Haldwani Evictions: देश में इन दिनों एक और शाहीन बाग बनाने की तैयारी की जा रही है और अबकी बार इसका केंद्र दिल्ली नहीं बल्कि उत्तराखंड का हल्द्वानी है। दरअसल, हाईकोर्ट ने हल्द्वानी में रेलवे ट्रैक के पास बसी अवैध कॉलोनियों को गिराने के लिए एक निर्णय सुनाया है। जिसके बाद लिबरल गैंग के अंदर खलबली मच गई है और ईमानदार पत्रकार रवीश कुमार से लेकर मोहम्मद जुबैर तक सभी लिबरल गैंग के लोग इस मामले को शाहीन बाग जैसा मामला बताने में जुट गुए हैं। हालांकि सरकार द्वारा इन अवैध कॉलोनियों पर अभी कोई कार्रवाई नहीं की गई है फिर भी लिबरल गैंग के पेट में दर्द हो रहा है।
सबसे पहले जानते हैं कि पूरा मामला क्या है? तो उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे स्टेशन के किनारे लगभग 2.5 किलोमीटर लंबी पट्टी पर अवैध कॉलोनियां बसी हुई हैं और ये कॉलोनियां स्वतंत्रता के बाद से बसना शुरू हुई थीं। रेलवे के अनुसार वनभूलपुरा में अवैध कब्जे के दायरे में आने वाली ढोलक बस्ती, गफूर बस्ती के साथ ही इंदिरा नगर, लाइन नंबर 17, बड़ी ठोकर और छोटी ठोकर के इलाके शामिल हैं।
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भूमि पर कब्जा
जब देश को स्वतंत्रता मिली उस दौर में इस क्षेत्र के आसपास बड़े बगीचे, लकड़ी के गोदाम और लकड़ी के कारखाने हुआ करते थे, इन्हीं बगीचों और कारखानों में काम करने के लिए रामपुर, मुरादाबाद और बरेली से मुस्लिम समुदाय के लोगों को यहां लाया गया था। बगीचों में काम करते हुए लोगों ने रेलवे लाइन के पास पहले अपनी झुग्गियां लगाईं और वे झुग्गियां कच्चे मकानों से होती हई धीरे-धीरे पक्के मकानों में परिवर्तित हो गईं। रेलवे द्वारा दिए गए आंकड़ों को देखा जाए तो यह कोई छोटा-मोटा अतिक्रमण नहीं है बल्कि 78 एकड़ भूमि पर किया गया कब्जा है जिसमें 4000 से अधिक परिवार यहां पर रह रहे हैं और इन परिवारों में अधिकतर मुस्लिम परिवार हैं।
वहीं रेलवे ने यह भी दावा किया है कि जिस जगह पर अतिक्रमण (Haldwani Evictions) हुआ है वहां पर कभी ट्रेन की पटरियां हुआ करती थीं। जिसका नक्शा आज भी रेलवे के पास मौजूद है। ऐसे में रेलवे ने कोर्ट के आदेश के बाद उसी जगह को चिह्नित किया है जहां पटरियों के निशान आज भी मौजूद हैं। अब जब कार्रवाई की बारी आई है तो बैनर पोस्टर लेकर महिलाओं और बच्चों के साथ लोग बैठे हुए हैं। ये लोग एक तरफ कार्रवाई को गलत ठहरा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ लिबरल गैंग के लोगों ने इसके कानूनी पक्ष की जांच परख किए बिना ही सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है और हल्द्वानी (Haldwani Evictions) में दिल्ली जैसा शाहीन बाग बनाने के लिए गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने लगे हैं।
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Haldwani Evictions: मामला कोर्ट कैसे पहुंचा?
प्रश्न है कि मामला कोर्ट में कैसे पहुंचा और हाइकोर्ट ने इस पर निर्णय क्या दिया है? साल 2016 में हल्द्वानी के गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी ने एक जनहित याचिका दायर कर इस मामले को कोर्ट में उठाया था। मामले पर लंबी सुनवाई और सभी पक्षों व साक्ष्यों को देखने और सुनने के बाद हाईकोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से सटी 78 एकड़ जमीन पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है (Haldwani Evictions) जिसे हटाया जाना जरूरी है। 20 दिसंबर को नैनीताल कोर्ट द्वारा यह निर्णय सुनाया गया। ऐसे में प्रशासन हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश का पालन कर कार्रवाई कर रहा है। हालांकि इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई है और आने वाले 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जाएगी।
ज्ञात हो कि हल्द्वानी के इस मामले से पहले साल 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के संसद में पारित होने के बाद उसे अकारण ही एक बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया था। इसके अलावा NRC को लेकर भी विरोध प्रदर्शन किए गए। इन मुद्दों को माध्यम बनाकर सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने का बहुत प्रयास किया गया और 2020 के मार्च महीने तक प्रदर्शन किया गया था। इस कथित आंदोलन का केंद्र दिल्ली का शाहीन बाग था जहां लोगों ने लगभग चार महीनों तक राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद करके रखा था जिसके चलते बहुत सारे लोगों को आने जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था।
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शाहीन बाग का उल्लेख क्यों?
अब आप कहेंगे कि यहां इस आंदोलन का उल्लेख करने का औचित्य ही क्या है। दरअसल, जिस तरह से शाहीन बाग में महिलाओं को आगे करके कथित आंदोलन चलाया जा रहा था और लिबरल गैंग पर्दे के पीछे से उस षड्यंत्रकारी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे उसी तरह हल्द्वानी (Haldwani Evictions) में भी महिलाओं को आगे करके लिबरल गैंग उनका नेतृत्व कर रहा है जबकि यह साफ-साफ दिख रहा है कि भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। ये तो ऐसा ही कि पहले चोरी करो फिर सीना जोरी करो और कहो कागज नहीं दिखाएंगे।
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