पश्चिम को टक्कर देने के लिए बना SCO अब अपनी ही समस्याओं में उलझकर रह गया है?

अब SCO की दशा और दिशा तय करने में भारत की भूमिका अहम होने वाली है।

SCO, which was formed to compete with West, is now stuck in its own problems?

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कुछ संगठन शुरू तो पूरे उत्साह के साथ किए जाते हैं लेकिन आंतरिक बाधाओं के चलते उन्हें ही मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन कुछ इसी तरीके से बर्बादी की कगार पर पहुंच गया। यह कहा ही जाता कि जब लोग निजी मुद्दों को हल करने पर अधिक ध्यान देने लगते हैं तो संगठन का खात्मा जल्द ही होता है। SCO का गठन तो पश्चिमी देशों को टक्कर देने के उद्देश्य के साथ हुआ था लेकिन अब निजी हितों के कारण यह अप्रासंगिक होता जा रहा है। हालांकि अब सबकुछ भारत के हाथों में है। क्योंकि भारत इसकी अध्यक्षता कर रहा है तो यह उसके लिए एक बड़ी चुनौती हैं कि वो कैसे इन सभी समस्याओं से निपटते हुए SCO के कार्यक्रम को सही ढंग से संपन्न कराता है और यह देखना भी अहम होगा कि SCO की दशा या दिशा क्या हो सकती है।

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भारत में SCO की बैठक

भारत के लिए साल 2023 काफी अहम होने वाला है क्योंकि इस वर्ष G20 के साथ SCO की अध्यक्षता भी भारत के पास ही है। मई 2023 को गोवा में SCO समिट के सभी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाई जाएगी। ऐसे में भारत ने विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए पाकिस्तान और चीन सहित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सभी सदस्यों को औपचारिक रूप से निमंत्रण भेजा है। चीन के नए विदेश मंत्री क़िन गैंग और पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को भी SCO बैठक में शामिल होने के लिए निमंत्रण भेजा गया है। गौरतलब है कि भारत ने पिछले साल सितंबर में 9 सदस्यीय विशाल समूह की अध्यक्षता संभाली थी और इस साल प्रमुख मंत्रिस्तरीय बैठकें और शिखर सम्मेलन भारत में ही आयोजित होगीं।

अब अहम बात यह है कि पिछले दिनों न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध आपत्तिजनक बयान दिया था। इसको लेकर दोनों देशों के बीच एक बार फिर टकराव देखने को मिला था। भारत ने इस पर सख्त जवाब दिया था और यह भी कहा था कि इस मुद्दे पर बिलावल भुट्टों के माफी मांगनी चाहिए। हालांकि सभी को पता था कि बिलावल भुट्टों जैसे नेता माफी तो नहीं ही मांगेंगे। बीजेपी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं ने इसके विरुद्ध पाकिस्तानी दूतावास के सामने जाकर विरोध प्रदर्शन किया था।

ऐसे में यह भी संभावनाएं हैं कि बिलावल भुट्टो SCO के कार्यक्रम में न आएं। हालांकि माना जा रहा है भारत ने पाकिस्तान को यह न्यौता एक औपचारिकता के तौर पर ही दिया है, इसका द्विपक्षीय संबंधों से लेश मात्र भी संबंध नहीं है। बता दें कि बिलावल के आने या न आने को लेकर पाकिस्तान ने कोई पुष्टि नहीं की है। इससे पहले पाकिस्तान ने मुंबई में आयोजित SCO फिल्म फेस्टिवल में हिस्सा नहीं लिया है, जबकि सभी देशों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प रहने वाला है कि मई में होने वाली SCO की बैठक में पाकिस्तान अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है या नहीं।

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SCO की स्थापना

आपको बता दें कि SCO संगठन की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी। चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान 1996 में “शंघाई 5” का हिस्सा था और यही 2001 में SCO में बदल गया था। भारत और पाकिस्तान दोनों ही वर्ष 2017 में इसके स्थाई सदस्य बने थे। SCO में सदस्य देशों की बात करें तो यह संगठन दुनिया की आबादी का 40% और दुनिया की जीडीपी का 30% शामिल है जोकि इसे एक बड़ी ताकत बनाता है। इसके गठन के दौरान उद्देश्य एकदम सटीक था कि कैसे भी करके संगठन के देश पश्चिमी ताकतों का मुकाबला करेंगे और एक साथ आर्थिक, रक्षा और व्यापारिक सहयोग स्थापित करेंगे।

बता दें कि तुर्की भी SCO का हिस्सा बनना चाहता है। पिछले वर्ष उज्बेकिस्तान में हुई SCO बैठक में तुर्की के राष्ट्रपति ने रजब तैयब एर्दोगन ने पहुंचकर हर किसी को चौंका दिया था। इस दौरान राष्ट्रपति एर्दोगन ने यह कहा था कि तुर्की एससीओ का सदस्य बनना चाहता है। इसी कारण वह बैठक में विशेष अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे। इसके अलावा ईरान भी एससीओ का रूख कर चुका है। यह कहा जाता है कि पश्चिमी देशों का संयुक्त राष्ट्र पर विशेष प्रभाव है। ऐसे में SCO से उम्मीद यह है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के संयुक्त राष्ट्र पर प्रभाव को कम करने में यह संगठन अहम भूमिका निभाएगा। कुछ ने तो SCO को NATO का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में भी देखा।

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आपसी टकरावों में उलझे सदस्य देश

परंतु यह इतना आसान भी नहीं है क्योंकि SCO की अपनी चुनौतियां है। विशेष बात यह है कि एससीओ की दिक्कत कोई बाहरी नहीं बल्कि संगठन के ही अलग-अलग देश और उनके निजी हित हैं। SCO के सदस्य देशों की बात करें तो ये रूस, भारत, चीन, ईरान, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान हैं। अब दिक्कत की बात यह है कि जिन देशों को एक साथ होकर पश्चिमी और खासकर अमेरिका जैसी वैश्विक ताकत का मुकाबला करना चाहिए, वे सभी देश आपस में ही टकरावों को लेकर उलझे हुए हैं। एक तरफ जहां भारत-पाकिस्तान का आपस में भयंकर टकराव है। चीन और रूस के बीच संबंध सामान्य हैं लेकिन चीन और भारत के बीच इस समय विवाद अपने चरम पर है। अब ऐसा नहीं है कि यह टकराव केवल संगठन में आंतरिक तौर पर ही है बल्कि इस टकराव के चलते संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों में जाकर SCO के ही सदस्य एक दूसरे के विरुद्ध मुखर होकर बोलते हैं।

यूरोपीय संसद के एक रिसर्चर ने SCO को लेकर अपनी रिपोर्ट में संगठन की चुनौतियों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि SCO संगठन के बीच कोई कॉमन वित्तीय फंड नहीं हैं जिससे आपस में वित्तीय सहयोगों को स्थापित किया जा सके। इसके अलावा संगठन में कोई कॉमन मिनिमम एजेंडा भी नहीं है। रिसर्चर का कहना था कि यद्यपि देशों के आपस में द्विपक्षीय टकराव हों लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जोकि सभी के लिए समान होने चाहिए, जिसमें पश्चिमी देशों को टक्कर रखने का मुख्य एजेंडा होना ही चाहिए क्योंकि इसी एक बड़े उद्देश्य के लिए संगठन को खड़ा किया गया था।

विश्वलेषक यह सीधे तौर पर मानते हैं कि SCO संगठन विश्व की एक बड़ी आबादी का नेतृत्व करता है। इस संगठन के पास ऐसे देश हैं जोकि आपस में मिलकर पूरी दुनिया को अपनी शर्तों पर चला सकते हैं। इसके बावजूद यदि SCO पश्चिमी देशों का मुकाबला नहीं कर पा रहा है तो निश्चित तौर पर यह संगठन के लिए चुनौती है जिससे लड़कर सुलझाना भी इन्हीं देशों की जिम्मेदारी है।

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