डॉलर को दुनिया की सबसे मजबूत मुद्रा माना जाता हैं। किसी भी दो देशों को आपस में विदेशी व्यापार करना हो तो उन्हें डॉलर की ही आवश्यकता पड़ती है। हालांकि बदलती वैश्विक परिस्थितियों के साथ डॉलर पर निर्भरता को कम करना अति आवश्यक हो गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को कई सबक सिखाए, जिसमें एक यह भी था कि क्यों हमें अमेरिका जैसे दोगेले देश की किसी भी चीज पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। भारत पिछले काफी समय से अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के एकाधिकार समाप्त करने और रुपये में विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहा है। हाल ही में रूस के वीटीबी (VTB) बैंक ने एक ऐसा निर्णय लिया जिसके बाद भारत-रूस के व्यापारिक संबंधों के बीच से डॉलर नाम का कांटा निकल जाएगा और बिना किसी रुकावट के दोनों देश एक दूसरे के साथ अपनी मुद्राओं में व्यापार कर सकेंगे।
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रूसी बैंक का बड़ा फैसला
दरअसल, रूस का दूसरे सबसे बड़ा बैंक वीटीबी (VTB) ने भारत के साथ सीधा रुपये में भुगतान करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। जिसके बाद अब भारत-रूस रुपये और रूबल में बिना किसी रुकावट के भुगतान कर सकेंगे। केवल इतना ही नहीं पिछले वर्ष दिसंबर माह तक 9 भारतीय बैंकों को रूस के साथ ट्रेड सेटलमेंट के लिए 17 वोस्ट्रो अकाउंट खोलने की मंजूरी मिली थी। भारतीय बैंकों में यूको बैंक, इंडियन बैंक, HDFC बैंक, यस बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, इंडसइंड बैंक, आईडीबीआई बैंक, केनरा बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं। इसके अलावा दो और वोस्ट्रो अकाउंट रूस के दो सबसे बड़े बैंकों सर्बैंक और वीटीबी बैंक में खोले गए।
RBI के बाद अब वीटीबी (VTB) की मंजूरी मिलने से भारत और रूस के बीच रुपये-रूबल में व्यापार करने के लिए अब रास्ता पूर्ण रूप से साफ हो गया। परंतु यहां पर दो चीजें समझना बेहद आवश्यक है कि वोस्ट्रो खाता क्या होता है और भारत-रूस डॉलर को छोड़ अपनी मुद्राओं में व्यापार क्यों कर रहे हैं?
सबसे पहले जान लेते हैं कि आखिर वोस्ट्रो खाता क्या है? यह विदेशी व्यापार के लिए उपयोग किया जाने वाला खाता है, जिसके माध्यम से घरेलू बैंक वैश्विक बैंकिंग आवश्यकताओं वाले ग्राहकों को अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग सेवाएं प्रदान करते हैं।
रुपये में व्यापार करने के कारण
दूसरा सबसे बड़ा प्रश्न है कि भारत रुपये में व्यापार को बढ़ावा क्यों दे रहा है जबकि दुनियाभर के बाकी देश तो डॉलर में व्यापार करते हैं। इसका जवाब है वैश्विक स्तर पर भारत को मजबूती प्रदान करना और बाजार में डॉलर के एकाधिकार को समाप्त करना। दरअसल, लंबे समय से बाजार में अमेरिका अपना वर्चस्व बनाए हुए है और वो अपने अनुसार बाजार को चलाता है। जिसका उदाहरण हमें रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के रूप में देखने के लिए मिलता है। इस युद्ध के दौरान तमाम पश्चिमी देशों ने प्रतिबंधों के माध्यमों से रूस और उसकी अर्थव्यवस्था को तोड़ने के प्रयास किए।
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इस दौरान भारत ने रूस के साथ अपने हितों और संबंधों को ध्यान में रखकर द्वपिक्षीय व्यापार में वृद्धि करने का निर्णय लिया। परंतु रूस पर लगे प्रतिबंध इसमें बड़ी अड़चन बन रहे थे, जिसकी काट दोनों देशों ने निकालने की सोची और इसके बाद भारत और रूस ने आपसी कारोबार के लिए डॉलर की जगह अपनी-अपनी करेंसी का इस्तेमाल करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाए।
इसके अलावा एक बिंदु यह भी है कि अमेरिकी डॉलर की कीमत भारतीय रुपये की अपेक्षा हमेशा ही अधिक रहती है। भारत-रूस द्वारा उठाए जा रहे इन कदमों से डॉलर के कमजोर होने और रुपये-रूबल की महत्ता बढ़ने की संभावना है। केवल रूस ही नहीं कई अन्य देशों के साथ भी भारत अपने रुपये में व्यापार करना चाह रहा है। कुछ समय पूर्व ही डॉलर की कमी से जूझ रहे श्रीलंका ने भारतीय रुपये में व्यापार करने पर सहमति जताई।
इसके अलावा मॉरिशस, सऊदी अरब, क्यूबा, सूडान इत्यादि जैसे कई देश भी भारत के साथ डॉलर छोड़ सीधा रुपये में व्यापार करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। आने वाले समय में रूस की तरह इन देशों के साथ भी भारत रुपये में सीधा व्यापार करेगा और डॉलर के एकाधिकार को समाप्त करेगा।
यदि रूस के वीटीबी (VTB) बैंक के द्वारा रुपये में सीधे व्यापार की अनुमति पर संक्षेप में कहा जाए तो यह एक ऐसा कदम है जो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की दादागीरी को धता बताता है। यह बताता है आने वाले समय में भारत की राह क्या है। किस प्रकार भारत वैश्विक पटल सधे हुए कदमों से दिन प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है।b
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