Mahalaxmi vrat katha : महालक्ष्मी व्रत कथा : एवं महालक्ष्मी जी की आरती –
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Mahalaxmi vrat katha साथ ही इससे जुड़े आरती के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
प्राचीन समय की बात है, कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये़. और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिये कहा, ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की। यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया, मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है।
देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा। यह कहकर श्री विष्णु जी चले गये। अगले दिन वह सुबह चार बजे ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं, तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है. लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा।
ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह् करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। उस दिन से यह व्रत इस दिन, उपरोक्त विधि से पूरी श्रद्वा से किया जाता है।
महालक्ष्मी जी की आरती –
ओ३म् जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसिदिन सेवत , हर विष्णु धाता ॥ ॐ …
उँमा , रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग – माता ।
सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता ॥ ॐ …
दुर्गा रूप निरंजनि , सूख – सम्पत्ति दाता ।
जौकोई तुमको ध्यावत , ऋद्धि – सिद्धिधन पाता ॥ॐ …
तुम पाताल – निवासिनि , तुम ही शुभदाता ।
कर्म – प्रभाव – प्रकाशिनि , भवनिधि की त्राता ॥ ॐ …
जिस घर में तुम रहती , तह सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता , मन नहीं घबराता ॥ ॐ …
तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न हो पाता ।
खान – पान का वैभव , सब तुमसे आता ॥ ॐ …
शुभ – गुण मंदिर सुन्दर , क्षीरोदधि – जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन , कोई नहीं पाता ॥ ॐ …
महालक्ष्मीजी की आरती , जो कोई जन गाता ।
उर आनन्द अति उमंग , पाप उतर जाता ॥ ॐ …
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