कर्ज लो, घी पियो। साल 2014 के पहले देश की सरकारों का हाल कुछ ऐसा ही था। 1999 से लेकर 2004 तक जिस तरह से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आर्थिक सुधारों को बल देते हुए निर्णय लिए थे, उससे जीडीपी से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार में भी सुधरा आया था। अटलजी ने ही देश में पेंशन योजना को समाप्त किया था और उनके इस निर्णय का विपक्ष ने बहुत विरोध किया था लेकिन जब वर्ष 2004 में एनडीए चुनाव हारी और कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने केंद्र की सत्ता संभाली तो उसने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली। वर्ष 2004 से 2014 तक किसी भी तरह की पेंशन योजना का कोई जिक्र नहीं किया गया। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि भले ही कांग्रेस और विपक्षी दल अटल सरकार के इस निर्णय का राजनीतिक विरोध कर रहे हों किन्तु वे भी इस बात से सहमत थे कि निर्णय सही है।
हताश विपक्षी दलों के घातक निर्णय
अब साल 2023 है और इस समय कांग्रेस और विपक्षी दल पूरी तरह से हताश हो चुके हैं। ऐसे में उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए एक बार फिर ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम का जिन्न निकाल दिया है। केंद्र सरकार नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) की पैरवी कर रही है, वहीं गैरभाजपा शासित राज्यों में सत्तासीन दलों को राजनीतिक लाभ मिल जाए इसके लिए ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने को लेकर यहां की सरकार निर्णय ले रही है लेकिन इस योजना के दूरगामी परिणाम घातक हो सकते हैं। आर्थिक रूप से देश के लिए तो यह निर्णय धीमे विष की भांति हैं। सोचिए कि ओपीएस को लागू करने से राज्यों की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा तो राष्ट्रीय स्तर पर भी अर्थव्यवस्था का हाल बुरा होता जाएगा।
सबसे पहले यह समझते हैं कि आखिर पुरानी पेंशन योजना क्या है। दरअसल, पुरानी पेंशन योजना यानी ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) के तहत सरकार साल 2004 से पहले कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित पेंशन देती थी। यह पेंशन कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के समय उनके वेतन पर आधारित होती थी। इस स्कीम के तहत सेवानिवृत्त हुए कर्मचारी की मौत के बाद उनके परिजनों को भी पेंशन दी जाती थी। हालांकि, इस स्कीम को 1 अप्रैल 2004 को बंद करके इसे राष्ट्रीय पेंशन योजना (National Pension Scheme) से बदल दिया गया है। अब समझने वाली बात यह है कि यह फैसला 1 अप्रैल 2004 से लागू हुआ और डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। यदि कांग्रेस चाहती तो तत्काल ही इस निर्णय को पलटते हुए पेंशन योजना बहाल कर सकती थी लेकिन ऐसा कुछ किया ही नहीं गया।
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पुरानी पेंशन योजना का जिक्र नहीं
बता दें कि अब एनपीएस यानी नेशनल पेंशन स्कीम के तहत सरकारी और गैरसरकारी कर्मचारियों को आवेदन करना होता है और एक निश्चित राशि यानी सैलरी का हिस्सा स्कीम में लगाना होता है जो कि सेवानिवृत्त होने के बाद पेंशन के रूप में प्रतिमाह मिलता है। विशेष यह है कि सरकारी कर्मचारियों को इस एनपीएस में विशेष लाभ भी मिलते हैं। पेंशन योजना खत्म हुई, नई पेंशन योजना शुरू हुई, थोड़ा बहुत विरोध हुआ और फिर मामला खत्म हो गया। कांग्रेस को भी लगा सब ठीक ठाक है।
कांग्रेस ने साल 2017- 2018 तक मोदी सरकार के विरुद्ध एक से एक नौटंकी की लेकिन पुरानी पेंशन योजना का जिक्र नहीं किया, लेकिन जब 2019 में भी विपक्षी दलों समेत कांग्रेस के की करारी हार हो गई तो सरकारी कर्मचारियों को लुभाने के लिए अब पार्टी लगातार ओल्ड पेंशन योजना के तहत राजनीति कर रही है। पिछले साल पहले कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने राज्य में सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन योजना को लागू करने की बात कही थी। सबसे बड़ी बात यह है कि जब इस मुद्दे पर सरकार पर पड़ने वाले आर्थिक दबाव की बात की गई तो सरकार का कहना है कि एक दशक तक कोई दबाव नहीं होगा बल्कि 1680 करोड़ का लाभ होगा लेकिन उसके बाद जब अभी काम कर रहे लोगों की एक बड़ी आबादी 2032-33 तक रिटायर होगी तो सरकार का बजट पेंशन के लिए बढ़ाना पड़ेगा। हम जब कोई निर्णय लेते हैं तो यह सोचते हैं कि भविष्य उज्ज्वल हो, लेकिन सरकार ने फैसला यह जानते हुए लिया है कि भविष्य में इसके बुरे परिणाम होंगे। ऐसा करना यह दिखाता है कि मंशा किसी भी तरह के जनहित या आर्थिक सुधारों की नहीं बल्कि अपने वोटों की झोली भरने की है, चाहे अर्थव्यवस्था गड्ढे में ही क्यों न चली जाए।
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900 करोड़ का बोझ
अभी कांग्रेस की हिमाचल प्रदेश में नई सरकार बनी है तो सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की कैबिनेट ने अपनी पहली बैठक में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने की घोषणा की है जिससे हिमाचल प्रदेश के एक लाख 36 हजार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ मिलेगा। पुरानी पेंशन बहाल करने के साथ ही करीब 900 करोड़ का बोझ सरकार पर पड़ने वाला है, आने वाले सालों में यह बोझ और ज्यादा बढ़ता जाएगा।
वहीं आम आदमी पार्टी की सरकार ने पंजाब में ओल्ड पेंशन योजना शुरू कर रही है। पंजाब के सीएम भगवंत मान इसकी घोषणा भी कर चुके हैं। जानकारी के मुताबिक इस योजना का लाभ सीधे तौर पर प्रदेश के करीब 1.75 लाख कर्मचारियों को मिलेगा। सीएम भगवंत मान ने कहा कि एनपीएस के साथ मौजूदा रिजर्व फंड 16,746 करोड़ रुपये है। पंजाब सरकार पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी से इस राशि को लौटाने की अपील करेगी।
तीनों राज्यों में ओल्ड पेंशन योजना को लागू करने का निर्णय ले लिया गया है। ये सरकारें यह अच्छे से जानती हैं कि अभी सीधे रूप में उनके शासनकाल के दौरान सरकार पर कोई बहुत बड़ा आर्थिक बोझ नहीं पड़ने वाला है लेकिन यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे यह जिन्न बड़ा होगा, वैसे-वैसे इसका बोझ राज्यों पर आर्थिक से बढ़ता चला जाएगा। ऐसे में भविष्य में इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।
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मोंटेक सिंह ने निर्णय को बेतुका कहा
ये तो सर्वविदित है कि एक आम सरकारी अध्यापक भी गांवों में बैठकर करीब 50,000 रुपये का न्यूनतम वेतन उठा लेते हैं और सेवानिवृत्त होते होते आर्थिक रूप से इतने मजबूत तो हो ही जाते हैं कि पेंशन की आवश्यकता न पड़े। पेंशन शुरू करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है बल्कि इस एक कदम से अमीर-गरीब की खाई और बड़ी होने की संभावना होगी। ऐसे में जो पैसा सरकारी कर्मचारियों को पेंशन योजना के नाम पर दिया जाएगा, यही पैसा अगर सीधे गरीबों और आदिवासियों के विकास पर खर्च किया जाए तो इसका एक फलदायी परिणाम भविष्य में दिखाई दे सकते हैं।
यूपीए शासन में मोंटेक सिंह अहलूवालिया जो कि योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष रह चुके हैं उन्होंने हाल ही में कांग्रेस शासित कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने को लेकर बयान दिया और निर्णय को बेतुका ठहराया है। उन्होंने कहा कि इससे वित्तीय दिवालियापन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। गैर भाजपा शासित सरकारें और खासकर कांग्रेस जिस तरह से ओल्ड पेंशन योजन को त्वरित राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग में ला रही है इसे रोकने की शीघ्र ही केंद्र सरकार को कोई रास्ता निकालना होगा। देश में राजनीतिक पार्टियों को ऐसा माहौल बनाना होगा कि इस ओल्ड पेंशन योजना को लेकर राजनीति न की जाए। वोट पाने के लालच में देश को आर्थिक रूप से खोखला करने वाले इस ओल्ड पेंशन योजना को त्वरित रूप से रोकने पर केंद्र सरकार को अवश्य कदम उठाने होंगे, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब देश दिवालिया की ओर अग्रसर हो जाए और हाल श्रीलंका जैसे हो जाएं।
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