंतु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है कि यदि मीना कुमारी इतनी उत्कृष्ट कलाकार थी, तो फिर वे नीरस कैसे हुई? असल में वे दुख दर्द और पीड़ा को चित्रित करने में आवश्यकता से अधिक सक्षम थी, जिसके कारण उन्हें “ट्रेजेडी क्वीन” का उपनाम मिला। वह आंसुओं को दिखाने के लिए ग्लिसरीन का भी प्रयोग नहीं करती। परंतु उसका भी एक कारण था। अगर उनके निजी जीवन पर प्रकाश डालें, तो उनका जीवन पीड़ा का पर्याय समान था। उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध इस लाइन में धकेला गया क्योंकि उनके अभिभावक उन्हें केवल कमाई का साधन मात्र मानते थे। जब उन्हें प्रेम हुआ तो वो भी कमाल अमरोही से जो आयु में भी बड़े थे और उनकी पहले ही एक शादी हो चुकी थी, जिससे 3 बच्चे हुए। ये तो कुछ भी नहीं था, निकाह के बाद कमाल ने उन्हें काम करने की अनुमति तो दी परंतु कुछ शर्तों पर, जिनमें सबसे प्रमुख ये था कि वह कमाल के अतिरिक्त किसी और के साथ काम नहीं करेंगी।
ऐसे वातावरण में उनका दम इतना घुटने लगा कि वह धीरे धीरे सभी शर्तों को तोड़ती गई। उनकी जीवनी लिखने वाले पत्रकार विनोद मेहता का कहना है कि उनका कमाल अमरोही ने बहुत बुरी तरह शोषण किया, शारीरिक तौर पर भी और मानसिक तौर पर भी। चूंकि उन्हें नींद की बीमारी थी, तो उनके डॉक्टर ने सुझाव के तौर पर एक पेग ब्रैन्डी का सेवन करने को कहा था। परंतु 1964 में तलाक लेने के बाद मीना कुमारी को शराब की मानो आदत सी हो गई।
यही वो समय था जब गुरु दत्त ने स्थाई तौर पर निर्माण का कार्यभार संभाला था और “कागज़ के फूल” के पश्चात निर्देशन से उनका मोहभंग हो चुका था। “साहिब बीवी और गुलाम” में मीना कुमारी छोटी बहू का किरदार निभा रही थी, वो ठाकुर जी जिनसे वो ब्याही थी उनका स्नेह पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। जब वह इन सभी कार्यों में असफल रहती है, तो वह शराब का सेवन करने लगती है और उनका आकर्षण घर के अनुचर, अतुल्य चक्रवर्ती उर्फ “भूतनाथ” (गुरु दत्त) से होने लगता था। कहीं न कहीं ये कथा उनके वास्तविक जीवन से भी मेल खाती थी।
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रोमांटिक और कॉमिक रोल भी किए
परंतु यहीं पर उनकी यह पहचान उस बात पर प्रभाव डालने लगी, जो किसी भी कलाकार को बना या बिगाड़ सकती है और वो है विविधता। मीना कुमारी यूं तो ट्रेजेडी रोल के लिए अधिक जानी जाती, परंतु वो कभी रोमांटिक तो कभी कॉमिक रोल भी करती। इसी का एक उदाहरण था 1957 में आई “मिस मेरी” (Miss Mary) जो निर्देशक एल वी प्रसाद द्वारा निर्देशित तेलुगु क्लासिक “मिसम्मा” का रीमेक थी। मजे की बात ये थी कि जो रोल मीना कुमारी को मिला, वही मूल फिल्म में चर्चित अभिनेता जेमिनी गणेशन की पत्नी ‘सावित्री’ को मिला था। जेमिनी गणेशन इस फिल्म के हिन्दी संस्करण में वो रोल कर रहे थे, जो मूल फिल्म में बहुचर्चित तेलुगु सिनेमा के आधारस्तम्भ, एन टी रामा राव ने किया था। ये फिल्म बहुत सफल रही, और लोगों ने मीना कुमारी के कार्य को खूब सराहा।
फिर विविधता गायब हो गई
परंतु 1960 के बाद से मीना कुमारी के करियर से विविधता गायब हो गई। वह ट्रेजिक रोल में ऐसे लीन हो गई, मानो इसके बिना वह सांस नहीं ले पायेंगी। इससे यही धारणा बनने लगी कि वह ऐसे ही रोल के लिए फिट हैं, जैसे एक समय के बाद निरुपा रॉय को मां वाले रोल में टाइपकास्ट किया गया। मीना कुमारी के ट्रेजेडी के प्रति आकर्षण को जल्द ही “मीना कुमारी सिंड्रोम” का नाम भी मिला। ठीक है, वह सुपरस्टार बनी, परंतु अगर एक ही प्रकार के रोल करने से कोई सुपरस्टार बन जाता है, तो उस अनुसार जॉनी वॉकर को भी सुपरस्टार बनना चाहिए था। ऐसे में मीना कुमारी कैसे बॉलीवुड में सुपरस्टार बनी और क्या वह इस योग्य भी थी या नहीं, ये आज भी चर्चा का विषय है।
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