जब कांग्रेसी नेताओं में सोनिया गांधी की चापलूसी करने की होड़ मची थी,तब गोविंदा ने उसमें टॉप किया था

बात उस वक्त की है जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री ना बनने का ऐलान किया था।

गोविंदा सोनिया गांधी

SOURCE TFI

वर्ष 2004, सोनिया गांधी का पीएम बनना लगभग तय था, परंतु इनके इतालवी मूल के पीछे काफी आक्रोश उमड़ पड़ा। तब की भाजपा की प्रमुख नेत्री [बाद में विदेश मंत्री] सुषमा स्वराज ने यहां तक घोषणा कर दी थी कि यदि सोनिया प्रधानमंत्री बनी तो वो अपना सर मुंडवा लेंगी। कुछ ही दिनों बाद सोनिया गांधी ने एक महत्वपूर्ण अभिभाषण में ‘अंतरात्मा की आवाज़’ सुनने का दावा कर प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा त्याग दिया। अब इससे इनके प्रशंसक और इनके प्रमुख दरबारी हैरान परेशान थे कि देश को कौन संभालेगा? परंतु एक व्यक्ति ने ऐसी चाटुकारिता दिखाई जिसने न केवल इनकी छवि को नुकसान पहुंचाया, अपितु ये भी सिद्ध किया कि कैसे कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद को न स्वीकारने पर गोविंदा समेत कई कांग्रेसी ऐसे नतमस्तक हुए, जिसके बारे में जानकर कोई भी आश्चर्य से भर जाए।

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सोनिया गांधी की उपासना

गोदी मीडिया, मोदीभक्त सेलेब, ऐसे न जाने कितने टैग आपने सुने होंगे। क्योंकि मोदी का समर्थन किए हैं, उनके समर्थन में दो शब्द भी बोल दिए, तो कैंसल कल्चर मंडली हाथ धो के पीछे पड़ जाएगी। परंतु एक मंडली की ओर कम ही लोगों का ध्यान जाता है- कांग्रेस प्रेमी मंडली। ये पार्टी छोड़िए, राहुल गांधी और सोनिया गांधी की ऐसी उपासना करते हैं, कि एक बार को पेरियार एवं चे ग्वेरा के प्रशंसक भी इनसे ईर्ष्या करने लगे।

परंतु गोविंदा ने ऐसा किया क्या जो इन्हें कांग्रेसी चमचों की मंडली में सम्मिलित कर गया? जब सोनिया गांधी ने पद छोड़ा, तो ये व्यक्ति, जो फिल्म उद्योग में बड़े से बड़े तुरर्म खां से सीधे भिड़ जाते थे, नन्हे मुन्ने बच्चों की भांति सोनिया गांधी से ज़िद करने लगे कि वह पद न छोड़े। असल में ये कथा 2004 से प्रारंभ होती है, जब लोकसभा चुनावों में गोविंदा ने उत्तरी मुंबई से तत्कालीन सांसद [और बाद में यूपी के राज्यपाल] एवं पेट्रोलियम संसाधन मंत्री राम नाईक को पराजित किया था। गोविंदा और सनी देओल में काफी समानता है – दोनों ही चुनाव जीतने के बाद संसद में कम, फिल्मों में अधिक दिखे। परंतु जितनी खिंचाई सनी देओल की की जाती है, उतनी शायद ही गोविंदा की हुई थी।

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गोविंदा की छवि पर बट्टा

पर प्रश्न अब भी यही है कि गोविंदा ने क्या किया जिसके पीछे उनकी छवि पर बट्टा लग गया? जब सोनिया गांधी ने पीएम का पद स्वीकारने से मना किया, तो कांग्रेस के कई नेतागण इस बात से रुष्ट थे। अब गांधी– वाड्रा परिवार देश की कमान नहीं संभालेगा तो कौन संभालेगा, और इसीलिए अनेक नेता “राजमाता” को मनाने में लग गए, जिसका उल्लेख बहुचर्चित एबीपी द्वारा प्रसारित डॉक्यूड्रामा सीरीज़ “प्रधानमंत्री” में भी किया गया।

उक्त एपिसोड में ये दिखाया गया कि कैसे सोनिया गांधी के द्वारा पीएम पद को ठुकराने के बाद कांग्रेसी उन्हें मनाने में जुट गए। रेणुका चौधरी तो सदन में ही अश्रुधारा बहाने लगीं, जिसे देख कोई भी यही कहता, 50 रुपये काट ओवरएक्टिंग का….

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गोविंदा बाबू का गला भर आया

परंतु रेणुका महोदया अकेली नहीं थी, मणिशंकर अय्यर से लेकर कपिल सिब्बल तक उनपर पीएम पद को स्वीकार करने हेतु जोर डाल रहे थे। इसी बीच गोविंदा बाबू भी अपने आप को संभाल नहीं पाए, और रूआंसे स्वर में बोले [और ये इन्ही के शब्द है], “जिस पद को पाने हेतु सभी लालायित रहते हैं, उस पद को छोड़ने के लिए तैयार होने वाला व्यक्ति ही उस पद का असली अधिकारी होता है।”

जी हां, आपने ठीक सुना। गोविंदा ऐसे भावुक होकर सोनिया गांधी को पीएम पद स्वीकारने के लिए अपील कर रहे थे, जैसे उनके पीएम बनने से राष्ट्र का उद्धार हो जाएगा। परंतु मान मनौती करने में तो गोविंदा मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल जैसे 10 जनपथ छाप “गांधी परिवार” के चाटुकारों को टक्कर देने लगे, वो अलग बात है कि इतनी निष्ठा के बाद भी पहले गोविंदा को, और फिर कपिल सिब्बल को बाहर का रास्ता दिखाया गया। गोविंदा कहते हैं कि उनका करियर फिल्म उद्योग ने बर्बाद किया, परंतु उनके खुद के कई निर्णय भी उनके पतन के लिए बराबर के दोषी हैं, जिसमें से एक सोनिया गांधी के प्रति इनका अंधा समर्पण भी था।

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