अक्सर आपने लोगों को यह कहते सुना होगा- भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा। पर इस बात का सबसे कड़वा अनुभव अपने बहुचर्चित अभिनेता प्राण ने जीते जी किया था। उन्हें क्या पता था कि संकट में पड़े जिस मित्र कि वे सहायता करेंगे, अपना मतलब पूरा होने पर वह उन्हें टिशू पेपर की भांति फेंक देगा। इस लेख में हम जानेंगे उस किस्से के बारे में कि कैसे अभिनेता प्राण ने राज कपूर की सहायता की थीं परंतु समय आने पर उनके साथ ऐसा विश्वासघात किया कि दोनों की दोस्ती सदैव के लिए नष्ट हो गई।
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प्राण का प्रभाव
1950 से लेकर 1980 तक कई प्रसिद्ध फिल्मों में प्राण कृशन सिकंद का काफी प्रभाव हुआ करता था। वो तो चरित्र अभिनेता थे। उनका अभिनय ऐसा होता था कि उनका रहना न रहना किसी भी फिल्म का भाग्य बदलने के लिए पर्याप्त था। 1970 के दशक के प्रारंभ में प्राण उन चंद “कैरेक्टर आर्टिस्टस” में सम्मिलित थे, जो अपने रोल के लिए अपनी फीस स्वयं तय करते थे और कई बार तो लीड एक्टर को वे अपने अभिनय और फीस, दोनों से ही टक्कर देने के लिए पर्याप्त थे।
अब बात करते हैं उस किस्से के बारे में जिसके कारण प्राण और राज कपूर की दोस्ती में दरार आ गयी थीं। असल में 1970 में राज कपूर ने अपनी बहुचर्चित फिल्म प्रदर्शित की थी- “मेरा नाम जोकर”। इसमें उन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था और इसमें कई बड़े बड़े अभिनेता भी शामिल हुए थे। परंतु ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपना बजट तक नहीं रिकवर कर पाई और फिल्म के साथ राज कपूर की इज्जत भी धड़ाम हो गई।
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जब मुश्किल समय में मदद के लिए आगे आए प्राण
“मेरा नाम जोकर” के फ्लॉप होने से राज कपूर के सम्मान के साथ साथ उनका करियर भी दांव पर लग गया। कुछ ही समय बाद उनकी फिल्म आने वाली थी “बॉबी”, जो अब अधर में लटकती प्रतीत हुई। ऐसे में राज कपूर ने अधिक जोखिम न उठाते हुए अपने सगे-संबंधियों को ही प्रमुख रोल्स के लिए लेते हुए इस फिल्म को बनाया, जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म के प्रमुख अभिनेता ऋषि कपूर थे, न कि कोई प्रभावशाली अभिनेता। ऐसे में ऋषि कपूर को उनका पहला ब्रेक उनकी प्रतिभा या कपूर परिवार से उनके कनेक्शन के कारण नहीं, अपितु विवशता में मिला और डिम्पल कपाड़िया को इसलिए कास्ट किया गया क्योंकि वे फिल्म उद्योग में नई थी।
राज कपूर की स्थिति इतनी खराब थी कि बॉबी के पीछे उन्होंने अपने पत्नी के जेवर, यहां तक कि अपनी कुछ प्रॉपर्टी भी दांव पर लगा दी। ऐसे में उन्हें एक अप्रत्याशित सहायता अभिनेता प्राण से मिली थी। उन दिनों प्राण का भाग्य अपने शिखर पर था और “विक्टोरिया नंबर 203” में अशोक कुमार के साथ उनकी जुगलबंदी दर्शकों को खूब रास आई थी। ऐसे में उन्होंने मात्र 1 रुपये में “बॉबी” में राम नाथ का रोल करने की स्वीकृति भरी और बाकी की राशि बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के अनुसार देखने के बाद अपनी फीस तय करने का निर्णय लिया था।
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बॉबी ब्लॉकबस्टर हुई और फिर…
1973 में बॉबी प्रदर्शित हुई और राज कपूर को मानो जैकपॉट मिल गया। ये फिल्म इतनी सफल हुई कि लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया और ये फिल्म बन गई ब्लॉकबस्टर, जिसे सोवियत यूनियन में भी सराहा गया, जहां राज कपूर की फिल्में काफी लोकप्रिय रहती थी। इस फिल्म का लाइफटाइम कलेक्शन लगभग 33 करोड़ रुपये था, जो आज के अनुरूप काफी अधिक होगा।
परंतु यहीं पर राज कपूर की नियत बिगड़ गई। उन्होंने वही गलती की जिसके पीछे राज कुमार ने “मेरा नाम जोकर” करने से ही इनकार कर दिया – अपने आचरण को सही रखने की। आप कितने भी बड़े हस्ती बन जाए, यदि आपके आचरण में खोट है तो आप संसार जीत के भी किसी योग्य नहीं रहेंगे। फिल्म के सक्सेस पर प्राण को उनकी फीस का एक चेक भेजा गया, परंतु उसपर जो धनराशि अंकित थी, उसे देख प्राण आगबबूला हो गए। वह धनराशि उनके तत्कालीन फीस से काफी कम थी।
कहते हैं कि प्राण को इस बात का क्रोध नहीं था कि उन्हें कम धनराशि मिली, क्योंकि वे पहले भी कई फिल्में छोटे मोटे फीस पर काम कर चुके थे, परंतु जिस निस्स्वार्थ भाव से उन्होंने सहायता की, उसका मान तक राज कपूर ने नहीं रखा, वो भी तब जब राज उन्हें “अपना मित्र” मानते थे। इस बात से कुपित होकर प्राण ने न केवल वह चेक स्वीकारने से मना किया, अपितु उस दिन के बाद से राज कपूर और प्राण के संबंधों में जो खाई बनी, वो फिर न पट सकी।
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