कुतुबुद्दीन ऐबक को जमीन पर पटक कर, उसे कूच-कूच कर मार डालने वाले घोड़े शुभ्रक की कहानी

इतिहास की पुस्तकों में महाराणा प्रताप के घोड़े 'चेतक' के बारे में बहुत कुछ बताया गया है लेकिन स्वामीभक्त शुभ्रक की कहानी उससे भी रोचक है.

Shubharak

Source- TFI

घोड़ा शुभ्रक की कहानी: भारत का इतिहास बड़ा ही अद्भुत और रोचक है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक चारों दिशाओं में जितनी सांस्कृतिक विविधताएं हैं उतनी ही ऐतिहासिक विविधताएं भी हैं। भारत का कोई भी राज्य ऐसा नहीं है जहां लोगों को आश्चर्यचकित करने वाली कथाएं न हों। लेकिन यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर होने के बावजूद भी भारतीयों को उनके वास्तविक नायकों का इतिहास नहीं बताया गया और बताया भी गया तो उसे तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।

फिर चाहे वह प्रचीन काल का इतिहास हो या मध्यकाल का इतिहास, बुद्धिजीवियों ने उसे ऐसे पेश किया कि वे महज कहानियां बनकर रह गईं। लेकिन आज हम आपको भारत के मध्यकालीन इतिहास के एक ऐसे तथ्य से अवगत कराएंगे, जो शायद आप नहीं जानते होंगे।

अभी तक हमें यही बताया जाता रहा है कि गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरकर हो गई थी लेकिन यह असत्य है। 11 साल की उम्र में घुड़सवारी के गुर सीखने वाला एक लड़ाका सरदार जिसने कई युद्ध घोड़े पर चढ़कर लड़े उसकी मौत घोड़े से गिरकर कैसे हो गई? यह बड़ा सवाल है। दरअसल, उसकी मृत्यु घोड़े के वार से ही हुई थी लेकिन घोड़े ने स्वयं उसे गिराया था और कूच दिया था, जिसके कारण उसकी मौत हुई थी। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। इस लेख में आज हम आपको उसी घोड़े की कहानी बताएंगे।

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घोड़ा शुभ्रक की कहानी

दरअसल, महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच हुआ हल्दी घाटी का भीषण युद्ध आज भी लोगों के बीच जीवित है। इस युद्ध में अपने स्वामी के प्राण बचाने वाला और 318 किलो वजन उठाकर तेज दौड़ने वाला घोड़ा चेतक भी लोगों के मस्तिष्क में जीवित है। यही नहीं, आज भी चेतक का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। लेकिन इतिहास में चेतक की भांति एक और घोड़ा था, जिसने न केवल अपने स्वामी के प्राण बचाने के लिए अपने प्राण दिए बल्कि कुतुबुद्दीन ऐबक जैसे दुष्ट शासक को भी जान से मार दिया था। उस घोड़े का नाम था शुभ्रकशुभ्रक मेवाड़ के शासक कर्ण सिंह का घोड़ा हुआ करता था। बताया जाता है कि यह देखने में सुंदर और बड़ा ही फुर्तीला था। वह कर्ण सिंह का चहेता था और उन्हें काफी अच्छे से पहचानता भी था।

असल में कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गोरी का गुलाम हुआ करता था। जी हां, वही मोहम्मद गोरी जिसे पृथ्वीराज चौहान ने तराइन के युद्ध में हराया था। कुतुबुद्दीन बचपन से ही गोरी का गुलाम था। उसका पालन पोषण गोरी के दरबार में ही हुआ था। दरबार में रहने के कारण उसने अपनी प्रतिभा से गोरी को बहुत अधिक प्रभावित किया और कुतुबुद्दीन ऐबक की चांदी तो तब हुई जब गोरी की मौत हुई। गोरी की मौत होने के बाद कुतुबुद्दीन ने बाहुबल के दम पर 1206 में लाहौर के सिंहासन पर कब्जा कर अपना राजतिलक करवा लिया।

गद्दी पर बैठने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी सीमाओं का विस्तार किया, जिसके अंतर्गत उसने कई अलग-अलग राज्यों पर आक्रमण किए। उन्हीं राज्यों में से एक था मेवाड़, जिसे उस समय कर्ण सिंह संभाल रहे थे। कर्ण सिंह एक बहादुर शासक थे और उनके पास शुभ्रक नाम का एक घोड़ा हुआ करता था। जब कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और कर्ण सिंह और ऐबक के बीच युद्ध हुआ तो इस युद्ध में दुर्भाग्य से कर्ण सिंह को बंदी बना लिया गया। कर्ण सिंह को मेवाड़ से लाहौर ले जाया गया लेकिन कर्ण सिंह अकेले नहीं थे, जिन्हें लाहौर ले जाया गया उनके साथ-साथ उनके घोड़े शुभ्रक को भी ले जाया गया। क्योंकि शुभ्रम, कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया था। ऐसे में लाहौर ले जाकर कुतुबुद्दीन शुभ्रक पर सवारी भी किया करता था।

कुतुबुद्दीन को कूच दिया

दूसरी ओर कर्ण सिंह को लाहौर में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इतनी यातनाएं दी कि उनकी स्थिति दयनीय हो चुकी थी। इतिहास की परतों में ऐसा देखने को मिलता है कि कुतुबुद्दीन की कैद से यदि कोई भी भागने की कोशिश करता था, तो उसे मौत की सजा दी जाती थी और कर्ण सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कर्ण सिंह ने भागने की कोशिश की लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाए और उन्हें पकड़ लिया गया। तब कुतुबुद्दीन को पोलो खेलने का शौक हुआ करता था। सो तय हुआ कि कुंवर साहब कर्ण सिंह को जन्नत बाग लाया जाए। वहां कुतुबुद्दीन उनके सिर को काटकर उसी से पोलो खेलेगा। आदेश के अनुसार, कर्ण सिंह को कैदी के भेष में लाहौर के जन्नत बाग लाया गया। वहां कुतुबुद्दीन कर्ण सिंह के घोड़े शुभ्रक पर सवार होकर वहां आया।

अपने स्वामी को जंजीरों में जकड़ा देख शुभ्रक से रहा नहीं गया। दुख में उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। इसके बाद सिर कलम करने के लिए जैसे ही राजकुमार कर्ण सिंह की जंजीरों को खोला गया, लेकिन जैसे ही शुभ्रक ने अपने स्वामी कर्ण सिंह को उस अवस्था में देखा तो वह बेकाबू हो गया और कुतुबुद्दीन ऐबक को जमीन पर गिरा दिया।

यही नहीं, जमीन पर गिराने के बाद उसने ऐबक की छाती पर लगातार इतने वार किए कि उसने वहीं पर दम तोड़ दिया। कुतुबुद्दीन की कहानी को समाप्त करने के बाद कर्ण सिंह उसके ऊपर सवार हो गए और शुभ्रक उन्हें बिना रूके लाहौर से मेवाड़ तक लेकर आ गया। लेकिन मेवाड़ में आकर जब कर्ण सिंह ने उसे पुचकारने के लिए उसके ऊपर हाथ फेरा तो स्वामीभक्त शुभ्रक अपने प्राण त्याग चुका था। लेकिन इतिहास में इस कथा को उस प्रकार का स्थान नहीं दिया गया, जितना मिलना चाहिए था। वहीं, कुतुबुद्दीन ऐबक को महान बताने के लिए जनता को यह झूठ भी बेचा गया कि उसकी मौत घोड़े से गिर कर हुई थी। जबिक सत्य तो यह है कि उसकी मौत घोड़े से गिरकर नहीं बल्कि स्वयं घोड़े ने ही की थी।

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