Mission Majnu Film Review: जब फिल्म मिशन मजनू का ट्रेलर आया था, तो उसमें एक संवाद प्रमुख था- “मेरा काम करने का तरीका अलग है”। तब इस संवाद का अर्थ और फिल्म का उद्देश्य समझे बिना कुछ स्वघोषित क्रिटिक्स ने इस फिल्म का उपहास उड़ाया था। परंतु इस फिल्म को देखने के बाद सिर्फ यही कहा जा सकता है कि यह फिल्म सिनेमा हॉल में क्यों नहीं आई?
Mission Majnu की कहानी क्या है? (Mission Majnu Film Review)
सर्वप्रथम इस फिल्म के मेकर्स का धन्यवाद, जिन्होंने भारतीय इतिहास के एक अनछुए पहलू को बाहर लाने का साहसिक प्रयास किया। शांतनु बागची द्वारा निर्देशित यह फिल्म अमनदीप अजीतपाल सिंह की कथा है।
जो एक कुशल रॉ एजेंट है, और 1970 के दशक में पाकिस्तान में निर्माणाधीन परमाणु संयंत्र के बारे में जानकारी इकट्ठा करने तारिक नामक दर्जी के भेष में जाता है। क्या है पाकिस्तान की नीति, क्या असर पड़ेगा भारतीय उपमहाद्वीप पर और क्या अमन और उसके साथी पाकिस्तानियों के षड्यंत्र को निष्फल कर पाते हैं या नहीं, यही संपूर्ण कथा का सार है।
या तो नेटफ्लिक्स इंडिया का भाग्य बहुत चौकस है या फिर इन्होंने अपने कंटेंट विभाग में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। अन्यथा नवम्बर 2022 से ऐसा बदलाव? पहले खाकी, CAT और फिर ट्रायल बाय फायर जैसे सीरीज़ और अब ये फिल्म, आखिर कैसे? इस फिल्म को देखकर यह लगता ही नहीं कि यह निर्देशक शांतनु बागची की फिल्म है। गोविंद भाना, परवीज़ शेख और असीम अरोड़ा द्वारा रचित इस पटकथा का लगभग एक भी मिनट आपको पकाता नहीं है।
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सिद्धार्थ मल्होत्रा का अभिनय दमदार!
इसके अतिरिक्त सिद्धार्थ मल्होत्रा का अभिनय भी अत्यंत सराहनीय है। एक समय अपने अभिनय के लिए आलोचना के घेरे में रहने वाले सिद्धार्थ निरंतर निखर रहे हैं। पहले “शेरशाह” और अब “मिशन मजनू” में उन्होंने सिद्ध किया है कि अभिनय के क्षेत्र में अब वे लंबी रेस के घोड़े बनना चाहते हैं। उनका भरपूर साथ देने में कुमुद मिश्रा और शारिब हाशमी ने कोई प्रयास नहीं छोड़ा है।
ज़ाकिर हुसैन भी अपनी जगह ठीक थे और रॉ प्रमुख आर एन काओ के रूप में परमीत सेठी ने सबको अपने अभिनय से चकित किया है। कुछ लोगों का कहना था कि यह फिल्म सिद्धार्थ और रश्मिका मंदाना के इर्द-गिर्द ही घूमेगी- लेकिन फिल्म देखकर आप कहेंगे- अरे! ये तो हुआ ही नहीं। फिल्म उन दोनों तक सिमटी नहीं दिखती है। रश्मिका ने अपने सीमित अभिनय में भी अच्छा काम किया है।
छद्म पाकिस्तान प्रेम नहीं
इस फिल्म की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसका साहसी प्लॉट। जिसमें मोरारजी देसाई की पोल बिना लाग लपेट के खोली गई है। जिस प्रकार अपनी कुंठा में उन्होंने देश के सुरक्षा तंत्र के साथ खिलवाड किया और जिस प्रकार रॉ को उन्होंने लगभग समाप्त कर दिया, ये फिल्म उसे भी निस्संकोच दिखाती है।
यहाँ तक कि अनेक ऐतिहासिक किरदारों के नाम के साथ भी कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। अगर इंदिरा गांधी हैं तो वही हैं। आर इन काओ हैं तो उसी नाम के साथ वैसे ही उन्हें दिखाया गया है। यहाँ तक कि पाकिस्तानी किरदारों को भी उनके नाम अनुसार ही चित्रित किया गया है।
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सबसे बढ़िया – इस फिल्म में “राज़ी” की भाँति कोई छद्म पाकिस्तान प्रेम भी नहीं है, और कुछ जगह तो बड़े ही प्रेम से भारतीय संस्कृति का महत्व भी दर्शाया है। और तो और इस फिल्म का एकमात्र गीत – “माटी को माँ कहते हैं” भी लोगों को भावुक कर सकता है, गाया भी इसे सोनू निगम ने जो है।
जो भी हो, फिल्म मिशन मजनू ने देश के इतिहास के एक अनछुए पहलू को बहादुरी से चित्रित किया है और साथ ही साथ उन श्रोताओं के लिए एक असरदार विकल्प है, जो “पठान” का मुँह भी नहीं देखना चाहते। अब उनके लिए एक असरदार विकल्प उपलब्ध है।
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