रस किसे कहते है : अंग एवं  प्रकार

Ras Kise Kahate Hain

Ras Kise Kahate Hain – रस किसे कहते है अंग एवं   प्रकार

स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Ras Kise Kahate Hain बारे में साथ ही इससे जुड़े अंग एवं  प्रकार के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें.

रस किसे कहते है-

परिभाषा -रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है। दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य के द्वारा सहृदयों के हृदय में जिस आनन्द भाव का संचार होता है वह रस कहलाता हैं।

रस के कितने अंग

स्थायी भाव –

सहृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रुप से विद्यमान रहते है, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं। अथवा हृदय में मूलरूप से विद्यमान रहने वाले भावों को स्थायी भाव कहते हैं।

विभाव

जो व्यक्ति वस्तु या परिस्थितियाँ स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।

अनुभाव –

अनु उपसर्ग है, जिसका अर्थ होता है बाद में या पीछे अर्थात स्थायी भाव के बाद में जो भाव उत्पन्न होते हैं उन्हें अनुभाव कहा जाता है ।

संचारी भाव –

आश्रय के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं।

रस के प्रकार –

शृंगार रस –

जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रति स्थायी भाव आस्वाद्य हो जाता है तो उसे शृंगार रस कहते हैं।

हास्य रस –

विकृत वेशभूषा, क्रियाकलाप, चेष्टा या वाणी देख-सुनकर मन में जो विनोदजन्य उल्लास उत्पन्न होता है, उसे हास्य रस कहते हैं। हास्य रस का स्थायी भाव हास है।

वीर रस – सहृदय के ह्रदय में स्थित उत्साह नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग हो जाता है तो वीर रस की निष्पत्ति होती है ।

रौद्र रस – जहाँ क्रोध नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है , वहां रौद्र रस की निष्पत्ति होती है ।

भयानक रस  – सहृदय के ह्रदय में स्थित भय  नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है तो वहां भयानक  रस की निष्पत्ति होती है

वीभत्स रस –

सहृदय के ह्रदय में स्थिति घृणा नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है तो वहां वीभत्स रस की निष्पत्ति होती है ।

अद्भुत रस –

अलौकिक, आश्चर्यजनक दृश्य या वस्तु को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता और मन में स्थायी भाव विस्मय उत्पन्न होता है। यही विस्मय जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तो अद्भुत रस उत्पन्न होता है।

शान्त रस-

इसका स्थायी भाव निर्वेद है। इस रस में तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है, उसे शान्त रस कहते हैं।

बीभत्स रस –

वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है। अनेक विद्वान् इसे सहृदय के अनुकूल नहीं मानते हैं, फिर भी जीवन में जुगुप्सा या घृणा उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ तथा वस्तुएँ कम नहीं हैं।

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