डॉ. मुरली मनोहर जोशी वास्तविकता में भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे

मुरली मनोहर जोशी के प्रयासों का ही परिणाम है कि भारत के हित में बात करने वाली शिक्षा पद्धति लागू होने जा रही है।

Murli Manohar Joshi Revolutionize education in India

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भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री कौन थे? जिन्हें तनिक भी सामान्य ज्ञान की अनुभूति होगी वो तुरंत बोल उठेंगे– मौलाना अबुल कलाम आज़ाद। परंतु अगर हम कहें कि भारत के सर्वप्रथम शिक्षा मंत्री वे नहीं, मुरली मनोहर जोशी थे, तो? आपके कहेंगे, क्या बकवास है। परंतु क्यों यही वास्तविक सत्य हैं, इसे समझना आवश्यक है।

इस लेख में समझेंगे कि क्यों “भारतीयता से ओतप्रोत” मुरली मनोहर जोशी भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री थे। जिनके पदचिह्नों पर चलते हुए भारत को उसकी प्रथम, वास्तविक शिक्षा नीति 26 जनवरी 2023 को मिलने वाली है।

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“स्कूल चले हम”

जितने भी 90s किड्स इस वीडियो को देख रहे हैं, यानी 1990 के दशक से लेकर 21वीं सदी के प्रारंभ में अपना बचपन जिन्होंने भी गुज़ारा होगा उन्होंने “स्कूल चले हम” वाले एड को देखा ही होगा। सर्व शिक्षा अभियान को बढ़ावा देने वाला यह विज्ञापन न केवल आकर्षक, अपितु भारतीयता को सही मायने में अपनाता हुआ दिखाता था। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम बच्चों के साथ घुल मिल रहे थे, ऐसा लगता ही नहीं था कि वे देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं, अपितु लगता था घर के वो बड़े बुजुर्ग हैं, जो अपने बच्चों को उत्सुकता के साथ विद्यालय जाने की ओर प्रेरित कर रहे हैं।

परंतु इस सोच को किसने बढ़ावा दिया? इस एड के पीछे मानव संसाधन विकास मंत्रालय [अब शिक्षा मंत्रालय] का हाथ था, जिसकी अध्यक्षता एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में थी, जो भारत मां को तन मन धन से समर्पित थे, वे थे मुरली मनोहर जोशी। तो क्या अन्य शिक्षा मंत्री भारतीय नहीं थे? मुरली मनोहर जोशी से पूर्व तो कई लोगों ने इस पद की कमान संभाली परंतु या तो वे मैकाले के कचरा शिक्षा नीति के उपासक थे, या फिर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर शिक्षा का “इस्लामिकरण” करने की दिशा में प्रयासरत थे, जैसे मौलाना अबुल कलाम आजाद, सैयद नूरुल हसन, यहां तक कि कपिल सिब्बल के कार्यकाल से स्पष्ट प्रतीत होता है।

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भारतीय संस्कृति की ओर समर्पित जोशी

परंतु मुरली मनोहर जोशी इन सबसे अलग साबित हुए हैं। अल्मोड़ा से नाता रखने वाले मुरली मनोहर जोशी प्रारंभ से ही भारतीय संस्कृति की ओर समर्पित रहे हैं। इन्होंने तत्कालीन इलाहाबाद [अब प्रयागराज] में स्थित इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी विज्ञान से अपना परास्नातक पूरा किया और पीएचडी भी यहीं से की। ये कितने बड़े राष्ट्रवादी थे, इस बात से पता चलता है कि इन्होंने भौतिकी के लिए अपने शोधपत्र हिन्दी में लिखे और संकलित किये, जो उस समय किसी क्रांति से कम नहीं था।

तद्पश्चात मुरली मनोहर जोशी विश्वविद्यालय में ही प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं देने लगे। परंतु राजनीति से वे बराबर जुड़े रहे। गौरक्षा आंदोलन में सक्रिय भाग लेते हुए उन्होंने जल्द ही सक्रिय राजनीति में भाग लेना प्रारंभ किया और आपातकाल में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

आज जो राहुल गांधी “भारत जोड़ो यात्रा” के नाम पर लाइमलाइट बटोरने का हास्यास्पद प्रयास कर रहे हैं, वह भी मुरली मनोहर जोशी के एक सफल अभियान की सस्ती कॉपी है। 1991 में मुरली मनोहर जोशी ने अलगाववाद के विरुद्ध एकता यात्रा प्रारंभ की। तब भाजपा राजनीतिक रूप से बहुत लोकप्रिय नहीं थी और मीडिया वाले उसका मज़ाक उड़ाने हेतु “काऊ बेल्ट” पार्टी यानी उत्तर एवं मध्य भारत तक सीमित पार्टी की संज्ञा देते थे।

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“एकता यात्रा”

परंतु कन्याकुमारी से कश्मीर तक चली “एकता यात्रा” ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और लोगों को भाजपा की शक्ति का एहसास तब हुआ जब आतंकियों के फरमान के बाद भी 26 जनवरी 1992 को मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में श्रीनगर के लाल चौक पर भाजपाइयों ने छाती ठोंक कर तिरंगा लहराया और इसमें बतौर एक वरिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में वर्तमान नरेंद्र मोदी भी सम्मिलित हुए। परंतु उस बारे में फिर कभी।

तो मुरली मनोहर जोशी ने बतौर शिक्षा मंत्री ऐसा क्या किया, कि आज भी लोग उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते? हमारे शिक्षा नीति के बारे में अनेक लोगों को ये आपत्ति है कि यह भारतीयों की कम, भारत पर आक्रमण करने वालों की प्रशंसा अधिक करता है और जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में मक्खी भी नहीं मारी होगी, उन्हें बच्चों के लिए मार्गदर्शक के रूप में पेश करता है। इतना ही नहीं, भारत की मैकाले आधारित शिक्षा नीति के बारे में सबसे बड़ी समस्या ये रही है कि यह सनातन संस्कृति को निरंतर अपमानित करती है और इस्लामिस्टों एवं मिशनरी पद्धति का अनुचित महिमामंडन करती है।

ऐसे में मुरली मनोहर जोशी ने सर्वप्रथम देश के कोने-कोने में शिक्षा की ज्योत जगाने का संकल्प लिया। कांग्रेसी और वामपंथी दावे तो खूब लंबे-चौड़े करते थे परंतु 1998 तक भारत के आधे से भी अधिक बच्चे मूल शिक्षा से कहीं न कहीं वंचित थे। इस समस्या को जड़ से उखाड़ने हेतु मुरली मनोहर जोशी ने “सर्व शिक्षा अभियान” को बढ़ावा दिया, जिसके अंतर्गत कोई भी बालक या बालिका मूल शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा। इन्हीं के प्रयासों से शीघ्र ही शिक्षा एक मूल अधिकार भी बना, परंतु इसका रूप रंग बदलने और इसका क्रेडिट लूटने में कांग्रेसियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी।

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मनोहर जोशी के कई क्रांतिकारी निर्णय

1998 से 2004, बतौर शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने कई क्रांतिकारी निर्णय लिए। “सर्व शिक्षा अभियान” योजना की देन है कि देश के तमाम प्राथमिक विद्यालयों में रिक्त शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति के लिए विशिष्ट बी.टी.सी. का प्रयोग प्रारंभ हुआ जो सफल रहा। किशोर बच्चों में विज्ञान के प्रति आकर्षण और रूझान जगाने के साथ बाल भवन की गतिविधियों द्वारा भारतीय मूल्य और संस्कारों का प्रचार विदेशों में भी किया जाने लगा।

परंतु मुरली मनोहर जोशी उतने पर नहीं रुके, उन्होंने भारतनिष्ठ, योगयुक्त, मूल्यपरक-रोजगारपरक शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए समस्त शिक्षाविदों का आह्वान किया। सदैव की भांति कांग्रेस और वामपंथी गठजोड़ ने उनके प्रयासों को शिक्षा का भगवाकरण कहकर नकारा तो इसके विपरीत देश के तमाम बुद्धिजिवियों सहित सर्वोच्च न्यायालय ने भी डा0 जोशी के प्रयासों को सही अर्थों में शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करार दिया। आज इन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि भारत में सनातन समर्थक, भारत के हित में बात करने वाली शिक्षा पद्धिति अब 26 जनवरी 2023 से लागू होगी, जिसके प्रणेता सही मायनों में डॉ मुरली मनोहर जोशी ही रहे।

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