Tulsi Ji ki Aarti in Hindi and Story: तुलसी जी की आरती एवं कहानी

Tulsi Ji ki Aarti

Tulsi Ji ki Aarti in Hindi and Story: तुलसी जी की आरती एवं कहानी

स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Tulsi Ji ki Aarti  साथ ही इससे जुड़े कहानी के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें

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हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को पूजनीय  है। सनातन धर्म को मानने वाले प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगा होता है और सुबह शाम इसकी पूजा की जाती है। तुलसी के पतों को इतना पवित्र माना जाता है कि पूजा के दौरान देवी-देवताओं को भोग में तुलसी के पत्तों को चढ़ाया जाता है। भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है, इसलिए तुलसी को विष्णु प्रिय भी कहा जाता है। नियमित रूप से तुलसी के पौधे की पूजा करते हैं, उनके ऊपर सदैव मां तुलसी के साथ भगवान विष्णु की भी कृपा बनी रहती है। घर में तुलसी का पौधा लगाने और नियमित पूजन करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।  जिस घर में प्रतिदिन तुलसी पूजन किया जाता है

तुलसी माता की कहानी।  –

कार्तिक महीने में सब औरतें तुलसी माता को सींचने जाती । सब तो सींच कर आतीं परन्तु एक बुढ़िया आती और कहती कि हे तुलसी माता ! सब की दाता मैं तेरा बिडला सींचती हूँ ; मुझे बहू दे , पीले रंग की धोती दे , मीठा – मीठा गास दे , बैकुण्ठ में वास दे , चटक की चाल दे और ग्यारस का दिन दे , कृष्णा का कन्धा दे ।

तब तुलसी माता यह बात सुनकर सूखने लगीं तो भगवान ने पूछा- कि हे तुलसी ! तुम क्यों सूख रही हो ? तुलसी माता ने कहा- मेरे मन की मत पूछो । तो भगवान ने कहा कि अगर मैं यह बात नहीं पूछूंगा तो कौन पूछेगा । तो तुलसी माता ने कह कि एक बुढ़िया रोज आती है और यही बात कह जाती है । परन्तु मैं सब बात तो पूरी कर दूंगी लेकिन कृष्णा का कंधा कहां से दूंगी । तो कृष्ण भगवान बोले – कि जब यह मरेगी तो अपने आप कंधा दे आऊंगा । तू बुढ़िया माई से कह दियो । बाद में बुढ़िया माई मर गई । सारे गाँव वाले इकट्ठे हो गये और बुढ़िया को ले जाने लगे तो वह इतनी भारी हो गई कि किसी से भी नहीं उठी । तब सबने कहा यह तो इतनी पूजा पाठ करती थी , पाप नष्ट होने की माला फेरती थी , फिर भी भारी हो गई । बूढ़े ब्राह्मण के भेष में भगवान आये और सबसे पूछा कि यह कैसी भीड़ है ? तब आदमी बोले कि यह बुढ़िया मर गई । पापणी थी इसलिए किसी से नहीं उठती । तो भगवान ने कान के पास जाकर कहा कि बुढ़िया माई मन की निकाल ले , पीताम्बर की धोती ले , मीठा – मीठा गास ले , बैकुण्ठ का वास ले , चटक की चाल ले , चन्दन का काठ ले , झालर की झंकार , दाल – भात को जीम और कृष्णा का कंधा ले । फिर यह बात सुनकर बुढ़िया माई हल्की हो गई । भगवान जी अपने कंधे पर ले गये और उसे मुक्ति मिल गई । हे तुलसी माता जैसे उसकी मुक्ति करी वैसी हमारी भी करना और जैसे भगवान ने कंधा उसको दिया वैसा हमें भी देना।

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