प्रदोष व्रत कथा : व्रत के नियम एवं धार्मिक महत्व

pradosh vrat katha

Pradosh Vrat Katha : प्रदोष व्रत कथा : व्रत के नियम एवं धार्मिक महत्व 

स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Pradosh Vrat Katha साथ ही इससे जुड़े कथा एवं नियम के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें

प्रदोष व्रत कथा –

सूतजी के मुख से इतनी कथा श्रवण कर ऋषियों के मध्य में बैठे महर्षि गर्गाचार्य बोले-हे महामुने! आपने हमारे ऊपर परम कृपा करके प्रदोष व्रत का विधान बताया है अब आप विशेष कृपा करके हम लोगों को पक्ष प्रदोष  व्रत का विधान बताने की कृपा कीजिये। तब सूतजी बोले- हे ऋषियों! अब मैं आपकी इच्छानुसार पक्ष प्रदोष व्रत का विधान वर्णन करता हूँ, आप लोग ध्यानपूर्वक श्रवण कीजिये ।

एक ग्राम में एक अत्यन्त निर्धन ब्राह्मणी रहती थी, जिसे नित्यप्रति भर पेट भोजन भी नहीं मिलता था। इससे दुखी होकर वह वन में चली गई। चलते-चलते वह शांडिल्य मुनि के आश्रम में जा पहुँची और उन्हें दण्डवत कर अपनी दुःख भरी गाथा सुना दी। जिसे सुन कर शांडिल्य ऋषि को दया आ गयी। वे बोले-मैं तुमको दुखों से छुटकारा पाने का सरल उपाय बताता हूँ। तुम विधि पूर्वक प्रत्येक मास की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रहा करो इससे भगवान् शंकर तुम पर प्रसन्न होकर सारे दुःख दारिद्र को दूर कर तुम्हें सुखी बनायेंगे।

यह सुन कर ब्राह्मणी बोली- हे महामुने! आप दया करके मुझे प्रदोष व्रत का विधान बताने की कृपा करें। मैं इस व्रत को अवश्य करूंगी। शांडिल्य मुनि बोले- जिस दिन त्रयोदशी होवे, उस दिन प्रभात बेला में शैय्या त्याग शौच आदि क्रियाओं से निवृत्त हो स्नान कर एक लोटे में स्वच्छ जल लेकर पद्मासन लगा कर ‘ॐ गंगा विष्टाओ नमः । ॐ भगवते वासुदेवाय नमः ।’ ‘ॐ गोविन्दाय नमः ।’ इन तीनों से आचमन करे फिर हाथ स्वच्छ कर पुनः हाथ में जल ले “ ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा यः स्मरेतपुण्डीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरः शुचिः ” इस मन्त्र से अपनी देह पर जल का छींटा दे। पुनः हाथ में जल लेकर संकल्प करे – हे महादेव! मई आपकी शरणागत हूँ| हे गौरपते! मेरे सकल दुख दारिद्र का नाश कीजिये। हे आशुतोष! मुझे अभय दान दीजिये और मेरी पूजा प्रार्थना स्वीकार कीजिये, कह कर जल को धरती पर छोड़ दे, तत्पश्चात् शान्त चित्त से भगवान् भोले शंकर का पूजन आरम्भ करे।

शिवजी को स्नान, परिधान, धूप, दीप, नैवेद्य, बिल्वपत्र अर्पण कर आरती करे। इसके बाद ध्यान करे-कैलाशपति! जिनके मस्तक पर गंगा की पवित्र धारा प्रवाहित हो रही है, चन्द्रमा के प्रकाश से सुशोभित त्रिनेत्र बाघम्बर धारी, गले में सर्पों की माला पहने हाथों में त्रिशूल तथा डमरू धारण किये हुये जिनके वामांग में कमल के समान सुन्दर मुख वाली सूर्य प्रभा के समान तेजोमयी गौरांग वर्ण वाली भगवती पार्वती, जिसके चारों हाथों में शङ्ख, चक्र, गदा और पद्य विराजमान है, ऋषि पत्नियों के सहित सुशोभित हो रही हैं।

इसके अनन्तर मन्त्रों के द्वारा “ ॐ धर्माय नमः, ॐ ज्ञानाय नमः, ॐ वैराग्याय नमः, ॐ ऐश्वर्याय नमः” कह कर कात्यायनी, सरस्वती और लक्ष्मी जी का पूजन करे इन्द्र वरुण, कुबेर आदि का स्मरण कर इस प्रकार प्रार्थना करे हे देवाधिदेव! आप ही सकल जगत् के स्वामी हैं, आप ही दुखियों के दुखहर्ता, विपत्तियों से रक्षा करने वाले और भक्तों का कल्याण करने वाले हैं हे नाथ! मैं आपकी शरण हूँ। हे प्रभो! मेरे दुख को दूर कर मुझे भाग्यशाली बनाइये। ॐ तदनन्तर यथाशक्ति ब्राह्मणों को दक्षिणा दे, भोजन करावे और आशीर्वाद प्राप्त करे। शांडिल्य ऋषि बोले-हे पुत्री! मैंने जो शिवपूजन का विधान तुमको बताया है इसका एक वर्ष पर्यन्त पालन करने से तुम्हारे समस्त दुःख दूर हो जायेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा।

प्रदोष व्रत के नियम –

प्रदोष व्रत के दिन व्यक्ति को सुबह के समय स्नान-ध्यान कर के भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए। व्रत की अवधि में नमक का सेवन बिलकुल ना करें और इस दिन किसी से भी विवाद मोल लेने से बचें। साथ ही इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन निश्चित रूप से किया जाना चाहिए।

प्रदोष व्रत की पूजा कैसे की जाती है? –

Also Read-

प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व –

पंचाग के अनुसार किसी भी दिन के सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल को प्रदोष कहा जाता है और इस प्रदोष काल में की गई शिव की पूजा कईगुना ज्यादा फलदायी होती है. इस पूजा का महत्व तब और अधिक बढ़ जाता है जब यह त्रयोदशी यानि प्रदोष व्रत वाले दिन की जाती है. प्रदोष काल के बारे में मान्यता है कि इसी काल में महादेव विष पीकर नीलकंठ कहलाए थे |

आशा करते है कि Pradosh Vrat Katha के बारे में सम्बंधित यह लेख आपको पसंद आएगा एवं ऐसे लेख पढ़ने के लिए हमसे फेसबुक के माध्यम से जुड़े।

Exit mobile version