ISRO जासूसी मामला: नंबी नारायण के शोषण के पीछे अमेरिका था? CBI ने High Court में क्या बताया?

नंबी नारायणन को फंसाने और उनका शारीरिक एवं मानसिक शोषण करने के पीछे बहुत ही सोचा समझा षड्यंत्र था।

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Source- TFI

इसरो जासूसी प्रकरण में हाल ही में कुछ चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन हुए हैं। जो बातें सीबीआई द्वारा केरल हाईकोर्ट को बताई गई है, उससे अब स्पष्ट होने लगा है कि बहुचर्चित इसरो वैज्ञानिक एस नम्बी नारायणन को हिरासत में लेने और उनका शारीरिक एवं मानसिक शोषण करने के पीछे एक बहुत ही सोचा समझा षड्यंत्र था, जिसका मूल उद्देश्य भारत को अंतरिक्ष जगत में आगे नहीं बढ़ने देना था।

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अंतरराष्ट्रीय साजिश का बने शिकार  

असल में हाल ही में इसरो जासूसी प्रकरण में संलिप्त कुछ पुलिस अफसरों की ज़मानत का विरोध करते हुए केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानि सीबीआई ने कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ पेश किये। इनके अनुसार, नम्बी नारायणन को इसरो जासूसी कांड में फंसाया गया था और ये पूरा मामला अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा था। इस दावे की पुष्टि के लिए मंगलवार (17 जनवरी 2023) को केस डायरी जारी की जाएगी।

बता दें कि शंकरलिंगम नम्बी नारायणन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में प्रमुख लिक्विड प्रोपेलेंट इंजन वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विकास रॉकेट इंजन की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उनपर केरल पुलिस ने नवंबर 1994 में स्पेस तकनीक से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ को मालदीव की नागरिक रशीदा के माध्यम से पाकिस्तान को बेचने का आरोप लगाया गया था।

इस मामले में केरल पुलिस ने नारायणन समेत अन्य लोगों को गिरफ्तार किया था और साथ ही साथ लगभग 50 दिनों तक इंटेलिजेंस ब्यूरो और केरल पुलिस की संयुक्त टुकड़ी ने नम्बी नारायणन को ऐसी प्रताड़ना दी, जिसके बारे में कुछ भी विवरण देना अपर्याप्त होगा। बाद में पी एम नायर के नेतृत्व में सीबीआई ने इस पूरे केस को संभाला और 1996 में पहले सीबीआई ने और फिर 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने एस नम्बी नारायणन को इस सम्पूर्ण प्रकरण में दोषमुक्त सिद्ध किया। साथ ही साथ केरल सरकार एवं इस मामले से संबंधित आईबी अफसरों एवं केरल पुलिस को भी फटकार लगाई।

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ये सबकुछ संयोग तो नहीं हो सकता

परंतु क्या ये केवल संयोग नहीं कि नम्बी नारायणन को उसी समय हिरासत में लिया गया, जब भारत क्रायोजेनिक स्पेस तकनीक में अपने आप को सक्षम बनाने वाला था? सोचिए, जो मंगलयान 2014 में प्रक्षेपित हुआ, यदि वो 1994 से 1996 के बीच हुआ होता तो? इस बारे में आर माधवन की बहुचर्चित फिल्म ‘रॉकेट्री – द नम्बी इफेक्ट’ में भी प्रश्न उठाए गए है।

वो कैसे? 1988 में भारत ने अपना प्रथम रिमोट सेन्सिंग सैटेलाइट लॉन्च किया, जिसकी आशा तत्कालीन स्पेस जगत में वर्चस्व जमाए राष्ट्रों को बिल्कुल नहीं थी। इसके अतिरिक्त 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तब भी भारत ने रूस से क्रायोजेनिक स्पेस तकनीक से संबंधित एक महत्वपूर्ण डील साकार करने में सफलता प्राप्त की, जिसे 1992 में अमेरिका के विरोध के कारण रद्द करना पड़ा। सबसे महत्वपूर्ण बात- जिस व्यक्ति ने इस डील को रद्द करवाने में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई, वह कोई और नहीं तत्कालीन अमेरिकी सांसद और वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन थे और उससे भी महत्वपूर्ण बात- जिन लोगों को इसरो जासूसी प्रकरण में हिरासत में लिया गया अधिकतम क्रायोजेनिक विभाग से ही संबंधित थे। क्या ये सब केवल संयोग मात्र है, या फिर इसके पीछे एक ऐसा षड्यंत्र था, जिसके अंतर्गत भारत को विश्व स्पेस जगत में अग्रणी स्थान प्राप्त करने से लगभग दो दशक तक रोका गया।

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प्रश्न तो कई हैं, परंतु यह कोई संयोग नहीं है कि नम्बी नारायणन से पूछताछ करने वाले अफसरों में एक आरबी श्रीकुमार भी थे, जो उस समय आईबी से भी संबंधित थे और बाद में गुजरात पुलिस के प्रमुख बने और जिनके नेतृत्व में वामपंथियों ने 2002 के दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर झूठे आरोप लगाये। स्वयं नम्बी नारायणन ने अपनी पुस्तक ‘रेडी टू फायर’ में कई ऐसे तथ्य साझा किये हैं, जिससे प्रतीत होता है कि भारत को कमर्शियल स्पेस उद्योग से दूर रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी प्लानिंग हुई थी।

यही नहीं सीबीआई ने जांच में पाया है कि नारायणन की अवैध गिरफ्तारी में केरल सरकार के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी शामिल थे। इस मामले में केरल के तत्कालीन डीजीपी सिबी मैथ्यूज, रिटायर्ड एसपी केके जोशुआ और एस विजयन पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जो अब अपने आप को जेल से दूर रखने हेतु एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसीलिए सीबीआई ने आरोपितों की जमानत का विरोध करते हुए कई दावे करते हुए कहा है कि आरोपितों से पूछताछ अवश्यंभावी है। इसलिए, उन्हें जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इसरो जासूसी प्रकरण में सीबीआई ने सही राह पकड़ी है। परंतु यह भी जानना है बहुत आवश्यक है कि आखिर नम्बी नारायणन को जेल में डालकर कौन क्या प्राप्त करना चाहता था? क्या वो आरबी श्रीकुमार थे, जिन्हें नम्बी से निजी शत्रुता थी, या फिर सत्ता के लालच में भूखी केरल सरकार थी, या फिर इस केस के असली दोषी वॉशिंगटन में बैठे वो लोग, जो भारत की स्पेस जगत में बढ़ते कद से चिढ़ते थे? ये निर्णय सीबीआई और केरल हाईकोर्ट को करना है।

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