द्रौपदी द्वारा कर्ण को स्वयंवर में नकारने का जानिए वास्तविक कारण

कर्ण उठ खड़ा होता है और स्वयंवर की चुनौती को पूर्ण करने के लिए आगे बढ़ता है लेकिन ये क्या द्रौपदी ने उसे रोक दिया। परंतु क्यों, क्या है द्रौपदी के ऐसा करने के पीछे का पूर्ण सत्य? इस लेख के माध्यम से जानिए।

द्रौपदी कर्ण

Source- TFI

हमारे सनातन संस्कृति के बारे में भांति-भांति की भ्रांतियां फैलाई गई हैं ताकि एक एजेंडे के तहत  हमारे धर्म एवं संस्कृति के बारे में एक नकारात्मक छवि बनाई जा सके। ऐसी ही कुछ भ्रांतियां महाभारत को लेकर फैलाई गई हैं। महाभारत में पांचाल की राजकुमारी द्रौपदी के स्वयंवर का प्रसंग तो बहुत प्रचलित है लेकिन प्रसंग को लेकर जोरोंशोरों से यह बात फैलाई गयी कि द्रौपदी ने सूतपूत कहकर कर्ण को अस्वीकार किया था। परंतु क्या यही सत्य है?

कई वर्षों से प्रचारित किया जा रहा है कि कर्ण को “सूतपुत्र” कहकर राजकुमारी द्रौपदी ने पहले तो उसे अपमानित किया और फिर उसे अस्वीकार किया लेकिन पूर्ण सत्य को जानने के लिए हमें कुछ बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

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द्रौपदी के द्वारा कर्ण को अस्वीकार करना

सर्वप्रथम आते हैं पांचाल के स्वयंवर सभा में जहां समस्त आर्यावर्त के योद्धाओं को आमंत्रित किया गया है। इसी तरह एक बड़े साम्राज्य हस्तिनापुर को भी आमंत्रित किया गया है। ऐसे में दुर्योंधन और उसका मित्र कर्ण भी वहां उपस्थित हैं। पांचाल नरेश द्रुपद तब हताश हो गए जब सभा में उपस्थित योद्धा मछली की आंख को भेदने की उनकी चुनौती को पूर्ण ही नहीं कर पाए। यहां तक कि शिशुपाल, जरासंध जैसे योद्धा भी असफल रहे। यहीं पर कर्ण उठ खड़ा होता है और स्वयंवर की चुनौती को पूर्ण करने के लिए आगे बढ़ता है लेकिन ये क्या द्रौपदी ने उसे रोक दिया। परंतु क्यों?

चुनौती पूर्ण करने के लिए कर्ण अपनी धनुर्विद्या का प्रयोग करने ही वाला होता है कि द्रौपदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह ऐसे व्यक्ति का वरण नहीं कर सकती है जिसे अपनी विद्या का अभिमान हो, जो केवल बातों का सिंह हो और जो एक पराचित योद्धा हो।

द्रौपदी कर्ण को अभिमानी और पराजित कह रही है, इसे समझने के लिए कर्ण से जुड़े कुछ प्रसंग पर ध्यान देना होगा।

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अभिमानी कर्ण

याद करिए रंगभूमि का वो दृश्य जब कुरू कुमार और गुरु द्रोण के शिष्य अर्थात कौरव और पांडव अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन कर रहे थे। तभी एकाएक कर्ण रंगभूमि में घुस आता है और अभिमान में चूर होकर अपने धनुर्विद्या का प्रदर्शन करने और स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए उतारू हो जाता है। यहां उसका अभिमान स्पष्ट दिखता है। तब के समय में साम्राज्यों की एक व्यवस्था होती थी, किसी भी साम्राज्य में वहां के राजकुमारों को शिक्षित करने के लिए एक गुरु को नियुक्त किया जाता था और ऐसी ही व्यवस्था हस्तिनापुर साम्राज्य में भी थी जहां के कुमारों के गुरु के रूप में द्रोणाचार्य को नियुक्त किया गया था लेकिन अभिमान में चूर कर्ण ने इस व्यवस्था को ही चुनौती देने की ठान ली थी।

कर्ण कितना अभिमानी था इसका परिचय तब भी मिलता है जब द्रोणाचार्य द्रुपद से अपने अपमान का प्रतिशोध लेने हेतु अपने शिष्यों से गुरुदक्षिणा में द्रुपद को बंदी बनाने के लिए भेजते हैं। दुर्योंधन कर्ण के साथ निकल पड़ता है पांचाल की सेना से भिड़ने के लिए। अति आत्मविश्वास और अभिमान में चूर कर्ण तो दुर्योधन के साथ ऐसे पांचल के लिए इस भाव के साथ निकलता है जैसे मैं तो द्रुपद को हराकर बंदी ही बना लूंगा। यहां भी कर्ण का अभिमान स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता है।

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अब आते हैं ‘पराजित कर्ण’ वाले बिंदु पर

तो गुरुदक्षिणा वाले प्रसंग में ही आतुर दुर्योधन कर्ण के साथ द्रुपद को चुनौती देने पहुंच जाता है। दुर्योधन ने कर्ण को साथ लेकर पांचाल राज्य पर आक्रमण कर दिया परन्तु पांचाल की विशाल सेना का नेतृत्व द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न और शिखंडी कर रहे थे। इन दोनों ने कर्ण और दुर्योधन को बुरी तरह से परास्थ किया, दोनों का द्रुपद के साथ भी युद्ध हुआ। ऐसी स्थिति में कर्ण तो मैदान छोड़कर ही भाग गया। सोचिए कि एक ऐसे व्यक्ति का द्रौपदी क्यों वरण करेगी जो उसके पिता और भाई से बुरी तरह पराजित हुआ हो।

यहां एक बिंदु है द्रौपदी का मूल अधिकार

ध्यान दीजिए कि यह आयोजन द्रौपदी के स्वयंवर का है जहां द्रौपदी को पूर्ण अधिकार है कि वह किसका वरण करे और किसका वरण न करे। स्वयंवर का मूल अर्थ ही है अपनी इच्छा से अपना वर चुनना। द्रौपदी ने कर्ण को अस्वीकार किया यह उसका अधिकार था और यह बिल्कुल सामान्य सी घटना थी। द्रौपदी का यहां कोई दोष ही नहीं है।

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अब आते हैं जाति वाले बिंदु पर

कहते हैं कि कर्ण को उसके “जाति” के आधार पर द्रौपदी ने अस्वीकार कर दिया लेकिन इस फैलाए गए झूठ का तोड़ स्वयंवर सभा में ही दिख जाता है। इस स्वयंवर में केवल क्षत्रिय नहीं हैं अपितु ब्राह्मण वर्ग भी है जिस वर्ग में भीम और अर्जुन ब्राह्मण भेष में उपस्थित हैं। अब थोड़ा और ध्यान दीजिए, इस सभा में श्रीकृष्ण भी उपस्थित हैं जो यदुवंशी हैं। यदि स्वयंवर जाति या क्षत्रियता को लेकर इतना ही कट्टर होता तो क्या एक सभा में जाति को लेकर इतनी विविधता होती।

इन बिंदुओं के बाद स्पष्ट होता है कि कैसे स्वयंवर में द्रौपदी द्वारा कर्ण को उसकी जाति के लिए अस्वीकार करना एक झूठ है। आशा है कि अब आप पूर्ण सत्य से अवगत हो गए होंगे।

https://www.youtube.com/watch?v=GgR-k2vONFo

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